Hindi writer shows strength - Uday Prakash announces return of Sahitya Academy Award

नई दिल्ली। सरकार बदलने के बाद तमाम हिंदी के साहित्यकार की लेखनी कहानियां और कविता लिखने में व्यस्त हैं, लेकिन हिंदुत्ववादियों द्वारा किये जा रहे लेखन का जवाब नहीं दिया जा रहा है। बड़े-बड़े लेखक सत्ता के प्रतिष्ठानों में अपने को जोड़ने के लिए तरह-तरह के उपाय व टोटके कर रहे हैं। किसी को राम चरित मानस याद आ रही है, तो किसी को वैदिक व्यवस्था में साम्यवाद की परिकल्पनाएं नजर आ रही हैं।

कुल मिलाकर शुद्ध फ़ासिस्ट सरकार में सुख प्राप्त करने के लिए जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं। इसी वजह से हिंदी के साहित्यकार डींगे तो बहुत ऊँची-ऊँची मारते हैं, लेकिन अन्दरखाने वह सड़ी-गली व्यवस्था से जुड़े रहते हैं। व्यवस्था विरोध न करने के कारण उनको कोई मारने-पीटने की बात जाने दीजिये, नाम आने पर हँस कर लोग टाल जाते हैं।

एम एम कलबुर्गी की हत्या (Assassination of MM Kalburgi) के बाद बहुत सारे प्रगतिशील वैज्ञानिक सोच वाले साहित्यकारों की लंगोट नहीं बंध पा रही है, ऐसे समय में हिंदी के साहित्यकार उदय प्रकाश ने प्रोफेसर एमएम कलबुर्गी की हत्या पर विरोध जताते हुए अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का निर्णय लिया है।

उदय प्रकाश को 'मोहन दास' नामक कृति पर २०१०-११ में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था।

प्रगतिशील प्रोफेसर कलबुर्गी की कर्नाटक के धारवाड़ में उनके घर में घुसकर हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या कट्टर हिंदूवादी संगठनों ने की है।

उदय प्रकाश ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा-

- पिछले समय से हमारे देश में लेखकों, कलाकारों, चिंतकों और बौद्धिकों के प्रति जिस तरह का हिंसक, अपमानजनक, अवमानना पूर्ण व्यवहार लगातार हो रहा है, जिसकी ताज़ा कड़ी प्रख्यात लेखक और विचारक तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कन्नड़ साहित्यकार श्री कलबुर्गी की मतांध हिंदुत्ववादी अपराधियों द्वारा की गई कायराना और दहशतनाक हत्या है, उसने मेरे जैसे अकेले लेखक को भीतर से हिला दिया है। अब यह चुप रहने का और मुँह सिल कर सुरक्षित कहीं छुप जाने का पल नहीं है। वर्ना ये ख़तरे बढ़ते जायेंगे। मैं साहित्यकार कुलबर्गी जी की हत्या के विरोध में 'मोहन दास' नामक कृति पर २०१०-११ में प्रदान किये गये साहित्य अकादमी पुरस्कार को विनम्रता लेकिन सुचिंतित दृढ़ता के साथ लौटाता हूँ। अभी गॉंव में हूँ। ७-८ सितंबर तक दिल्ली पहुँचते ही इस संदर्भ में औपचारिक पत्र और राशि भेज दूँगा। मैं उस निर्णायक मंडल के सदस्य, जिनके कारण 'मोहन दास' को यह पुरस्कार मिला, अशोक वाजपेयी और चित्रा मुद्गल के प्रति आभार व्यक्त करते हुए, यह पुरस्कार वापस करता हूँ। आप सभी दोस्तों से अपेक्षा है कि आप मेरे इस निर्णय में मेरे साथ बने रहेंगे, पहले की ही तरह। आपका उदय प्रकाश।

प्रोफेसर कलबुर्गी खुद भी साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे जा चुके थे।

वहीँ, हिंदी के सरकारी साहित्यकार भ्रष्टाचार भी खूब करेंगे, घूस भी खायेंगे और इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए सब कुछ करेंगे लेकिन हिंदी के साहित्यकार कभी भी जनता के साथ मोर्चे में आने से परहेज करते हैं। इस कदम के बाद अब लग रहा है कि हिंदी का साहित्यकार चेत रहा है और समाज को नयी दिशा देने के लिए आगे बढ़ रहा है। इस कदम को उठाने के लिए उदय प्रकाश जी को ढेर सारी बधाइयाँ, क्योंकि हिंदी के लेखक ने अब दम दिखाया है।

रणधीर सिंह सुमन