सोमनाथ के बचाव में मत बोलो कि भारत आज़ाद नहीं है...प्लीज़
सोमनाथ के बचाव में मत बोलो कि भारत आज़ाद नहीं है...प्लीज़
हमारा लोकतन्त्र ख़ूबसूरत है... ख़ूबसूरत है... ख़ूबसूरत है...
अभिरंजन कुमार
हमारे आम आदमी पार्टी के समर्थक कई दोस्त सोमनाथ भारती के बचाव में बार-बार यह दलील दे रहे हैं कि मन्त्री ने पब्लिक के कहने पर युगांडा की महिलाओं के यहाँ रेड करवाई। यह हास्यास्पद दलील है। इस बात को कोई कैसे न्यायोचित ठहरा सकता है कि पब्लिक के कहने पर कोई मन्त्री बिना सबूत किसी महिला की इज़्ज़त उतार दे।
हमारे ऐसे मित्र यह क्यों नहीं समझते कि यह "पब्लिक" नाम की प्राणी भी कम थोड़े ही है। यह पब्लिक ही है, जो आज भी किसी महिला को डायन बताकर जला डालती है। यह पब्लिक ही है, जो आज भी किसी महिला के दूसरे पुरुषों से हँसकर बात कर लेने पर उसे वेश्या करार दे देती है। यह पब्लिक ही है, जो दो लोगों के प्रेम करने पर सज़ा-ए-मौत का फरमान सुना देती है। यह पब्लिक ही है, जो एक मामूली चोरी में पकड़े जाने पर किसी किशोर को पीट-पीटकर मार डालती है और बड़े-बड़े चोरों के आगे-पीछे घूमती है।
भाई साहब, अगर पब्लिक के कहने पर ही सब कुछ करना है, तो अदालतें भंग कर दीजिये, कानून का शासन समाप्त कर दीजिये। हो सकता है कि पब्लिक ने मन्त्री से कहा कि फलाने घर में वेश्यावृत्ति चलती है, लेकिन मन्त्री को एक्शन लेने से पहले कुछ तो पड़ताल करा लेनी चाहिए थी।
मैंने आम आदमी पार्टी के अपने भाइयों से कुछ सवाल पूछे थे। उनमें से एक भी सवाल का जवाब अब तक तो नहीं आया, लेकिन राष्ट्रप्रेम, क्रांति और नई राजनीति की दुहाई बार-बार ज़रूर दी जा रही है। मैं फिर से कहता हूँ कि हमारे ऐसे मित्र मन्त्री की इस हरकत को सिर्फ़ इसलिये डिफेंड कर पा रहे हैं, क्योंकि ऐसा उनके साथ नहीं हुआ है। मुझे बताइये कि आपके गाँव वालों या मोहल्ले वालों के कहने पर पुलिस आपके घर में बिना पुख्ता आधार रेड कर दे और किसी महिला को उठाकर चली जाये, तो भी आप यही दलील देंगे, जो सोमनाथ भारती के बचाव में दे रहे हैं?
यह दुर्भाग्यपू्र्ण है कि अच्छे-भले समझदार लोग भी कई बार जब एक लहर में बहने लगते हैं तो इंसाफ़ की बातें भी उन्हें नाइंसाफी प्रतीत होने लगती है। पुलिस की नाजायज़ कार्यशैली, उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार, वेश्यावृत्ति या ड्रग रैकेट चलते रहने वगैरह का हमने कभी समर्थन किया हो तो बताइये प्लीज।
यह मैं मानता हूँ कि काँग्रेस और भाजपा समेत करीब-करीब तमाम दलों ने जनता को इतनी बुरी तरह निराश और हताश कर दिया है कि आज वो आगा-पीछा कुछ नहीं देख पा रही है। इन सबसे पिंड छुड़ाने के लिये वह किसी अराजकतावादी, तानाशाह, नक्सली अथवा विचारविहीन महत्वाकाँक्षी लोगों को भी गले लगाने को तैयार है। यह एक ख़तरनाक स्थिति है।
चार दिन बाद गणतन्त्र दिवस है। हम सबको अपने लोकतन्त्र और सिस्टम को और ख़ूबसूरत बनाने के लिये अभी काफी काम करने हैं, लेकिन प्लीज़ यह मत कहिये कि भारत को आज़ादी नहीं मिली या भारत आज भी गुलाम है। बहुत सारी अच्छी चीज़ें इन 65 सालों में हुयी हैं और बहुत सारी अच्छी चीज़ें हमें अभी करनी हैं।
इस देश में कोई अल्पसंख्यक राष्ट्रपति बन जाता है, किसी चाय बेचने वाले का बेटा प्रधानमन्त्री पद का दावेदार हो जाता है, कोई दलित महिला मुख्यमन्त्री बन जाती है, लोगों को बराबरी का अधिकार देने के लिये कई तबकों से विरोध के बावजूद बाकायदा आरक्षण की व्यवस्था है। महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में काम कर रही हैं। हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी मिली हुयी है। हम धड़ल्ले से अपनी बात बोल सकते हैं, लिख सकते हैं, आन्दोलन कर सकते हैं। मन्त्री और प्रधानमन्त्री को भी हम गालियाँ दे रहे हैं और यह लोकतन्त्र हमारा अनादर नहीं कर रहा, यह सब आपको कम बड़ी आज़ादी लगती है क्या?
मैं यह मानता हूँ कि हमारा लोकतन्त्र बहुत ख़ूबसूरत है, लेकिन इसे अभी और ख़ूबसूरत बनाना है। राजनीतिक दलों को सुधरने के लिये ज़रूर बाध्य करना है, क्योंकि बहुत सारी दिक्कतें आज बेशक उन्हीं की वजह से हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम एक और अराजक राजनीतिक दल खड़ा कर लें। मुझे माफ़ करिये, लोकतन्त्र में अगाध आस्था रखने की वजह से मैं एक हज़ार और राजनीतिक दलों का स्वागत कर सकता हूँ, लेकिन एक भी अराजक राजनीतिक दल का स्वागत नहीं करूँगा। आख़िर हम ख़ूबसूरत बनना चाहते हैं या और बदसूरत बनना चाहते हैं?


