हर राज्य को गुजरात बनाना है! यह डेरा की सफलता नहीं, यह समाजवादी-आंबेडकरवादी राजनीति की असफलता का साइड इफेक्ट है
हर राज्य को गुजरात बनाना है! यह डेरा की सफलता नहीं, यह समाजवादी-आंबेडकरवादी राजनीति की असफलता का साइड इफेक्ट है
नई दिल्ली। अपनी साध्वियों के बलात्कार के आरोप में शुक्रवार को डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा राम रहीम को सीबीआई की विशेष अदालत की ओर से दोषी करार दिये जाने के बाद उनके समर्थकों द्वारा किये गये हिंसक प्रदर्शन की खबरें जहां मीडिया में जोर-शोर से छाई रहीं, वहीं सोशल मीडिया पर भी इसकी गर्मजोशी के साथ चर्चा की गयी।
डेरा सच्चा सौदा के समर्थकों के पंचकूला में हुए जुटान और हिंसा पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सी मंडल ने लिखा है कि यह डेरों की सफलता नहीं, आंबेडकरवादी-समाजवादी- समतावादी राजनीति की असफलता है।
अपनी फेसबुक टाइमंलाइन पर उन्होंने लिखा है कि हरियाणा, पंजाब और साथ लगे राजस्थान का हिस्सा सामाजिक आंदोलनों की दृष्टि से बंजर साबित हुआ है।
श्री मंडल ने अपने अपनी फेसबुक टाइमंलाइन पर लिखा है कि यह देश में अनुसूचित जाति की सबसे सघन आबादी वाला इलाक़ा है। इन इलाकों में हर तीसरा आदमी एससी है। यहां समाजवादी आंदोलन कभी नहीं पनप सका। मंडलवादी-समतावादी राजनीति से भी यह इलाका अछूता रहा।
बीएसपी का यहां का उभार भी क्षणिक साबित हुआ। बाकी का आंबेडकरवादी आंदोलन भी सीमित ही रहा।
श्री मंडल ने ने लिखा है कि ऐसे में जनता के पास कोई सपना नहीं बचा। कोई भी नहीं था, जो बेहतर समाज का सपना दिखाए। इसी शून्य में नीचे की जातियां डेरों की शरण में चली गईं। यहां का भाग्यवाद उन्हें सुकून देता है। साथ बैठकर प्रवचन सुनना ही इनका एंपावरमेंट है।
अपना मंदिर है ब्राह्मणों का
दिलीप सी मंडल ने लिखा है कि कोई ब्राह्मण तो डेरों में जाता नहीं है, उनका तो अपना मंदिर है। डेरा नीची जातियों के लोगों के लिए हैं। हालांकि, कोई भी बाबा नीचे की जातियों का नहीं है। ये बाबा चुनाव के समय जनता को इस या उस पार्टी को बेच देते हैं। जनता के पास विकल्प क्या था?
आंबेडकरवादियों ने जमीन खाली कर दी, बाबाओं ने पकड़ ली
दिलीप सी मंडल लिखते हैं कि जिसने विकल्प दिया, लोग उसके पास चले गये। आंबेडकरवादियों ने जमीन खाली कर दी, बाबाओं ने पकड़ ली। जनता के पास आंबेडकरवादी विकल्प था कहां? इसलिए डेरा भक्तों को दोष मत दीजिए।
उन्होंने लिखा कि यह समाजवादी-आंबेडकरवादी राजनीति की असफलता का साइड इफेक्ट है। समाजवादी-आंबेडकरवादी सपनों के बिना समाज का डेरा बन जाता है. वहां ऐसे लोग राज करते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने लिखा -
“मुझे पहले भी लगता था कि इस देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को किसी दलित-आदिवासी समूह, किसी अल्पसंख्यक समुदाय या उनके किसी संगठन से ज्यादा खतरा नहीं है। उनमें ज्यादातर समूह उत्पीड़न के शिकार हैं। वे उससे मुक्ति के लिए जब आवाज उठाते हैं तो हम उन सबको उग्रवादी बताने लगते हैं। पर जो सचमुच बड़े उग्रवादी और आतंकी हैं, उन्हें हम 'बाबा', 'स्वामी', 'भक्त', 'रक्षक' या धर्मभावना से प्रेरित 'स्वयंसेवक' मान लेते हैं(साफ कर दूं, मैं बहुसंख्यक समाज के अच्छे और रचनात्मक संत-महात्माओं के लिए यह बात नहीं कह रहा हूं, सिर्फ वैसे तत्वों के लिए कह रहा हूं, जैसे कुछ समूह आज हरियाणा-पंजाब के कस्बों में किसी विदेशी हमलावर की तरह हिंसा, हत्या, आगजनी और लूट मचाये हुए हैं)!”
उर्मिलेश जी लिखते हैं,
“सच ये है कि देश को सबसे ज्यादा खतरा बहुसंख्यक समुदाय के ऐसे ही संगठनों और गिरोहों से है, जिनकी आस्था, सनक और अज्ञान से समय-समय पर विध्वंस की काली आंधी पैदा होती रहती है! अगर समाज, सियासतदान और मीडिया को जल्दी ही सद्बुद्धि नहीं आई तो इस तरह के 'आस्थावान' उपद्रवी-उग्रवादी संगठन और गिरोह एक दिन महान् संभावनाओं से भरे इस देश को रौंद डालेंगे।“
उर्मिलेश ने लिखा,
“महामहिम, 'महा-जंगलराज' इसे कहते हैं, जो इस वक्त पूरी दुनिया हरियाणा में घटित होते हुए टीवी के पर्दे पर देख रही है! इस शासन के कार्य काल में ऐसा दूसरी बार। इसके पहले आरक्षण समर्थन और विरोध के नाम पर हुआ था! कितने लोग मारे गए हैं, कितने भवन और कितने दफ्तर जलाये गये हैं, उसका हिसाब फिलवक्त मुश्किल!”
कोलकाता विश्वविद्यालय में हिन्दी के पूर्व प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी ने फेसबुक पर कई छोटी-छोटी टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने लिखा -
“हर राज्य को गुजरात बनाना है!:
श्री चतुर्वेदी ने लिखा -
“ये संत जानलेवा ही क्यों होते हैं,5मर चुके हैं,100से ज्यादा गाडियां स्वाहा हो चुकी हैं।गजब का दंगा दल है।
कहीं सुना है कि बलात्कारी को बचाने के लिए जनता हिंसा पर उतर आए,यह तालिबान का मार्ग।“
पंचकूला की तस्वीर कल के भारत की तस्वीर है - अवनीश मिश्र
दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर अवनीश मिश्र ने सवाल पूछा
“पेलेट गन वाला रावत नजर नहीं आया न?
एक बेकसूर को सेना की जीप के आगे बाँधने वाले गोगोई को मेडल देने वाला रावत भी नजर नहीं आया न?
सारी मर्दानगी कश्मीर की जनता के लिए बचा कर रखी है इस बड़बोले ने।”
उन्होंने कहा –
“याद कीजिये इस बलात्कारी की सड़ी हुई फ़िल्म मैसेंजर ऑफ गॉड जिसे स्वस्थ आदमी के दिमाग पर परमाणु बम का हमला से कम नहीं कहा जा सकता, को सारे नियमों को ताक पर रखकर सेंसर बोर्ड से पास कराने के लिए मोदी सरकार ने सेंसर बोर्ड की तब की अध्यक्ष लीला सैमसन को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया था। आप इससे ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इस आगजनी और हिंसा के तांडव पर हरियाणा की राज्य सरकार और केंद्र की मोदी सरकार चुप क्यों है। “


