हिंदू राष्ट्र, कारपोरेट राष्ट्र की बेदखली कर नहीं सकता
हिंदू राष्ट्र, कारपोरेट राष्ट्र की बेदखली कर नहीं सकता
नये ईश्वर ने/ थाम ली है/ देश की बागडोर
भुगतते रहिए नतीजे आप
पलाश विश्वास
साठ के दशक में पहले मोहभंग के दौर से, हिंदी वालों के लिए नई कहानी के दौर से, यह खोज जारी है। लेकिन जनता नहीं समझती और शायद हम आप जैसे पढ़े लिखे लोग भी नहीं समझते कि दरअसल कोई मसीहा किसी क्रांति का जनक होता ही नहीं है। जिस गौतम बुद्ध को हम पहली रक्तहीन क्रांति का जनक मानते हुए ईश्वरत्व में उनकी तलाश करते हैं, वह भी मुक्तिकामी जनसंघर्ष के प्रतीक और निजी तौर पर हद से हद एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। जाहिर है कि मृगतृष्णा खत्म होती नहीं है और न मृग मरीचिका का कोई अंत है। एक सुपरहिट फिल्म से अघाकर लोग तुरन्त ही दूसरी सुपरहिट फिल्म में निष्णात है। राजनीति की धूम या चेन्नई एक्सप्रेस से कुछ बदलने वाला नहीं है लेकिन। देश बदलने की कवायद मीडिया ब्लिट्ड नहीं है, जमीन पर देशव्यापी जनसंघर्ष की संगीन चुनौती है। खोज लेकिन जारी रहेगी।
मैं राजनीति के एनजीओकरण और बाजार के प्रबंधकीय समन्वय से हुए राजनीतिक कायाकल्प की ध्यान खींचने की कोशिश कर रहा हूँ। हम पहले ही लिख चुके हैं कि अब मुकाबला मोदी और राहुल का कतई नहीं है। बाजार ने अपनी कोख से फिर नये ईश्वर को जन्म दे दिया है। रास्ते के पत्थर को भगवान बनाकर पूजने वाले देश को इसमें कारपोरेटराज का कायाल्प नहीं दीख रहा। मोदी तो खत्म है। लेकिन मोदी से बड़ा खतरा और कांग्रेस से भी बड़ा खतरा सामने है जो अंततः बहुजनवादी और वामपंथी और समाजवादी यानी तमाम बदलाव की राजनीति को हाशिये पर धकेलने की युद्धक रणनीति है। मोदी फिर भी रहेंगे। कांग्रेस भी फिर लौटेगी। सारा खेल दूसरे चरण के सुधारों और दूसरी हरित क्रांति का है।
बाजार की युद्धक
प्रबन्धकीय सुपर दक्षता
अब एनजीओ कम
कारपोरेट राजनीति
का मलंग शो और
हर शॉट पर
पैसा वसूल
धूम चेन्नई एक्सप्रेस
आप के रंग में
रंगी राजनीति
और युद्ध अपराध
पर भी पश्चाताप
का तड़का
आदर्श के खिलाफ
मर्यादा पुरुषोत्तम
भ्रष्टाचार का झाड़ू
बन गया झंडा
धर्मोन्मादी
राष्ट्रवाद का
हो गया कायाकल्प
कारपोरेट राज के
संग-संग
सुपर धूम 2014
सुपर चेन्नई एक्सप्रेस 2014
बाजार का भारत रत्न
तो बाजार का ही धर्म-कर्म
और राजनीति भी बाजार का
मंलग का अमीरी शो
मक्खन कैट का करिश्मा
यह जश्न है नस्ली वर्चस्व का
सुधा की कविता
और अविनाश के दोहे
उदय प्रकाश भी कविता में
अब हो संवाद भी कविता में
कवि तमाम लिखे कविता
इसी विषय पर
और अपना कवित्व टाँग दें
अपनी-अपनी दीवार पर
कृपया रोमियो राजकुमार
की तर्ज पर फेसबुक
और गूगल प्लस पर
राय देकर नये
वर्ष का संकल्प लें।
देर रात तक
बहुत किया
इंतजार कवि मित्रों का
युवाजनों का
कविता लेकिन
कोई मिली नहीं है
बहरहाल अब
संवाद समेटने की बारी है
टुकड़ा-टुकड़ा मंतव्य
जोड़कर आज
का यह संवाद
अखबारी सूचनाएं
दे नहीं रहा आज
सचमुच, महातूफान है
धर्मनिरपेक्ष खेमा
का गुजरात नरसंहार मुद्दा
रोक नहीं सका मोदी सुनामी
अकेले भ्रष्टाचार विमर्श से
जवाबी सुनामी
दस्तक दे रही है
भारत के कोने कोने कोने में
आज के संवाद का
सार संक्षेप भी यही है
हिंदू राष्ट्र कारपोरेट राष्ट्र
की बेदखली कर नहीं सकता
मुक्त बाजार का जो
धर्मोन्मादी खेल है,
उसकी जो प्रबन्धकीय दक्षता है
उसमें जो मलंग नाच है
वही सर चढ़कर बोल रहा
फिलहाल और मोदी लहर खत्म है
कोई शक की गुंजाइश
ही नहीं है कि
नये ईश्वर ने
थाम ली है
देश की बागडोर
भुगतते रहिए नतीजे आप


