हत्याओं का चुनावी इस्तेमाल और हमारी आपराधिक चुप्पी
हत्याओं का चुनावी इस्तेमाल और हमारी आपराधिक चुप्पी
हत्याओं का चुनावी इस्तेमाल और हमारी आपराधिक चुप्पी
हरे राम मिश्र
हाल ही में मध्य प्रदेश स्थित भोपाल केन्द्रीय कारागार से सिमी के आठ संदिग्धों का पहले रहस्यमय तरीके से भाग जाना और उसके ठीक आठ घंटे बाद फरारी स्थल से महज आठ किमी की दूरी पर पुलिस मुठभेड़ में मार दिया जाना अपने आप में कई गंभीर सवाल पैदा करता है।
इस मुठभेड़ पर राजनैतिक दलों, सामाजिक, राजनैतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा जहां कई सवाल उठाए जा रहे हैं वहीं, राज्य के गृहमंत्री द्वारा जिस तरह से मुठभेड़ को लेकर उपजे सवालों से किनारा कर लिया गया है उससे यह साफ जाहिर होता है कि एनकाउंटर के लिए पुलिस द्वारा गढ़ी गई सारी ’थ्योरी’ में ही काफी सूराख हैं।
ये सूराख ऐसे हैं जिनके संतोषजनक जवाब किसी भी मंत्री या पुलिस अधिकारी के पास नहीं हैं।
पुलिस और राजनेताओं के बयानों का विरोधाभास भी इस समूचे ’एनकाउंटर’ को फर्जी बता देता है।
इस घटना के तत्काल बाद, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चqहान द्वारा जिस तरह से पुलिस और सुरक्षा बलों की पीठ थपथपाई गई और फिर सवाल उठने पर इस घटना की राज्य स्तरीय जांच से ही इनकार कर दिया गया उससे भी घटना की विश्वसनीयता पर संदेह काफी ’गहरा’ हो जाता है।
ऐसा लगता है कि उच्च राजनैतिक ताकतों के इशारों पर पुलिस द्वारा बेहद ठंडे दिमाग से इन हत्याओं को अंजाम दिया गया।
बहरहाल, इस संदिग्ध एनकाउंटर में कानूनी और लॉजिकल पेचीदगी तो अपनी जगह पर है ही, और उसके जवाब निष्पक्ष तौर पर न्यायिक प्रक्रिया को पूरा करने के लिए तलाशे ही जाने चाहिए। लेकिन, इस संदिग्ध एनकांउटर को उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भाजपा द्वारा जिस तरह से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए न केवल प्रचारित बल्कि जरूरी बताया जा रहा है वह बहुत खतरनाक है।
उत्तर प्रदेश भाजपा द्वारा जिस आक्रामकता से पुलिस की इस कार्यवाही को सार्वजनिक रूप से ’जस्टिफाई’ करते हुए मोदी और शिवराज सरकार का गुणगान किया जा रहा है, तथा आतंकवादियों का ऐसा ही इलाज होना चाहिए जैसी बातें कही जा रही हैं उससे यह साफ जाहिर है कि मोदी सरकार पोटा से भी खतरनाक और काला कानून को लाने की तैयारी कर रही है।
दरअसल, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब फर्जी एनकाउंटरों का चुनावी इस्तेमाल करने की कोशिश भाजपा द्वारा न की गई हो। गुजरात में सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी तथा बहु चर्चित इशरत जहां के मामले को अमित शाह द्वारा भरे मंच से गुजरात के विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान न केवल ’जस्टीफाई’ किया गया बल्कि इसको और मजबूत करने और पुलिस को आतंकवाद के मामले में असीमित अधिकार दिए जाने की आवश्यकता भी बताई गई।
आतंकवाद से निपटने के ज्यादातर मामलों में पुलिसिया ऑपरेशन संदिग्ध ही रहे हैं।
यहां यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि इन फर्जी एनकाउंटरों के बाद, नरेन्द्र मोदी भले ही हिन्दू हृदय सम्राट की भूमिका में पूरे देश में उभरे हों, लेकिन जिन पुलिस अधिकारियों ने मोदी के राजनैतिक लाभ के लिए इन फर्जी एनकाउंटरों को रचा और अंजाम दिया-ज्यादातर जेलों में सड़ रहे हैं।
यह बात तो तय है कि सिमी संदिग्धों का यह एनकाउंटर भले ही शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश की राजनैतिक गलियारे से निकालकर दिल्ली की राजनीति में शिफ्ट कर दे, लेकिन वे पुलिस अधिकारी जिन्होंने इसे अंजाम दिया, देर सबेर जेल में सड़ेंगे-यह लगभग तय है।
अगर देखा जाए तो पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्टाइक के प्रचार के बाद, यह हाल की दूसरी सबसे बड़ी घटना है जिसे भाजपा द्वारा उत्तर प्रदेश में चुनावी लाभ के लिए न केवल प्रचारित किया जा रहा है बल्कि देश की सुरक्षा के नाम पर सवाल नहीं उठाने की बात तक कही जा रही है।
ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि जिन लोगों द्वारा इस एनकाउंटर को संदिग्ध बताया जा रहा है वे सब देशद्रोही हैं।
कुल मिलाकर भाजपा द्वारा इस एनकाउंटर का पूरा इस्तेमाल अपने राजनैतिक फायदे के लिए खुलकर उत्तर प्रदेश में किया जा रहा है ताकि पूरा समाज गैर हिन्दू और हिन्दू में विभाजित हो जाए और भाजपा द्वारा चुनाव जीत लिया जाए।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भाजपा द्वारा केवल विकास के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने से पूरी तरह से बचा रहा है। भाजपा के नेता भले ही यह लाख दावा करें कि वह केवल विकास के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ेंगे, लेकिन हालात इस ओर कतई इशारा नहीं करते।
दरअसल मोदी से आम जनता की जो अपेक्षाएं थीं, वह सब बुरी तरह से फेल हुई हैं।
मोदी सरकार ने जिस अच्छे दिन का वादा किया था वे सब ’हवा’ हो गए हैं।
अब मोदी सरकार को यह डर सता रहा है कि कहीं उससे लोग अच्छे दिनों के बारे में सवाल जवाब न शुरू कर दें इसलिए अप्रासंगिक प्रश्नों के भ्रम जाल को खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है।
चूंकि उत्तर प्रदेश का चुनाव केन्द्र की मोदी सरकार की लोकप्रियता का ’मध्यवर्ती’ टेस्ट जैसा है, लिहाजा भाजपा द्वारा किसी भी कीमत पर उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने की कोशिशें की जा रही हैं।
वैसे भी, मोदी का दिल्ली की सत्ता में पहुंचना केवल उग्र ’हिन्दुत्व’ के कारण ही संभव हो पाया लिहाजा अपने अस्तित्व रक्षा के लिए एक बार फिर से भाजपा सीधे अपने ’फइनल’ दांव पर आ गई है।
भाजपा के पास जो अंदरूनी रिपोर्ट आ रही है उसमें उसके पास यूपी का सवर्ण वोट अभी भी बचा हुआ है।
भाजपा का प्रयास किसी तरह से दलित और पिछड़ा वोट बैंक हथियाने का है। और ऐसा केवल उग्र हिन्दुत्व की राह पर चल कर ही किया जा सकता है जिसमें मुसलमानों और इस्लाम के दानवीकरण के प्रचार से दलितों और पिछड़ों को डराया जा सके और इस तरह से उन्हे भाजपा से जोड़ा सके।
हलांकि, भाजपा के इस प्रयास का नुकसान बसपा और सपा को बहुत ज्यादा हो सकता है।
अगर गौर करें तो इस घटना पर पर ज्यादातर राजनैतिक दलों का बयान आया किन्तु समाजवादी पार्टी और बसपा के पास कोई जवाब ही नहीं है। मायावती अगर इस एनकाउंटर का संदिग्ध बताती हैं तो साफ है कि दलित वोटर हिन्दुत्व की सुरक्षा करने भाजपा के साथ चला जाएगा। अगर सही बताती हैं तो फिर मुसलमान बिदक जाएगा। यही हाल समाजवादी पार्टी का भी है।
ये दोनों दल केवल मुसलमानों के वोट बैंक के सहारे अपनी चुनावी नाव चलाना चाहते हैं लेकिन गलत को गलत कह पाने की हिम्मत तक इनमें नहीं है।
दरअसल, मोदी के उभार के बाद उग्र हिन्दुत्व की आंधी के आगे अब ’सॉफ्टकोर’ हिन्दुत्व का कोई भविष्य नही रह गया है।
अगर भाजपा इसी उग्र हिन्दुत्व की राह पर आगे बढ़ती रही तो फिर इसमें कोई संदेह नहीं है कि सपा और बसपा अपने आखिरी दिन गिनने लगेंगे। लेकिन इसके साथ ही भाजपा जिस राह पर चल पड़ी है वह फासीवाद और इंसानियत के कत्ल का एक ऐसा रास्ता है जिसका क्लाइमेक्स देश के एक और विखंडन तक जाता है।
सबसे शर्मनाक है आम जनता की यह आपराधिक चुप्पी, जो यह मान चुकी है कि मोदी सरकार जो कर रही है उसी की सुरक्षा में कर रही है। लेकिन यह चुप्पी एक दिन खुद उसे और इस देश को खात्मे के कगार पर ला देगी। जरूरत है इस आपराधिक चुप्पी को तोड़ने की।
क्या इसके लिए हम तैयार हैं।


