नेट समय में बुरबक बनाओइंग की मीठी गोली
अपवाद छोड़ दें तो समूचा मीडिया इस राष्ट्रद्रोही बजट को मीठी गोली साबित करने में लगा है
पलाश विश्वास
जनसत्ता के पहले पेज पर पुण्य प्रसूण वाजपेयी ने मोदी का बजट और अमेरिकी मुनाफा शीर्षक आलेख में एकदम सही लिखा है कि मोदी के बजट ने बुनियादी संरचनाओं, रक्षा उपक्रम और ऊर्जा सुरक्षा के लिए जिस तरह दुनिया को भारत के लिए ललचाया है, उसने मनमोहनइक्नामिक्स से कई कदम आगे छलांग लगा दी है। गौरतलब है कि मीडिया के मुताबिक मंदी से जूझ रही देश की इकोनॉमी के अच्छे दिन वाले हैं। क्योंकि सत्तावर्ग और एकाधिकारी कारपोरेट नजरिए से दरअसल बेसरकारी करण को विनिवेश कहने वाले केसरिया ब्रिगेड के धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री की कारपोरेट सरकार ने अपने पहले बजट में साफ कर दिया है कि मुक्तबाजार की इकोनॉमी की सेहत से कोई समझौता नहीं होगा। और अगर इसके लिए कोई कड़वी दवा की जरूरत होगी तो वो इससे भी नहीं हिचकेगी।
रिटायर होने से पहले मुझे यह लिखते हुए सुकून मिल रहा है कि शायद जनसत्ता एकमात्र अखबार है, जिसने साफ-साफ बजट लीड में लिखा कि यह न मीठी गोली है और न कड़वी। जबकि अपवाद छोड़ दें तो समूचा मीडिया इस राष्ट्रद्रोही बजट को मीठी गोली साबित करने में लगा है।
बजट इम्पैक्ट का ब्यौरा सिर्फ अंग्रेजी के आर्थिक अखबारो में धुआं-धुआं है और उस पर शेयर बाजार की सांढ़ संस्कृति। अहमदाबाद में भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह के बेटे जय की कालेज फ्रेंड के साथ सगाई का ब्यौरा सिलसिलेवार है, लेकिन बजट ब्लैक आउट घनघोर है। बिल्डर प्रोमोटर राज का यह सुसमय है।
हर सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, टैक्स नेटवर्क को कारपोरेट देशी-विदेशी कंपनियों को परेशान न करने का फतवा, डाइरेक्ट टैक्स को़ड, आधार योजना, सेज, इंडस्ट्रियल कारीडोर, जीएसटी, विनिवेश अश्वमेध, इक्विटी बेसिक कंपनियों को टैक्स राहत, सब्सिडी खत्म करने की योजना, सामाजिक योजनाओं को रियल्टी से जोड़ने का उपक्रम, बुलेट ट्रेन समेत हीरक बुलेट कारीडोर, सौ स्मार्ट सिटीज, श्रम कानूनों और कर प्रणाली में सुधार, स्टेट बैंक और पंजाब नेशनल बैंक बिकने को तैयार, सरकारी बैंकों में सराकरी शेयर 51 फीसद से कम कर देना, ओएनजीसी और कोल इंडिया को नीलामी पर चढ़ा देना, रेलवे का निजीकरण, पीएफ पेंशन ग्रेच्युटी को बाजार में खपाना, रोजगार का खात्मा और लंबित परियोजनाओं को हरी झंडी, पर्यावरण निषेध, देश व्यापी भूमि अधिग्रहण और बेदखली का रोडमैप इतने सारे कार्यक्रम बिना प्रतिरोधे, बिना संसदीय राजनीतिक हस्तक्षेप वैदिकी कर्मकांड की विशुद्ध रीति मुताबिक सुसंपन्न और भारतीय मीडिया देश बेचो कार्यक्रम के इस महाकार्निवाल को ब्राजील के विश्वकप में शकीरा जलवा में बदलने को एढ़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं ताकि बकरे की अम्मा को पता ही नहीं चले कि उसकी खैरिअत दुआएं बेमतलब हैं और बकरा हलाल है।
गौर करें कि इंफ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन, रियल्टी सेक्टर के लिए काफी अच्छा बजट है। आरईआईटी को मंजूरी, टैक्स नियमों पर सफाई, पावर कंपनियों के लिए टैक्स हॉलिडे का एक्सटेंशन, रोड डेवलपमेंट के लिए अच्छी पूंजी का आवंटन मिलने से इंफ्रा सेक्टर को काफी राहत मिल सकती है और प्रोजेक्ट्स में तेजी आ सकती है। बैंकों को इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग के लिए बॉन्ड जारी करने के लिए मंजूरी मिल गई है। इसके अलावा वित्त मंत्री ने एसईजेड के रिवाइवल की घोषणा की है। मौजूदा बजट इंफ्रा और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के लिए बेहतरीन रहा है। बैंकों को इंफ्रा सेक्टर के लिए कर्ज देने में दिक्कत ना हो इसके लिए वित्त मंत्री ने कदम उठाए हैं।
गौर करें कि काला धन भी मोदी के मैनिफेस्टो में बड़ा एजेंडा था और वित्त मंत्री ने कहा कि इस पर लगाम लगाने के पूरे उपाय किए जाएंगे।
पुनश्चः विदेशी निवेशकों की अटल अडिग आस्था ही मुक्त बाजारी अर्थव्यवस्था की नींव है, उसकी उत्पादन प्रणाली और श्रमशक्ति कतई नहीं। एफआईआई के टैक्स पर सफाई से देश में विदेशी निवेश बढ़ने की उम्मीद है। वहीं रिटेल निवेशकों के लिए 3-4 साल के नजरिए से बाजार में निवेश का बेहतरीन मौका है। बाजार पिछले 6 महीने से बुल रन में चल रहा है और अगले कुछ महीनों, सालों तक बाजार में बड़ी तेजी बने रहने का अनुमान है।
भाषाई अखबारों में राजनीति की खबरें मनोरंजन और घृणा अभियान बतौर छापी जाती हैं लेकिन राजकाज का खुलासा होता नहीं है। सत्तासंघर्ष ही मीडिया का पेड न्यूज समय है और बुनियादी मुद्दे और खास तौर पर अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली मुख्यधारा मीडिया के लिए गुप्त तंत्र विधि है जिसकी चर्चा निषिद्ध है।
नीति निर्धारण प्रक्रिया का खुलासा नैव नैव च।
कारपोरेट कार्निवाल के केसरिया मुलम्मे है समूचा सूचना तंत्र नेटवर्क। विशुद्ध धर्मोन्माद की यह नील छवि परिष्कार है।
जनसत्ता के संपादकों से मेरे मधुर संबंध नहीं रहे हैं।
मैं माननीय ओम थानवी को उनकी इस संपादकीय नीति के लिए धन्यवाद कहने की हैसियत में नहीं हूं लेकिन एक पाठक और स्वतंत्र नागरिक के हिसाब से देश की जनता तक बजट रहस्य का पर्दा उठाने के लिए सार्वजनिक तौर पर आभार तो व्यक्त कर ही सकता हूँ और 25 साल की जनसत्ताई चाकरी के लिए अफसोस न करने की सौगात देने के लिए निजी तौर पर आभार।
जाहिर है कि बजट पेश होते न होते निषिद्ध नमो को अमेरिका यात्रा के लिए न्यौता के बावजूद यह छुपाने की कोशिश खूब हो रही है कि हिंदुत्व के इस कारपोरेट बजट में देश बेचो का पुख्ता इंतजाम किया गया है। इसी वजह से कारपोरेट दुनिया और जायनी विश्वव्यवस्था मोदी का मुरीद हो गया है।
ब्रिक्स में भारतीय मीडिया नरेंद्र मोदी को विश्वनेता बनाने की मुहिम में जुट गया है, जबकि भारतीय राजनीति की दशा और दिशा पूरे दक्षिण एशिया को मुक्त बाजार का उन्मुक्त आखेटगाह के एजंडे तक सीमित है।
तेल युद्ध के विध्वंसकारी हितों से टकराये बिना,गाजा में इजरायली हमले के खिलाफ नेतृत्वकारी भूमिका निभाये बिना, जनसंहारी सुधारों और कालाधन रिसाईकिल वाली एफडीआई के बूते छत्तीस इंच का सीना नेईमार है या फिर मेसी, जो कारपोरेट और रियल्टी का माडल है, राष्ट्रीयता का प्रतीक नहीं।
और यह साबित करने के लिए चाहे वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों, पुराणों, स्मृतियों को नये सिरे से लिख दें भगवा वाहिनी, मगर सत्य वही लातिन अमेरिकी मलबा है। जिस नींव पर खड़ा है ग्लोबीकरण का यह हवामहल।
मनमोहन को खारिज करके केसरिया जनादेश प्रकल्प के कार्यभार का समुचित निर्वाह कर दिया गया है। लेकिन अखबारों के पन्नों पर चैनलों में कड़वी दवा न मिलने के लिए जो सर्वव्यापी हाहाकार रचा जा रहा है, वह नेट समय में बुरबक बनाओइंग की मीठी गोली के सिवाय कुछ नहीं है।
दरहकीकत दसों गोल दाग दिये गये हैं भारतीय बहुसंख्य जनता के खिलाफ और हम ब्राजील या अर्जेंटीना के विश्वविजय का जश्न मनाते मनाते जर्मन मशीन और तकनीक के कायल हो गये हैं। हम शकीरा का नृत्य देखते रहे, लाखों अर्जेंटिनी ब्राजीली समर्थकों के शोक में भी शरीक होते रहे, लेकिन ब्राजील के अंतःस्थल में जो रक्तक्षरण है और अर्जेंटीना ब्राजील समेत जो लातिन अमेरिका है, वहां साम्राज्यवाद और मुक्त बाजार के निरंतर प्रतिरोध में किसी भी स्तर पर शामिल होने को तैयार नहीं हैं हम।
कुल मिलाकर हम भारतीय भारत राष्ट्र के नागरिक हैं ही नहीं अब हम वैश्विक मुक्तबाजार के अमेरिकी उपनिवेश ऐसे काले गुलाम हैं जो तमाम अस्मिताओं में बंटा हुआ है और बेजुबान तो है ही, अंधे भी हैं और बहरे भी हैं।
हमें न अपने आस पड़ोस का होश है और न अपने अपने कुंए से बाहर की दुनिया का हवास। सिर्फ सब कुछ भोग लेने की हवस है और रेतीली आंधी में शुतुरमुर्ग बन जाने की दक्षता है।
हम गोरा बनते जा रहे हैं और कालों की दुनिया से हमारा कोई सरोकार नहीं है। हम जाति में कैद है और नस्ली रंगभेद से हमें कोई परहेज भी नहीं है।
हमारे लिए कश्मीर, मणिपुर और मध्यभारत गाजा पट्टी है और वहां इजराइली हमलों से हमें कुछ भी लेना देना नहीं है।
यह मुत्यु उपत्यका हमारा नहीं है और चाहे यह सेज बने कि स्मार्ट मेगा सिटी या इसे उठाकर अमेरिका इजराइल को बेच दिया जाये, हम बजरंगियों को इससे कुछ लेना देना नहीं है।
भारतीय जनता के, भारतीय लोकगणराज्य के, भारतीय लोकतंत्र के, भारत के संविधान के, भारत की संप्रभुता के इस महाविध्वंस से अभी बेखबर है केसरिया राष्ट्रवाद की पैदल सेनाएं।
कोई माई का लाल किसी तरह की शोक गाथा लिखने को तैार नहीं है इस प्रचंड देहसमय के आध्यात्मकाल में। अभिव्यक्ति ने खुदै अपने होंठों पर ताले जड़ दिये हैं और विधाएं कॉल सेंटर में तब्दील हो गयी हैं।
इस पर तुर्रा यह कि मोदी सरकार ने देश को पूरी तरह से डिजिटल बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। डिजिटल इंडिया के रोडमैप की पहली झलक वित्त मंत्री अरुण जेटली के पहले बजट भाषण में दिखाई दी। स्मार्ट सिटी हो, डिजिटल क्लासरूम या ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए कदम, सरकार ने देश को पूरी तरह से डिजिटल बनाने पर काम शुरू कर दिया है। 100 स्मार्ट सिटीज विकसित करने के प्रोजेक्ट पर 7000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करने का ऐलान किया गया है।
जाहिर है कि फ्यूचर इंडिया पूरी तरह से डिजिटल होगा। स्मार्ट सिटीज, डिजिटल क्लासरूम, पेपरलेस ऑफिस- ये सब भविष्य के भारत की तस्वीरें होंगी। इन तस्वीरों को साकार करने के लिए मोदी सरकार टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर करने जा रही है। सरकार ने पूरे देश को ब्रॉडबैंड से जोड़ने की योजना बनाई है। ग्रामीण विकास मंत्रालय इस ब्रॉडबैंड कार्यक्रम पर 24000 करोड़ रुपये खर्च कर सकती है।
करोड़पतियों, अरबपतियों की संसद में इस दिगंतव्यापी अश्वमेध के रंग बिरंगे पुरोहितों की क्या भूमिका है और निरंकुश जनसंहार एजेंडा के कार्यान्वयन की क्या दिशा है, इसी से समझ लें कि लोकसभा में ट्राई संशोधित बिल पास हो गया है। जबकि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा की नियुक्ति के मसले पर कांग्रेस राज्यसभा में अकेली पड़ गई है। बीएसपी, एसपी, एडीएमके के साथ ही टीएमसी ने अचानक यू टर्न ले लिया है और कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई है। आप को बता दें कि राज्यसभा में भी ट्राई संशोधित बिल पास होने के रास्ते साफ होते दिख रहे हैं। बीएसपी और एसपी ने ट्राई संशोधन बिल का विरोध नहीं करने का फैसला किया। जयललिता की एडीएमके भी इस मसले पर एनडीए के साथ नजर आ रही है। वहीं टीएमसी भी इस बिल का विरोध नहीं करेगी।
कायदा कानून बिगाड़ने का व्याभिचार का यह वैदिकी समय है।
हम जब कहते हैं कि बाटलैस भारतीय अर्थव्यवस्था की वित्तीय नीतियां हैं ही नहीं, शुरू से नहीं रही है। भारतीय अर्थव्वस्था का समूचा तंत्र जाति व्यवस्था की अस्पृश्यता की तरह बहिष्कार के सिद्धांत पर डीफाल्टेड है, अर्थ विशेषज्ञों को भारी आपत्ति होती है। वित्तीय नीतियों की क्या कहें, कई दशकों से हमारी सरकारें भी विदेशी तय करते रहे हैं। प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री वाशिंगटन बनाता है तो वित्तीय नीतियां विश्व व्यवस्था की तमा युद्धक एजंसियां तैयार करती हैं। हम सिर्फ उसका अनुमोदन करते हैं और उसी मुताबिक आंकड़े, ग्राफिक्स और परिभाषाएं गढ़ देते हैं।
हमने पहले ही गरीबी की परिभाषा और उत्पादन आंकड़ों की चर्चा की है और अब पेश हैं मंहगाई कम होने के आंकड़े। अच्छे दिन साबित करने के आंकड़े। किराने की दुकान हो या सब्जी बाजार, बुनियादी जरूरतें हो या बुनियादी सेवाएं, सब कुछ विनियंत्रित, सब कुछ विनियमित, निजीकरण की धूम इतनी प्रलयंकर।
बाजार में आग लगी है। लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि मंहगाई कम हो गयी है। इसी मुताबिक सांढ़ों का अजब गजब खेल है और बाजार में गिरावट गहराती जा रही है और सेंसेक्स 25000 के नीचे आ गया है।
पलाश विश्वास।लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना। पलाश जी हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।