संसद में सच कहने के बहाने सच छुपाने की कला कोई कारपोरेट वकील अरुण जेटली से सीख लें।
इंडिया इंक का बाजा बजाकर विदेशी पूंजी को सोने की चिड़िया बेचने का केसरिया बंदोबस्त?
कॉरपोरेट जगत को दी गई टैक्स छूट से सिर्फ 62,398.6 करोड़ का चूना
मीडिया में भइये गांजा भांग पीने का रिवाज तो है नहीं और न रोज रोज शिवरात्रि है। सारस्वत संप्रदाय ने खबरों और विश्लेषणों में जनता की आंखों पर परदा डालने के लिए मनोरंजन की चाशनी के साथ दिलफरेब मांसल तिलिस्म के साथ अब दिनदहाड़े तथ्यों की डकैती भी होने लगी है।
आम जनता का तो बाजा बज ही गया है हुजूर, भारतीय जो कारपोरेट घरानों का इंडिया इंक है, हिंदू साम्राज्यवादी एजेंडा के तहत सीमाओं के आर-पार आम लोगों का आशियाना फूंकने के केसरिया खेल के जरिये दुनिया पर राज करने का मंसूबा जिनका है, अब भी वक्त है कि होशियार हो जइयो भइये के भष्मासुर पैदा जब होये, हर बार विष्णु भगवान की मोहिनी मूरत उसे जला डालें,जरूरी भी नहीं है और अपने कल्कि अवतार तो भइये खुदै भष्मासुर होवै ठैरे।
अफवाह जोरों पर है कि वित्‍त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आरबीआई गवर्नर की शक्‍ति को कम करना पीएम मोदी को रास नहीं आया। इसके चलते उन्‍होंने जेटली की इस योजना पर पानी फेर दिया। दरअसल अरुण जेटली चाहते थे कि मार्केट में आरबीआई की बढ़ती शक्‍ति को कम किया जाए, लेकिन मोदी ने फिलहाल इस योजना पर ब्रेक लगा दिया है।
रघुराम राजन को लेकर पीएम मोदी और अरुण जेटली में मतभेद
आंकड़े दगाबाज हैं। संसद में सच कहने के बहाने सच छुपाने की कला कोई कारपोरेट वकील अरुण जेटली से सीख लें। कारपोरेट टैक्स में पांच फीसद छूट, सिर्फ विदेशी निवेशकों को 6.4 अरब डालर का टैक्स माफ, विदेशी पूंजी को पिछला सारा कर्ज माफ और घाटा सिर्फ 62,398.6 करोड़ रुपये का।
विदेशी पूंजी बटोरो अभियान में मोदियापा में हद करते जा रहे भारतीय उद्योगपति जरा हिसाब जोड़कर भी देख लें कि सत्ता के गुलाबी हानीमून में बस्तर में कौन-कौन हैं और कौन कहां कैसे-कैसे सौदे करके उनका अपना धंधा चौपट किये जा रहे हैं। स्मार्ट सिटीज के ट्रिलियन डालर कारोबार में चीन के चैयरमैन अवतार में चीनी कंपनियों की खूब बल्ले-बल्ले तो रक्षा सौदों में खासमखास की खास भूमिका। अमेरिकी, जापानी और इजराइली पूंजी के हवाले सोने की चिड़िया भइये और खुदरा कारोबार में आम कारोबारियों के कत्लेआम का नतीजा यूं निकला कि दुनिया भर की कंपनियां देशी कंपनियों की ऐसी तैसी करके बाजार दखल कर लीन्है।
मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की बागडोर केसरिया मनुस्मृति शासन के हवाले करने से देश में निनानब्वे फीसद जनगण के कत्लेआम के साथ-साथ भारतीय उद्योग जगत के हाथों से बेदखल होने लगा है यह इमर्जिंग मार्केट।
अगर सच बोले हैं संसद में जेटली कि भारतीय उद्योग जगत को सिर्फ बासठ हजार करोड़ की टैक्स छूट है विदेशी निवेशकों को 6.4 करोड़ की टैक्स माफी और अनंत टैक्स होलीडे के मुकाबले तो तमाम भारतीय कंपनियों के चेयरमैन और एमडी से विनम्र निवेदन है कि वे सबसे पहले अपने तमाम अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों को गुलाबी प्रेमपत्र के साथ अलविदा कहते हुए हम जैसे नाचीजों को अपनी सेवा में बहाल करें।
ज्यादा सर्वे वर्वे से इतरइयो नाही कि आम जनता के साथ भारतीय उद्योग जगत का सत्यानाश भी तय है और बुल रन का तमाशा एइसन के एक बालीवूडी हीरों को सजा हेने पर धड़ाम धड़ाम और आंकड़ें फर्जी तमाम। निवेश सगरा विदेशी निवेश।
फिर भी दिलहै हिंदुस्तानी कि सर्वे है भइये कि विश्व की 200 सबसे बड़ी और शक्तिशाली सूचीबद्ध कंपनियों में से 56 भारत में हैं। यह बात फोर्ब्स की सालाना सूची में कही गई, जिसमें 579 कंपनियों के साथ अमेरिका शीर्ष पर है। मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज फोर्ब्स 2015 की 'ग्लोबल 2000' सूची में 56 भारतीय कंपनियों में अग्रणी है। इस सूची में विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है और इससे स्पष्ट है कि मौजूदा वैश्विक कारोबार परिदृश्य में अमेरिका और चीन प्रभुत्व की स्थिति में है। लगातार दूसरे साल शीर्ष एक से 10 कंपनियों में दोनों देशों का ही स्थान रहा।
झूठ के पंख नहीं होते। सरकारी उपक्रमों में कारपोरेट चेयरमैन के जरिये उनका कायाकल्प और सरकारी महकमों और सेवाओं का निजीकरण, इस पर तुर्रा सेबी को रिजर्व बैंक के हकहकूक। लगातार मेकिंग इन के खिलाफ चीखें जा रहे हैं राजन। रिजर्व बैक के निजीकरण के लिए उसके तमाम विभागों में कारपोरेट बंदे और मोदी कहते है कि जेटली को सबर सिखाने लगे हैं और रिजर्व बैंक के साथ हैं।
पलाश विश्वास