विनोद बंसल
किसी भी चुनाव से पहले हिंदुत्व के नाम पर राममंदिर, २००२ के गुजरात दंगे, धारा ३७० आदि अनेक विषय जिनका मुख्यतः हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों से सम्बन्ध है उछाले जाते हैं. देश की सभी राजनीतिक पार्टियां दो मुख्य गुटों में लामबंद हो जाती हैं, जबकि हिन्दू-मुस्लिम दंगों को लेकर दोनों गुटों के रिकोर्ड्स में ख़ास अंतर नहीं है. उपरोक्त विषयों का इस देश की सभ्यता से कोई लेना-देना ही नहीं है. वास्तव में इस देश का नाम तो शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारत रखा गया था, जबकि उस समय भी इस देश में बहुसंख्यक हिन्दू धर्म को मानते थे. श्रीराम एवं श्रीकृष्ण हिन्दू होने से कहीं ज्यादा भारतीय थे.
प्राचीन काल से ही इस देश में हिन्दू, जैन, बोद्ध, आदि विभिन्न पूजा पद्वतियों को अपनाने वाले लोग एक साथ रहते रहे हैं. ब्रिटिश काल में १८५७ के स्वतन्त्रता संग्राम में मुस्लिम भी सभी के साथ एक होकर लड़े. इसके बाद भी गांधीजी के सत्याग्रह आन्दोलनों में मुसलमानों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. अंग्रेजों की मिली भगत से कुछ मुसलमानों ने अपनी एक अलग व्यवस्था बनाई, परंतू वहाँ के हाल सर्वविदित हैं. यदि कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा कटक से अटक तक, देश की सम्पूर्ण जनता भारतीय होने का संकल्प करे तो देश के राजनीतिज्ञ भी सुधरेंगे.
अधिकाँश हिन्दू-मुस्लिम दंगों की शुरुआत रोज़मर्रा होने वाली छुट-पुट घटनाओं से होती है. और वो भी गाँवों अथवा छोटे शहरों में, जहां पर मोहल्लों को हिन्दू अथवा मुस्लिम आधार पर चिन्हित किया जा सकता है. पहले चरण में तो इन मोहल्लों अथवा बस्तिओं में कुछ बुजुर्ग एवं प्रबुद्ध व्यक्तियों को प्रतिष्ठित किया जाए जिनका राजनीतिज्ञों से कोई सम्बन्ध न हो. आज भी हिन्दू एवं मुस्लिम घरानों में बड़ों का आदर करने की तहजीब है. फिर भारतीय सभ्यता की धारा को पोषित करने वाले मुस्लिम जुलाहे संत कबीर ने तो गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया है. दूसरे चरण में इन बुजुर्गों का दूसरे समुदाय के बुजुर्गों से संपर्क बनवाया जाय. दोनों चरणों का यह काम बस्तियों के युवा विद्यार्थी करें, क्योंकि शांतिपूर्ण भारत में ही उनका भविष्य सुरक्षित है. समुदायों के बीच इन आपसी संबंधों को बनाए रखने का काम भी युवा विद्यार्थी ही करें. विद्यार्थी इस बात को गहराई से समझें कि राजनीतिज्ञों की वोट-बैंक पोलिटिक्स इस व्यवस्था के लिए जहर से कम नहीं होगी.
देश की सभी राजनीतिक पार्टियां भी भारतीयता को भली-भांति जान प्रधानमन्त्री पद की गरिमा को समझें. इस देश की जनता प्रधानमंत्री को राजा मानती है. राजा में सभी देवताओं का समावेश होता है जिनकी इस देश की असंख्य सम्प्रदायों में बंटी हुई जनता नियमित रूप से पूजा करती है. परमात्मा स्वरुप राजा के लिए देश का प्रत्येक प्राणी आत्मारूप उसी का एक अन्ग होता है. साम्प्रदायिक दंगे विश्वगुरु बनने की आकांक्षा रखने वाले इस देश के माथे पर कलंक हैं. प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार वही हो जो इस कलंक को धोने का संकल्प करे.
विनोद बंसल, प्रोफेसर, सेवानिवृत्त, एनएसआईटी, नयी दिल्ली