‘हिंदुत्व’ और सामाजिक न्याय की सियासत की धूर्तता !!!
‘हिंदुत्व’ और सामाजिक न्याय की सियासत की धूर्तता !!!
सेक्युलरिज्म (भागवाक) बनाम साम्प्रदायिकता का द्वन्द्व
हमने सवाल किया था- “हम लेके रहेंगे आजादी/ मनुवाद से आजादी/ संगठवाद से आजादी” नारे लगाते कनहैया कुमार की जेल से लौटने के बाद जेएनयू के एडमिन ब्लॉक की तस्वीर और पटना में राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव के सामने नतमस्तक होकर बंच ऑफ थॉट्स ग्रहण करते कनहैया कुमार की तस्वीरों के बीच आप कैसे देखते हैं?”
इस कड़ी में हमने अपनी साथी राजीव यादव का लेख
इतने भी बोले न बनो कनहैया, कमंडल का विस्तार था मंडल
प्रकाशित किया था। लेख काफ़ी पढ़ा गया और सोशल मीडिया पर काफ़ी बहस चली। हमारे मानने है कि साम्प्रदायिकता से लड़ाई एक महत्वपूर्ण और निर्णायक दौर में पहुँच गई है। इस लड़ाई को फौरी मुद्दों के आधार पर संबोधित नहीं किया जा सकता। अपने साथियों और विरोधियों दोनों की निर्मम आलोचना करनी पड़ेगी। सामाजित न्याय भी उठना ही महत्वपूर्ण प्रश्न है जितना साम्प्रदायिकता या धर्मनिरपेक्षता।
हम सवाल करना चाहते हैं कि क्या सामाजित न्याय की तथाकथित ताकतों ने इसके लिए ईमानदारी से काम किया? क्या सामाजित न्याय की तथाकथित ताकतों ने वास्तव में सामाजित न्याय कर सभी को हिस्सेदारी दी?
जिन सामाजित न्याय के तथाकथित ताकतों ने वास्तव में सामाजित न्याय कर सभी को हिस्सेदारी दी? जब सामाजित न्याय की तथाकथित ताकतों ने वाकई सामाजित न्याय कर सभी को हिस्सेदारी दी? जब सामाजित न्याय की तथाकथित ताकतों ने वास्तव में सामाजित न्याय कर सभी को हिस्सेदारी दी?
जब सामाजित न्याय के तथाकथित ताकतों ने वास्तव में सामाजित न्याय कर सभी को हिस्सेदारी दी? जब सामाजित न्याय के तथाकथित ताकतों ने वाकई सामाजित न्याय कर सभी को हिस्सेदारी दी?


