हम भी भाईचारे के घरों को बनाते रहे

*****************************

वो हैं कि राहों में कांटे बिछाते रहे

खुदा की कसम हम मुस्कुराते रहे।

अंधेरे बहुत सारे बिखेरे थे मगर

हम भी लोगों को राहें दिखाते रहे।

लोगों को उसने भड़काया तो बहुत

मगर लोग फिर भी आते जाते रहे।

उन्होंने रौंद डाले सारे के सारे रिश्ते

पर लोग हैं कि रिश्तों को निभाते रहे।

बाधाएं तो उसने खडी की थीं बहुत

परंतु हम भी अवरोधों को हटाते रहे।

आखिर हमने दुश्मनों को हरा ही दिया

हम उनके हर दाव पर मुस्कुराते रहे।

नफ़रतों ने तो ढहाये हैं बहुत सारे घर

हम भी भाईचारे के घरों को बनाते रहे।

मुनेश त्यागी