सुभाष चंद्र बोस और भगवा परंपरा : जानिए संघी आजादी और नेता जी से डरते क्यों थे
सुभाष चंद्र बोस और भगवा परंपरा : जानिए संघी आजादी और नेता जी से डरते क्यों थे

संघी बटुकों तुम्हारे पूर्वज डरपोक और ब्रिटिश दलाल थे
मोदी की आंखें इतिहास नहीं शौचालय में स्वच्छ विचार खोज रही हैं!!
सुभाष चन्द्र बोस की परंपरा और मूल्यों के साथ पीएम मोदी, उनके भक्त और आरएसएस का तीन-तेरह का संबंध है। मोदी-संघ के लिए चेतना से बड़ी चीज है पापुलिज्म। इसके विपरीत सुभाषचन्द्र के लिए लोकप्रियता से बढकर थी सचेतनता। वे कभी लोकप्रियता के सामने झुके नहीं। अपने विचारों पर अड़िग रहे उनके इस गुण की गांधीजी भी प्रशंसा करते थे। पापुलिज्म को सुभाष ने सचेतनता के सामने कभी महत्व नहीं दिया। मोदी-संघ तो बार बार पापुलिज्म के सामने नतमस्तक हुए हैं।
सुभाषचन्द्र बोस जैसा नजरिया होना असंभव है। उन्होंने महात्मा गांधी जैसे महान नेता के रहते उनको अपना राजनीतिक गुरू नहीं माना बल्कि राजनीतिक गुरू देशबंधु चित्तरंजन दास को माना। वे गांधीजी का बहुत सम्मान करते थे लेकिन अपनी चेतना और विवेक पर हमेशा दृढ़प्रतिज्ञ रहते थे। वे व्यक्तिगत संबंध जहां तक हों उनको मानवीय भावनाओं के आधार पर बनाए रखने पर जोर देते थे, उन संबंधों के बीच में विचारधारा नहीं लाते थे। यही वजह थी कि गांधीजी के विचारों से गहरे मतभेद होने के बावजूद वे गांधीजी को प्यार करते थे, उनका सम्मान करते थे।
फेसबुक पर जो संघी बटुक आजादी-आजादी करते घूम रहे हैं वे जानते नहीं हैं कि उनके पूर्वज डरपोक और ब्रिटिश दलाल थे, दलाल और डरपोक कभी आजादी के पहरूए नहीं हो सकते।
यह वैचारिक परंपरा का मामला है। हिन्दुत्व की वैचारिक परंपरा में आजादी नहीं ,"हे भगवान हे भगवान" है।
आजादी को वे ही ला सकते जो साहसी हों, जोखिम उठा सकें, कुर्बानी दे सकें। सुभाषचन्द्र बोस, वामदलों और कांग्रेस के आह्वान पर लाखों युवाओं ने कुर्बानी दी, लेकिन आरएसएस के हिन्दूवीर कहीं पर नजर नहीं आए, उलटे कुर्बानी देने वालों के खिलाफ आचरण कर रहे थे।
सब जानते हैं आरएसएस के नेताओं को हिटलर के विचार पसंद थे। वे उसके एक्शन में अपनी मोक्ष खोज रहे थे। जबकि सुभाषचन्द्र बोस का मामला एकदम भिन्न था। जर्मनी ने जब पोलैण्ड पर हमला किया तो सुभाषचन्द्र बोस ने खुलेआम कहा कि वे पोलैण्ड के साथ हैं। उन्होंने अनेक बार हिटलर के विचारों की तीखी आलोचना भी की।
इसके विपरीत हिटलर तो संघ के नेताओं का प्रेरक रहा है। जो लोग सुभाष-नेहरू में शत्रुता खोज रहे हैं जरा वे आरएसएस और हिटलर-मुसोलिनी संबंधों पर भी लिखें, यह कैसा इतिहासबोध है जो सिर्फ वही देखता है जो मोदी देखते हैं!! मोदी की आंखें इतिहास नहीं शौचालय में स्वच्छ विचार खोज रही हैं!!
आरएसएस के कलमगुलाम सुभाषचन्द्र बोस और पंडित नेहरू के अन्तर्विरोधों की खोज कर रहे हैं और यह जताने का प्रयास कर रहे हैं कि वे कोई बड़ी दुर्लभ चीज बता रहे हैं। इतिहास जानता है कि सुभाषचन्द्र बोस का कांग्रेस नेतृत्व के साथ गंभीर वैचारिक मतभेद था।उनके पंडित नेहरू से लेकर महात्मा गांधी तक से वैचारिक मतभेद थे, लेकिन उनका नजरिया कांग्रेस के प्रति वह नहीं था जो संघ परिवार का है या पीएम मोदी का है। कांग्रेस को सुभाषचन्द्र बोस ने कभी अप्रासंगिक बनाने का संकल्प नहीं लिया, कांग्रेस के सफाए की बात नहीं की। यहाँ तक कि कांग्रेस ने उनके ऊपर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर दी और उनको तीन साल के लिए कांग्रेस में कोई भी पद देने पर पाबंदी लगादी, तब भी सुभाष ने कांग्रेस के प्रति अपना रवैय्या नहीं बदला। उलटे ज्यादा समर्पणभाव से कांग्रेस के लिए काम किया। उन्होंने कांग्रेस हाईकमान के पाबंदी आदेश के बावजूद देशवासियों से अपील की कि हजारों की तादाद में कांग्रेस में शामिल हों।
कृपया हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें


