We Delay In Recognizing Baddies, Letting Them Be Desperate By Calling Them "Mobs", It's A Dangerous Sign

एक प्रोफेसर थे। प्रगतिशील। कवि भी। संपादक भी। हर हफ्ते अपने कमरे में बैठकी लगाते थे। चर्चा होती थी दुनिया जहान की। बैठका किताबों से भरा पड़ा था। पर्याप्‍त आतंक पड़ता था आगंतुकों पर। एक बैठकी में एक बार संयोग से एक कवि पुलिसवाले ने आने की इच्‍छा जाहिर कर दी। प्रोफेसर घबरा गया। उसने एक दिन पहले से कमरा सेट करना शुरू किया। सारी राजनीतिक किताबें पीछे ठेल दीं और सारी साहित्यिक किताबें सामने लगा दीं। लाल सूरज वाले कविता-कैलेंडर और कविता-पोस्‍टर भी बदल दिए। प्राकृतिक टाइप पोस्‍टर लगा दिए। सब मैनेज हो गया। कवि पुलिसवाला शाम को आया। उसने आंखों ही आंखों में कमरे का करीबी मुआयना किया। लौट गया। प्रोफेसर की जान में जान आई। यह बात आज से दो दशक पहले की है।

उन्‍हें पता था अग्निवेश को पीटना है इसलिए उन्‍होंने पीट दिया

यह किस्‍सा याद इसलिए आया क्‍योंकि आज ऐसे ही बात चल रही थी कि भाजपाइयों ने अटलजी के अंतिम दर्शन करने गए स्‍वामी अग्निवेश को क्‍यों बेवजह पीट दिया। अचानक एक बात आई- उन्‍हें पता है कि अग्निवेश को पीटना है इसलिए उन्‍होंने पीट दिया। यह सुनकर औचक तो हंसी छूट गई लेकिन बाद में समझ आया कि यह तो दिव्‍य ज्ञान था। अब देखिए, मोतिहारी में एक शिक्षक को कुछ लोगों ने पीट दिया। पीटते हुए उन्‍हें वीडियो में यह कहते सुना जा सकता है, ‘’कन्‍हैया कुमार बनेगा?”

एक शब्‍द होता है भदेस में- चिन्‍हवा देना। आज जिन लोगों और संस्‍थाओं ने मिलकर नियमित रूप से किसी न किसी को मारने-पीटने का राष्‍ट्रीय माहौल बना दिया है, उन्‍होंने दरअसल कुछ विशेषणों से कुछ श्रेणियों और व्‍यक्तियों को चिन्‍हवा दिया है। मसलन, जेएनयू से जुड़े आदमी की एक ही उपयोगिता है हाथ की खुजली मिटाना। कश्‍मीर, दलित या मुसलमान के बारे में थोड़ा सा दिमाग लगाने वाले आदमी को पीटा जाना स्‍वाभाविक है। गाय पर निबंध तय कर देगा कि आप पीटे जाने लायक हैं या पोसे जाने लायक। मीडिया ने बड़ा खेल किया है। एंकरों ने नाम ले लेकर व्‍यक्तियों को चिन्‍हवा दिया है कि फलाने की एक ही दवाई, जूता चप्‍पल और पिटाई। पीटने वाले कौन हैं? बेपहचान, बेचेहरा।

अपवाद हैं वे दो लड़के जिन्‍होंने उमर खालिद पर गोली चलाने का दुस्साहसिक दावा किया है। वे चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह से प्रेरित हैं। उन्‍हें लगता है कि उमर खालिद को मार देना राष्‍ट्रीय कर्तव्‍य है। वे शहीदाना अंदाज़ में खुद को पेश कर रहे हैं। यह नया ट्रेंड है। अब पीटने वाला खम ठोक कर कहेगा कि मैंने राष्‍ट्रीय कर्तव्‍य पूरा किया है। आओ, पकड़ो। हमने खलनायकों को पहचानने में देरी की, उन्‍हें ‘’मॉब’’ कह कर बेचेहरा रहने दिया। नतीजा- उन्‍होंने खलनायकों को नायक बनाने का नुस्‍खा ईजाद कर लिया। यह खतरनाक संकेत है। अब संभावित हत्‍यारा हमारे सामने होगा और हम मन ही मन में मनाएंगे कि कहीं हमें भी वह चीन्‍ह न ले। एकदम प्रोफेसर की तरह हमें तैयारी करनी होगी।

अभिषेक श्रीवास्तव