"हस्तक्षेप" को लोकतंत्र और मीडिया में अनुपस्थित जन सुनवाई का राष्ट्रीय मंच बनाना चाहते हैं हम
"हस्तक्षेप" को लोकतंत्र और मीडिया में अनुपस्थित जन सुनवाई का राष्ट्रीय मंच बनाना चाहते हैं हम

हम वैकल्पिक मीडिया को लोकतंत्र और मीडिया में अनुपस्थित जन सुनवाई का राष्ट्रीय मंच बनाना चाहते हैं
हम मंकी बातों के साथ हिंदू साम्राज्यवाद के उग्र राष्ट्रवाद की कूटभाषा को डीकोड करने के लिए माननीय राम पुनियानी, आनंदस्वरुप वर्मा, दिवंगत असगर अली इंजीनियर, इरफान इंजीनियर, शेष नारायण सिंह, आनंदस्वरूप वर्मा, आनंद तेलतुंबड़े, सुभाष गाताडे, नीलाभ, विद्याभूषण रावत, एस आर दारापुरी जैसे विशेषज्ञों को लगातार हस्तक्षेप के मंच पर पेश कर रहे हैं, जहां विद्वतजनों और विशेषज्ञों के साथ साथ आम लोगों और खासतौर पर उत्पीड़ित वंचित आवाम की हर आवाज की गूंज देश-दुनिया में पैदा करना हमारा एकमात्र मकसद है।
हम संघ परिवार के अंबेडकरी विमर्श का लगातार खुलासा कर रहे हैं तो अर्थव्यवस्था से बहुसंख्य जनगण के बहिष्कार के नरमेधी अश्वमेध की गतिविधियों की एक एक सूचना आपको तत्काल लगातार देने की अपनी क्षमता से बढ़कर कोशिशें कर रहे हैं।
दरअसल हम वैकल्पिक मीडिया को लोकतंत्र और मीडिया में अनुपस्थित जन सुनवाई का राष्ट्रीय मंच बनाना चाहते हैं और आपको भी इस मंच का अपरिहार्य हिस्सा बनने का खुल्ला न्यौता रोज रोज दे रहे हैं।
इसी सिलसिले में माफ कीजिये मित्रों, हमने आज भी अमलेंदु से कहा कि “हस्तक्षेप” को जारी रखने के लिए बेहद जरूरी समर्थन की अपील अंग्रेजी में अब जारी कर ही दी जाये, क्योंकि हिंदी समाज में सामाजिक यथार्थ के मद्देनजर विमर्श का अभ्यास सिरे से खत्म है और हमारी बार बार अपील के बावजूद जब कहीं से कोई प्रतिक्रिया भी नहीं मिल रही है तो उम्मीद छोड़ ही देनी चाहिए।
धर्म कर्म में निष्णात हिंदी जनता का शायद सामाजिक यथार्थ और बदलाव के विमर्श में कोई दिलचस्पी नहीं है और उनकी तरफ से अनाप-शनाप खर्च चाहे जितने हो, हमें मदद करने वाला कोई नही है।
गनीमत है कि हम गलत साबित हुए।
हिंदी सिर्फ हिंदी भाषियों की भाषा नहीं है। हिंदी में लिखा अहिंदी भाषी लोग भी व्यापक पैमाने पर पढ़ते हैं।
हिंदी पट्टी से अभी हमें एक जवाब मिला लेकिन महाराष्ट्र के साथियों ने हस्तक्षेप जारी रखने के लिए हरसंभव मदद करने का वायदा किया है।
मदद मिले न मिले भविष्य की बात है, लेकिन इससे हमारा हौसला जरुर बुलंद हुआ है। महाराष्ट्र से अगर वायदे के मुताबिक मदद मिलने लगे तो हम बहुत जल्द हस्तक्षेप का मराठी पेज भी शुरू करेंगे बशर्ते कि लिखने वाले भी हों। जिस क्षेत्र से भी हमें उनकी भाषा में तोपखाना चलाने की इजाजत और मदद होगी, हम यकीनन वैसा ही करेंगे।
जिनको भी लगें कि हमारे साथ खड़ा होना जरूरी है, वे तुरंत अमलेंदु को फोन लगायें और बतायें कि वे कैसे हमारी मदद कर सकते हैं। हमें देश के कोने-कोने से हकीकत बयां करने वाले हकीकत के साथ खड़ा होने वाले साथियों की तलाश है।
अमलेंदु का फोन नंबरः 09312873760
अमलेंदु का ईमेलः amalendu.upadhyay(at)gmail.com
http://www.hastakshep.com/old/contact-us
दरअसल हम हर भारतीय भाषा में संवाद तेज करना चाहते हैं।
इस सिलसिले में बांग्ला में पेज पहले से लगा है। लेकिन बांग्ला में यूनीकोड में भारत के बंगालियों को लिखने का अभ्यास नहीं है और एक ही लेखक को बार बार दोहराया नहीं जा सकता, जबकि दूसरे न लिख रहे हों। सीमा के आरपार पाठक तो मिले और बांग्लादेश से नियमित कांटेट आ रहा है लेकिन भारत पर बांग्ला में लिखने वाले लोग नहीं है। इसलिए नियमित बांग्ला पेज का कांटेट अपडेट कर नहीं पा रहे हैं। लोकबल और साधनों की किल्लत ने हमारे हात पांव बांध दिये हैं।
मसलन हम तुरंत पंजाबी में विमर्श चाहते हैं। पंजाब से मदद की उम्मीदें भी हैं। मसला फिर वही है कि हिंदी में यूनीकोड यूनिवर्सल है तो लिखने और पढ़ने वाले लोग नहीं है। दूसरी ओर यूनीकोड में लिखने के अभ्यस्त पंजाब के लोग भी नहीं है। वरना हम पंजाबी में तुरंत पेज शुरु करना चाहते हैं।
हम कोई बंगला बांधने के लिए मदद नहीं मांग रहे हैं। अपने मंच को जारी रखने के जरूरी खर्च को वहन करने में चूंकि हम असमर्थ होते जा रहे हैं, इसलिए आपसे न्यूनतम मदद मांगी जा रही है।
हमारे लोग खाल्ली पड़े हैं। हम उनकी सेवाएं मांग नहीं सकते क्योंकि हम उनकी आजीविका में कोई मदद करने की हैसियत में नहीं हैं।
हम भीतर ही भीतर अश्वत्थामा अपने ही जख्म चाटते हुए रोज खून से लथपथ हैं, लेकिन हिंदी समाज हमारे साथ नहीं है, उनके साथ हैं जो मंकी बातें प्रसारित करके लोकतंत्र को फरेब में तब्दील करके जनसंहार संस्कृति के झंडे दुनियाभर में फहराने के लिए सारे साधन संसाधन न्योच्छावर कर रहे हैं।
हम नहीं जानते कि हस्तक्षेप हम कब तक चला पायेंगे। लेकिन जब तक चलेगा वह जन सुनवाई का मंच बना रहेगा और उसका तेवर बदलेगा नहीं।
दरअसल, कोलकाता से हमने जो मई दिवस मनाने की अपील के साथ परचा जारी किया है, देश के बाकी हिस्सों की तरह महाराष्ट्र में भी उसे छापने की तैयारी है।
वह परचा पढ़ने के बाद नागपुर में बामसेफ के पूर्व अध्यक्ष साथी इंजीनीयर रामटेके ने शंका जतायी कि परचा में भारत के कायदे कानून और संवैधानिक व्यवस्था बनाने की जो बातें हम कर रहे हैं, वे ही बातें मोदी क्यों कर रहे हैं।
इससे पहले हमारा संवाद बंगलूर के प्रभाकर के अलावा दक्षिण के साथियों से संघ परिवार के अंबेडकरी एजंडा के सिलसिले में हुआ है, जिसे हमने हस्तक्षेप पर साझा भी किया है।
हमने उनसे निवेदन किया कि अगर मोदी और संघ परिवार बाबासाहेब के इतने बड़े अनुयायी हैं तो बाबासाहेब के बनाये सारे के सारे श्रम कानूनों को वे कैसे खत्म कर पाये, इसी सवाल का जवाब मांगने के लिए देश भरमें केसरिया के खिलाफ रंगों का इंद्रधनुष तानने के लिए हम हर गांव हर गली में मई दिवस मनाने की अपील कर रहे हैं।
हमने उनसे निवेदन किया कि अगर मोदी और संघ परिवार बाबासाहेब के इतने बड़े अनुयायी हैं तो बाबासाहेब के हिंदू कोड बिल के खिलाफ बाबासाहेब के पुतले क्यों जलाते रहे वे लोग। हस्तक्षेप पर लगे सुभाष गाताडे के आलेख श्रृंखला की पहली किश्त को गौर से पढ़ियेः
http://www.hastakshep.com/old/book-excerpts/2015/04/21/संघ-के-कौन-से-अम्बेडकर
हमने उनसे निवेदन किया कि अगर मोदी और संघ परिवार बाबासाहेब के इतने बड़े अनुयायी हैं तो संविधान सभा के गठन के दौरान संविधान निर्माण प्रक्रिया का विरोध करते हुए मनुस्मृति को ही भारत का संविधान बनाने का अभियान क्यों चलाया संघ परिवार ने। जो आज भी जारी है।
हमने उनसे निवेदन किया कि अगर मोदी और संघ परिवार बाबासाहेब के इतने बड़े अनुयायी हैं तो मेकिंग इन गुजरात के पीपीपी माडल के तहत संपूर्ण निजीकरण, संपूर्ण विनेवेश, संपूर्ण विनियमन और संपूर्ण विनियंत्रण के शत प्रतिशत एजंडा के साथ विधर्मियों की घर वापसी के नाम पर नस्ली नरसंहार का आयोजन क्यों है?
हमने उनसे निवेदन किया कि अगर मोदी और संघ परिवार बाबासाहेब के इतने बड़े अनुयायी हैं तो बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडा पर खामोश संघ परिवार क्यों?
पलाश विश्वास
Note – We are not affiliated to any political party or group, but We are not impartial OR neutral. We are public advocates. We do not accept any kind of pressure on our ideology. Therefore, if you help us financially, we will not accept any kind of pressure in return for that.
हम वैकल्पिक मीडिया को लोकतंत्र और मीडिया में अनुपस्थित जन सुनवाई का राष्ट्रीय मंच बनाना चाहते हैं


