स्टार्ट अप इंडिया - पैसा जनता का, मुनाफा कंपनी का
रणधीर सिंह सुमन
मजदूर किसानों के लिए या बहुसंख्यक जनता के लिए हमारे प्रधानमन्त्री के पास कुछ नहीं है, लेकिन पूंजीपतियों के लिए स्टार्ट अप इंडिया है। किसानों के सम्बन्ध में उनके पास कोई योजना नहीं है। लाखों किसान आत्महत्याएं कर चुके हैं, उसकी तरफ ध्यान न देकर अब कंपनियों को खोलने व बंद करने के लिए 10000 करोड़ रुपये का फण्ड कैपिटल गेन में छूट तथा क्रेडिट गारंटी स्कीम की योजनायें शुरू की हैं।
स्टार्ट अप इंडिया के तहत कंपनियों में काम करने वाले लोगों को श्रम कानूनों व अन्य कानूनों से पूरी तरह मुक्त रखा जायेगा। बेरोजगारों की मंदी में एक इंजीनियर को आप चाहे 10 हजार रुपये दें या 5 हजार, कोई पूछने वाला नहीं होगा। उनके यहाँ किसी भी श्रम कानून को लागू नहीं किया जायेगा। उनके द्वारा कुछ भी किया जाए, उसके लिए उन्हें लाइसेंस नहीं लेना होगा। पैसा जनता का हो, मुनाफा कंपनी का हो। मजदूरों का शोषण हो। सरकार से कोई लेना देना नहीं होगा। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप हो इसका अर्थ है कि सरकारी उद्यमों को भी उद्योगपतियों को सौंप देना।
स्टार्ट अप इंडिया मतलब पैसा जनता से इकठ्ठा करने के लिए किसी भी तरह का वादा करना और वादे को पूरा न करना उसके लिए कोई कानून नहीं होगा। जब चाहो कंपनी खोल लो, जब चाहो कंपनी में लगा जनत का पैसा डुबोकर कंपनी बंद कर दो। कंपनियों को कोई टैक्स न देना पड़े और वह प्राकृतिक संसाधनों से लेकर मानव संसाधन तक का दोहन करते रहो, उसमें सरकार की कोई दखलंदाजी न हो।
स्टार्ट अप इंडिया के तहत कंपनियों को सस्ता कर्ज व तीन साल तक टैक्स में छूट दी जाएगी तथा सरकारी योजनाओं का भी लाभ उनको दिया जायेगा।
तो यह है स्टार्ट अप इंडिया योजना। कंपनी फ्लॉप शो हो जाए तो भी सरकार उसकी मदद करेगी।

भारत के लिए नहीं है स्टार्ट अप इंडिया
मेक इन इंडिया का नारा भारत के लिए नहीं है। उसी तरह स्टार्ट अप भारत के लिए नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य है। विदेशी कंपनियों को यहाँ के प्राकृतिक संसाधन व मानव संसाधन की खुली लूट कराना। बहुसंब्ख्यक जनता को न तो मेक इन इंडिया से कोई फायदा होना है और न ही स्टार्ट अप से।

इसी तरह सोमालिया को मल्टी नेशनल कंपनियों ने बर्बाद कर दिया था।
देश की नदियों, जलाशय, भूगर्भ जल व हवा को उद्योगपतियों ने जिस तरीके से प्रदूषित किया है उसकी भरपाई हाजारों-हजार करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी नहीं हो पा रही है। चाहे गंगा हो या कावेरी साफ़ नहीं कर सकते हैं। उद्योगों का सारा कचरा जल को गन्दा करने में ही इस्तेमाल होता है। उसी तरह इन से निकल्लने वाली गैसों से हवा प्रदूषित होती है। कोई कानून काम नहीं करता है। जमीन के अन्दर मौजूद जल को जिस तरह से निकाल कर उद्योगपति इस्तेमाल कर रहे हैं और मुनाफा कमा रहे हैं उसके ऊपर कोई रोक नहीं है। हमारे और आप के हिस्से का हवा पानी, जमीन उद्योगपतियों को देने का किसी भी सरकार को हक़ नहीं है। हमारे मोदी प्रधानमन्त्री बनने के बाद जनता के प्रधानमंत्री मालूम ही नहीं होते हैं, मल्टी नेशनल कंपनियों व उद्योगपतियों को ही फायदा पहुंचाने में उनका अंकगणित लगा रहता है। इसी तरह सोमालिया को मल्टी नेशनल कंपनियों ने बर्बाद कर दिया था।