हिंदुत्व एजेंडे का यह ट्रंप कार्ड-ट्रंप की ताजपोशी से पहले भारत में आर्थिक आपातकाल
हिंदुत्व एजेंडे का यह ट्रंप कार्ड-ट्रंप की ताजपोशी से पहले भारत में आर्थिक आपातकाल
हिंदुत्व एजेंडे का यह ट्रंप कार्ड-ट्रंप की ताजपोशी से पहले भारत में आर्थिक आपातकाल
पलाश विश्वास
नई विश्व व्यवस्था में नागपुर तेलअबीब और वाशिंगटन गठबंधन के आधार पर अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर ग्लोबल हिंदुत्व के उम्मीदवार घनघोर रंगभेदी डोनाल्ड ट्रंप के ताजपोशी से पहले भारत में आर्थिक आपातकाल लागू हो गया है।
नये नोटों में अब लालकिला और मंगलयान चस्पा है और उनके साथ फिलहाल गांधी नत्थी हैं और गुरु गोलवलकर या सावरकर या नाथूराम गोडसे की तस्वीर फिलहाल लगी नहीं है। लेकिन लालकिले से हिंदुत्व के मंगल यान का खुल्ला अंतरिक्ष अभियान शुरु हो गया है।
भारत का हिंदुत्व का एजेंडा अब अमेरिका का एजेंडा भी है और इसलिए राष्ट्रीय प्रतीकों का इतिहास करेंसी के जरिये बदलने की कार्रवाई भी ग्लोबल हिंदुत्व की जीत का जश्न बन गया है।
हिंदुत्व एजेंडे का यह ट्रंप कार्ड है।
प्रधानमंत्री द्वारा 500 और 1000 रूपये के नोट बंद करने की घोषणा के कुछ घंटे बाद रिजर्व बैंक ने आज नयी विशेषताओं तथा नये आकार में 500 और 2000 रूपये के नोटों की नई श्रृंखला जारी की।
आरबीआई ने कहा कि पहली बार जारी हो रहे दो हजार रूपये के नोटों को महात्मा गांधी (नई) सीरिज कहा जाएगा और इसके पीछे मंगलयान मिशन की तस्वीर छपी है।
इसमें कहा गया कि इस नोट का मूल रंग गहरा गुलाबी रंग और नोट का आकार 66 मिमी गुना 166 मिमी होगा। इसमें कहा गया कि 500 रूपये के नये नोट की थीम दिल्ली का लालकिला होगी।
न संसद, न अशोक चक्र और न संविधान। थीम लालकिला का मतलब भी बूझ लें।
एक हजार के नोट से ही लोग तबाह थे और अब दो हजार के नोट एटीएम से निकलेंगे, तो हाल क्या होना है, समझ लीजिये।
बहरहाल सोना चांदी हीरे जवाहरात जैसी अकूत संपदा जब्त करने का कोई कार्यक्रम नहीं है और न विनिवेश मार्फत निवेश में सफेद हुए विदेशी जमीन से आये काले धन का किस्सा खत्म होने जा रहा है।
उद्योगों, सेवाओं और बुनियादी जरुरतों के क्षेत्र में जो निवेश है, जो अचल संपत्ति बेदखल जल जंगल जमीन और आजीविका की बदौलत है, उन्हें भी कोई खतरा नहीं है।
राजधानी नई दिल्ली वायु प्रदूषण की वजह से अभी नागपुर स्थानांतरित भी नहीं हुआ है।
गांधी को आहिस्ते से हाशिये पर खिसकाने की इस प्रक्रिया को आप हिंदुत्वकरण भी नहीं कह सकते और रिजर्व बैंक और वित्तीय प्रबंधन की स्वायत्तता का असहिष्णु सवाल उठा सकते हैं, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था या अर्थशास्त्र का कोई मामला हो न हो, विशुद्ध राष्ट्रहित के लिए सलवाजुड़ुम या फौजी हुकूमत है और गौरतलब है कि युद्ध परिस्थिति जैसे आपातकाल में सेना वायुसेना और जलसेना के प्रधानों को यकीन में लेकर राष्ट्रहित में आम जनता के खजाने का यह खुलासा है।
वित्तीय प्रबंधन में भी फौजी हस्तक्षेप और वित्तमंत्री का अता पता नहीं है।
कैबिनेट मंजूरी है और कैबिनेट में उद्योग जगत का किसी का कोई लेना-देना नहीं है सो विशुद्ध यह राजकाज फासिज्म का कारपोरेट गोरखधंधा है, यह लांछन लगाना देशद्रोह का मामला बन सकता है।
इस पर तुर्रा यह कि केंद्र सरकार ने काले धन पर रोक लगाने के लिए मंगलवार को आधी रात से 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का फैसला किया। लेकिन इसकी घोषणा रिजर्व बैंक के गवर्नर के बदले राष्ट्र को प्रधानमंत्री के संबोधन में की गयी है।
सबसे लोकतांत्रिक किस्सा तो यह है कि लंबे समय तक भाजपाई राजकाज से पहले तक आयकर और तमाम टैक्स न देने के आरोपों में घिरे केसरिया राजकाज में उपभोक्ता बाजार में सबसे बड़े ब्रांड बतौर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पछाड़कर करीब एकाधिकार कायम करने वाले पतंजलि बाबा मीडिया पर इस सर्जिकल स्ट्राइक के सबसे बड़े प्रवक्ता हैं तो रिजर्व बैंक की ओर से आधिकारिक रूप में जारी हो जाने से पहले नये दो हजार और पांच सौ रुपये के नोट की डिजाइन सोशल मीडिया पर वाइरल है।
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर राजन के बदले अब गुजरात के ही अर्जित पटेल हैं, जो प्रधानमंत्री के खासमखास हैं और रिजर्व बैंक के सभी सत्ताइस अंगों में निजी क्षेत्रों के निदेशक प्रस्थापित है।
जाहिर है कि नोट की डिजाइन के लीक होने के बाद इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि निजी क्षेत्र के निदेशकों और इस सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाने वाले लोगों की निष्ठा भी इसी तरह लीक हुई है या नहीं।
खास तौर पर यह गौरतलब है कि भारत सरकार ने आरबीआई की ओर से जारी 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने की तैयारी दस महीने पहले से ही कर ली थी।
प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और आरबीआई गवर्नर ने बडे ही गुपचुप तरीके से अपनी इस योजना का अंजाम दिया। इसकी तैयारी दस महीने से चल रही थी। दस महीने की इस तैयारी में नोटों की डिजाइन की तरह यह फैसला लीक नहीं हुआ और इस प्रक्रिया में शामिल लोगों से जुड़े कालाधन के कारोबारियों को इसकी सूचना न मिली हो तो समझ लीजिये कि रामराज्य है।
अगर लीक हुई है तो सत्तापक्ष के नजदीकी तमाम कंपनियों और घरानों का काला धन यकीन मान लीजिये कि अब तक सफेद पतंजलि है। बाकी आम जनता को साबित करना है कि उनकी जमापूंजी में काला कुछ नहीं है।
कल आधी रात से दरअसल यही कवायद शुरु हो गयी है।
आम आदमी को ही अपना दामन साफ कराने के लिए बाकायदा पहचान पत्र के साथ बैंकों में हाजिरी लगानी है।
नकदी पर रोक है। सोना पर कोई रोक नहीं है। जाहिर है कि देश भर में लोग लगातार गोल्ड की बुकिंग करवा रहे हैं। सबसे हैरत की बात यह है कि लोग सोने की बुकिंग किलोग्राम में करवा रहे हैं। किलोग्राम में सोना बुक करवाने लोग जाहिर है कि बैंकों और एटीएम पर कतारबद्ध लोगों में नहीं हैं।
कालाधन इस तरह निकल रहा है और वह सरकारी खजाने में इस तरह जमा होने लगा है और आम जनता को इसी के लिए मामूली सा त्याग करना पड़ रहा है।
जाहिर है कि इस फैसले का टांका कहीं न कहीं हिंदुत्व के नये ईश्वर डोनाल्ड ट्रंप से भी जुड़ा है। कहां जुड़ा है, वह फिलहाल बताया नहीं जा सकता।
अजीब संजोग है कि ट्रंप के अमेरिका फतह करने की पूर्व संध्या पर फासिज्म के राजकाज के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए देश के वित्तीय प्रबंधन में ऐतिहासिक फौजी हस्तक्षेप के तहत युद्धउन्मादी यह औपचारिक घोषणा की।
हालांकि आम जनता को मोहलत दी गयी है कि, 10 नवंबर से 31 दिसंबर 2016 तक आप 500 रुपये और 1000 रुपये के अपने सभी पुराने नोट बैंक या डाकघर से उचित पहचान पत्र तक दिखाकर बदल सकेंगे।
राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंडराते घने संकट के बादल की आड़ में लोकतांत्रिक संस्थाओं और आम जनता के हकहकूक पर हमलों की निरंतरता के मध्य फौजी प्रधानों से मुलाकात के बाद वित्तीय पर्बंधन अपने हाथ में लेते हुए नोटों को रद्द करने का ऐलान करते हुए आतंकवाद को लेकर पीएम मोदी ने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा कि सीमा पार से आतंकवाद को पैसा दिया जाता है। सीमा पार से जाली नोटों का धंधा हो रहा है।
रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या से लेकर जेएनयू के छात्र नजीब के मामलों में बुरी तरह फंसी सरकार विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता खत्म करके केसरियाकरण की मुहिम चला रही है तो जल जंगल जमीन आजीविका नागरिक मानवाधिकार के खिलाफ अनंत सलवाजुड़ुम जारी है और जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालयों की दो प्राध्यापिकाओं समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ एनडीटीवी पर एकदिनी प्रतिबंध कारपोरेट मीडिया बैरन प्रणव राय के आत्मसमर्पण के तहत वापस लेने के तुरंत बाद हत्या का मुकदमा दायर किया गया है।
समाने पंजाब और यूपी के चुनाव हैं।
ऐसे माहौल में जब अमेरिका में लोग नये राष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोट डाल रहे थे, राष्ट्र को प्रधानमंत्री के अभूतपूर्व संदेश के बाद सारा देश एटीएम के बाहर कतारबद्ध हो गया ताकि अगले दिन के खर्च के लिए सौ-सौ के चार नोट एक एक बार निकालकर अगले कई दिनों की रोजमर्रे की जरुरतें पूरी करने का जुगाड़ लगा सके।
कालाधन निकालने की इस कवायद का नतीजा जो भी हो, घर में रखी नकदी यकायक जादुई छड़ी से देशभर में रद्दी में बदल जाने से सामान्य जनजीवन पटरी से बाहर हो गया।
खासकर शादी व्याह के लिए निकासी आत्मघाती साबित हो गयी।
खेती बाड़ी में लगे जनसमुदायों की नकद लेनदेन की वजह से देहात गहरे संकट में है।
वेतन मजूरी का पैसा निकालकर महीने भर का राशन, मकान किराया, बिजली बिल, बच्चों की फीस, यातायात के किराया और तमाम तरह का बकाया भरने के लिए नौकरीपेशा लोगों ने उसी दिन या एक दो दिन पहले एटीएम से पांच सौ और एक हजार के नोट पाये थे, अब वे किसी काम के नहीं है।
अपना सारा कामकाज छोड़कर मेहनत की गाढ़े खून पसीने की वह कमाई और घरेलू महिलाओं ने घर का खर्च बचाकर आदतन जो थोड़ी बहुत बचत की थी, वह सब कुछ बैंकों और डाकघरों में अगले दिनों न जाने कब तक धरना देकर जमा करने की आपाधापी शुरू हो गयी है।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे आर्थिक आपातकाल कहा है तो माकपा महासचिव ने इसे आर्थिक अराजकता बता दिया है।
ममता दीदी ने खुद कहा है कि एक दिन पहले उन्होंने खर्च के बाबत निजी खाते से पचास हजार रुपये निकाले हैं जो उन्हें अब बैंक में वापस कराने हैं।
लोकतांत्रिक संस्थानों का कबाड़ा करने के बाद बैंकिंग और बीमा निजी क्षेत्र के हवाले करने के बाद, खुदरा बाजार से लेकर परमाणु ऊर्जा, राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा में विनिवेश करने के बाद राष्ट्र और राष्ट्र की सुरक्षा के नाम देशभक्ति साबित करने की आम जनता की परेड लगाने का यह तुगलकी फरमान कितना गोपनीय रहा है, वह भी संदिग्ध है जबकि राजकाज नागपुर वाशिंगटन और तेलअबीब से संचालित होते हैं।
नीतियां निजीक्षेत्र के धुरंधर बनाते हैं। विशेषज्ञ समितियां भी उन्हीं की हैं।
देश का वित्तमंत्री मशहूर कारपोरेट वकील है और रिजर्व बैंक का भी निजीकरण हो गया है तो रक्षा सौदों में दलाली भी अब जायज है।
किस गलियारे से काला धन वापस आयेगा जबकि कालाधन का कारोबार करने वाले नोटों का कारोबार अमूमन करते नहीं हैं और नकदी जमा रखने के बजाय वे सोना चांदी जमीन और कारोबार उद्योग में सारी पूंजी खपाते हैं।
जरूरी खर्च के लिए भी वे आम जनता की तरह नोटों के सहारे होते नहीं है।
मोरारजी भाई ने जब नोट वापस लिए थे तबके हालात और अबके हालत में भारी अंतर है।
अबकी दफा कालाधन सफेद करने के हजार दरवाजा खुल्ला रखकर आम लोगों को बलि का बकरा बनाने की यह कवायद इसलिए किसी भी मायने में वित्तीय प्रबंधन नहीं है, यह विशुद्ध हिंदुत्वकरण है और इसकी शुरुआत गांधी को हाशिये पर ऱखने के लिए लालकिले और मंगलयान को नये नोटों से चस्पां करने के साथ हो गयी है।
गौरतलब है कि दस का सिक्का रिजर्व बैंक के वैध घोषित किये जाने के बावजूद बंगाल में लिया नहीं जा रहा है। पटना से लेकर गुजरात तक में यही संकट है।
प्रधानमंत्री के वायदे के मुताबिक आपके 500 और 1000 रुपये के नोट 8 नवंबर की रात बारह बजे से कागज का मामूली टुकड़ा होजाने के बावजूद लेकिन घबराइये नहीं, आपके पास जो नोट हैं उनके बदले 100, 50, 20, 10, 5, 2 और 1 रुपये के नोट मिलेंगे।


