शमशान
सुनील दत्ता
चुप्पी ख़ामोशी उदासी ओढ़े

हर शमशान

लाशों, लकड़ियों और कफन के

इंतजार में शिद्दत के साथ

मुद्दत से अपनी भूमिका में खड़ा है

न जाने कितनी लाशें

अब तक हो चुकी होंगी पंचतत्व में विलीन

गुमनामी के अँधेरे में खो चुके हैं -

न जाने कितने हाड़-मास के पुतले

स्मृतियों में कुछ शेष रह जाती हैं आकृतियाँ

कुछ आकृतियाँ छोड़ जाती हैं

अपने कामों का इतिहास|
-सुनील दत्ता