कहीं सुना एक गाना । पता नहीं कि यह गाना था या टीन –कनस्तर पीट कर गला
फाड़ चिल्लाना था । अपने देश में यह बहुत चलता है – गला फाड़ कर चिल्लाना
। तो गाना यह था कि ‘ तू जो बोले हां तो हां , तू जो बोले ना तो ना !‘
यह हां – हां जी , ना – ना जी हमारे देश की संसद में पहले भी हो चुका है
। दोनों बार इसके के कारण वही वही चरण पादुका प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
थे । हम इन्हें अराजनीतिज्ञ मानते हैं । पर कभी कभी यह घोड़े की ढाई चाल
भी चल देते हैं । पहली बार भी एटमिक – एटमिक करते हुए अपनी सरकार को दांव
पर लगा दिया । ईमानदारी पूर्वक बेईमानी से सरकार भी बचा ली । फंस गए
माकपा के समर्पित सोमनाथ बाबू । दादा पार्टी से बाहर कर दिए गए ।
अबकी बारी मुरली मनोहर जोशी की है । अपनी भ्रामक जनता पार्टी की बात
मानें तो लोकलेखा समिति के दरबार में प्रधानमंत्री को घुसने न दें । अपनी
मानें तो जैसा लक्षण दिख रहा है कि जीवन भर जिस पार्टी में रहे , उससे
बाहर हो जाएं । भाजपा अड़ी है संयुक्त संसदीय समिति के गठन पर ,
प्रधानमंत्री ने बीच का रास्ता निकाला कि चलो हम पेश हो जाते हैं संसद की
लोकलेखा समिति के दरबार में । यह वही है जिसे हिंदी में कहा जाता है न
भूतो , न भविष्यती – पहले ऐसा कभी न हुआ कि प्रधानमंत्री लोलेस के सामने
अपनी सफाई दे । भैया , पहले भी कोई चरण पादुका प्रधानमंत्री हुआ क्या ।
नहीं तो हो जाने दीजिए । यह इतिहास गढ़ने का क्षण है ।
यूं भी देखा जाए तो 2010 इतिहास रचने – गढ़ने – बनने – बनाने का वर्ष रहा
है । कल तक का बेचारा चपरासी बड़ा प्रसन्न है कि उसे ही घूसखोर कहते थे ।
अब वह शान से कहता है कि बड़े बड़े लोग भी हमारी बिरादरी में शामिल हैं ।
यहां पर हमने थोड़ा सा शोध किया है । यह खोजबीन वैसी ही है जैसी बिहार
में पिछले पांच साल से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रिय एक संस्था करती आ
रही है । गलत आंकड़ों की भरमार है बिहार में – देश में भी यह काम हो रहा
है । निर्वहन कुमार बनने के बाद नीतीश कुमार ने तो प्रायश्चित करने की
ठान ली कि देश के विदेश बिहार में गरीबी रेखा के नीचे से गुजरते – बसरते
लोगों की पहचान के लिए बीपील आयोग गठित होगा । निर्वहनीय परंपरा में इस
आयोग में अनेक विशेषज्ञ चंपू होंगे कि चंपू कमिटी के प्रधान सचिव आरसीपी
को अपनी अफसरी याद आ जाएगी । योजना कुमार मोदी की सारी वित्तीय व्यवस्था
मनमोहनी हो जाएगी ।
लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार देश के विदेश हमारे बिहार की हैं । बिहार की
एक बहुत पुरानी परंपरा रही है – सेर भर सतुआ , मधुरी चाल / आज न पहुंचब
पहुंचब काल । इसी परंपरा के तहत 2010 के खत्म होने के पहले उन्होने
संयुक्त संसदीय समिति के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुला ली है । बैठक में
सबसे पहले कैलेंडर के नए साल 2011 की शुभकामनाएं दी जाएंगी । शुभकामनाओं
के साथ लंच होगा । सुषमा जी सिंदूर अपनी मांग पर अड़ी रहेंगी ।
राष्ट्रमाता सोनिया गांधी मौन व्रत धारण कर लेंगी । संकटमोचक प्रणव बाबू
कुछ अभूतपूर्व बात करेंगे । बैठक में इस बात की सहमति होगी कि हम असहमति
पर सहमत हैं । दिन भर यह कुत्ता घसीटी फोंफापार्टी की पट्टी पर होगा और
रात भर गला फाड़ बहस होगी । सब अपनी अपनी बात पर अड़े होगे । संसदीय
परंपरा के आकाश पर अनेक तंबू खड़े होंगे । आखिर बैठक सर्वदलीय है । दलों
में अनेक दल दल हैं । हमारा दलदल भ्रष्टाचार का अतुल्य भारत है । इंडिया
का कॉरपोरेट सेक्टर इससे नाराज हो सकता है कि संसद में उसका बहुमत है ,
फिर भी कोई उसकी नहीं सुनता । जो सुनता था , वह नहीं गुनता है । बेचारा
फंसा है । अपने ही बनाए दलदल में धंसा है ।
यही तो है ‘ तू जो बोले हां तो हां , तू जो बोले ना तो ना !‘

जुगनू शारदेय