आरएसएस का एजेंडा-दांव पर है देश और अर्थव्यवस्था।

वैष्णव जन तेने कहिये…
पागल दौड़ में देश गांधी को याद कर रहा है और वैष्णव जन तो वे हैं जिनके दिलोदिमाग में पीर पैदा करने की हरेक मशीनें बनती है।
हस्तक्षेप में लगातार इस विषय पर आलेख छपे हैं। मीडिया में खूब लिखा गया है।
जनसत्ता के संपादकीय पेज पर के विक्रम राव ने प्रपंच के सहारे महिमामंडन लिखा है तो अन्ना रालेगांव से फिर दहाड़े हैं-अच्छे दिन कहां गये। उनकी फिर सत्याग्रह की तैयारी है।
केसरिया कारपोरेट वैष्णवजन के भजन कीर्तन कर्मकांड धर्म अधर्म और पागल दौड़ में देश काल पात्र गड्डमड्ड है।
इसी के मध्य वकील की दलीलें तेज हैं वसंत बहार।
केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली ने पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन द्वारा परियोजनाओं के लिए हरित मंजूरी में राहुल गांधी पर हस्तक्षेप करने का आरोप लगाए जाने के बाद संप्रग शासन के दौरान मंजूर और खारिज की गयी पर्यावरणीय परियोजनाओं की समीक्षा की आज मांग की।
वित्त मंत्री ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी को नटराजन का पत्र ‘पुख्ता तौर पर साबित करता है’ कि कांग्रेस के लिए वैधानिक या आवश्यक मंजूरी की नहीं बल्कि नेताओं की ‘मर्जी’ ही अहम थी।
संतन के घर झगड़ा भारी
रगड़ा प्रलयंकारी
राजधाऩी दिल्ली में मारामारी।
किरण बेदी की ताजपोशी के लिए अमित शाह कैंप किये हैं और खबर है कि फोनवा ठोंकते ही केजरी भूत दिल्लीवासियों पर जो हावी है, उसे उतारने किस्म किस्म के ओझा मसलन प्रधानमंत्री से लेकर तमाम मंत्री उपमंत्री सांसद वगैरह वगैरह गली तस्यगली में आपके चौखट पर हाजिर है।
पालिसी पैरालिसिस कौन सी बीमारी है, उसका खुलासा भी होने लगा है। मनमोहन ने इस बीमारी के चलते कुर्सी गंवाई तो मोदी महारजज्यी फिटमफिट है और इस बीमारी का वायरल किसी भी स्तर पर उन्हें छू ही नहीं सकता उनकी गुजरात गौरव गाथा उसका पुख्ता सबूत है।
अब अमेरिका जो जलवायु और मौसम की चिंतामें मुआ जा रहा है और अपने बंद कारखाने चालू करके न्यूक्लियर चूल्हा पैदा करके भारत में हर कहीं झोंक रहा है, उसके पीछे पिघलते ग्लशियरा की सेहत का मामला है।
परमाणु ईंधन पर्यावऱण के लिए सबसे अनिवार्य चीज है और इसके लिए कतनी ही भोपाल त्रासदियां हो, न अमेरिका को फिक्र है और न आज के केसरिया वैष्णवजनों को।
डाउ कैमिकल्स के मंत्री महाशय को अमेरिकी कंपनियों के हितों की चिंता थी तो भविष्य में किसी अमेरिकी कंपनी को कोई मुआवजा न दिया जाये, इसका पुख्ता इंतजाम भी कर दिया गया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने चलते-चलते धर्म की स्वतंत्रता की उदात्त घोषणा के साथ गांधी को राजघाट पर प्रणाम का ब्याज चुकाते हुए विकास के लाए धार्मिक विभाजन के खिलाफ हिंदुत्व ब्रिगेड को चेतावनी भी दे डाली है।
लोग बेहद खुश हैं कि अमेरिका को आरएसएस का एजेंडा मालूम है।
हम कब कह रहे हैं कि मालूम नइखै।
आरएसएस का एजेंडा अमेरिकी हितों के मुताबिक न होइबे करता तो वे मोदी को पलकपांवड़े पर काहे बिठाते, समझने वाली बात है।
तो इंफ्रास्ट्रक्चर यानी के सीमेंट के जंगल दसों दिशाओं में खेत बनाने के खातिर चार खरब डालर झोकेंगी अमेरिकी कंपनियां और शेयर सूचकांक पार होगा पचास हजार पार।
तो जैसे योजना आयोग का खात्मा हो गया वित्तीय घाटा के इलाज बतौर वैसे ही पालिसी पैरालिसिसवा का इलाज सख्त चाहिए।
पहला काम अंजाम संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी का जुमला हटाने का है।
अब नीति निर्धीरकों और संघ सिपाहसालारों के मुताबिक असल खलनायक पर्यावरण कानून है और यूपीए के जमाने में सारी बदमाशियां इसी पर्यावरण हरी झंडी के लिए हुई।
ससुरे इस पर्यावरण मंत्रालय को खत्म करना अनिवार्य है।
न रहेगा बंस, न बजबै करै बांसुरी।
इस एजेंडा का हल दीखने लगा है कि जागऱण की रपट से खुलासा हुआ कि यूपीए सरकार की कार्यशैली का खुलासा करते हुए पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने कांग्रेस छोड़ दी है। यूपीए सरकार में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मर्जी चलने के आरोपों के बीच कांग्रेस पर बड़ी मुसीबत आ गई है। राहुल पर सरकारी नीतियां बदलने का आरोप लगाते हुए जयंती ने कहा कि राहुल के कार्यालय से विशेष 'इनपुट' आते थे। इनमें कुछ बड़ी परियोजनाओं को रोकने के लिए उस पर चिंता जताई जाती थी।
जयंती ने आरोप लगाया कि उन्होंने परियोजनाओं को मंजूरी देने में कांग्रेस उपाध्यक्ष के निर्देश का पालन किया। उन्होंने सोनिया और राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र खत्म हो गया है। पर्यावरण मंत्री रहते हुए उन्होंने राहुल के निर्देश माने। फिर भी उन्हें पार्टी में हाशिये पर कर दिया।
गौरतलब है कि सात साल के लिए सभी परियोजनाओं को, लंबित परियोजनाओं को भी एकमुश्त हरी झंडी दे दी गयी है और संपूर्ण निजीकरण के लिए सब कुछ बेचा जा रहा है।
और संघ के सिपाहसालर य पालिसी पैरालिसिस खत्म कराने का गुहार लगा रहे हैं कि आदिवासी इलाकों में फंसी लाखों लाखों डालर का निवेश रुका है और विकास दर आईएमएफ, विश्वबैक और अमेरिकी रेटिंग एजंसियों के मनमाफिक नहीं है।
जाहिर है जो आदिवासी बागी है, उसकी खास वजह उनका गैरहिंदुत्व है।
एकर खातिर मिशनरी जा जाके वे पढ़े लिखे बनकर जल जंगल जमीन के हकोहकूक के बारे में जानकर अंग्रेजी जमाने से बगावत करते रहे। वो बगावत की बीमारी जारी रहल वानी।
एकर इलाज सलवा जुडु़म काफी नहीं है।
मध्यभारत से लेकर पूर्वोत्तर में सलवाजुड़ुम करके देख लियो कि आदिवासी तेवर बाकी हिंदुस्तान की तरह बदलता नहीं है।
जली हुई रस्सी भी सांप बनकर फुंफकराती है।
पालिसी पैरालिसिस को खत्म करने वास्ते पर्यावरण हरी झंडी ही काफी नहीं है।
आदिवासियों के दिलो दमाग में घुसलल विधर्मी भाव का खात्मा चाहि और आदिवासियों के सफाया वास्ते उनके दिलो दिमाग में कमल की खेती चाहि कि वे विशुद्ध हिंदू हो तो कहीं जाकर जल जंगल जमीन लबालब हो विदेशी निवेश से और कोई परियोजना पॉलिसी पैरालिसिस खातिर रुकै नाही।
दांव पर है देश और अर्थव्यवस्था।
डाउ कैमिकल्स के वकील और वित्तमंत्री सच कहलवानी कि कोई जरूरी नहीं कि सारे फैसल बजट में हो।
कोई जरूरी नहीं कि सारे फैसले संसद में हों या सारे फैसले जनप्रतिनिधि करें, आशय इसका यह है।
आखेर बगुला जो वैष्णव जन है, जो तरह-तरह की समितियों और आयोग में हैं, जो इतिहास बदलने से लेकर संपूर्ण महाभारत और संपूर्ण रामायण की तर्ज पर संपूर्ण निजीकरण की निजी टीमें है, वे कौन मर्ज की दवा हैं।
सो डाउ कैमिकल्स के वकीलवा जो हैं जो वैसे ही दिल्ला मा बइठ गइलन जइसन मैदान मा अंगद पांव सरीखे भयो कपिल सिब्बल शारदा फर्जीवाड़ा के बचाव खातिर।
भ्रष्टाचार उन्मूलन और कालाधन सफेदधन का यह गड़बड़झाला गांधीवादी अन्ना ना समझे हैं कि किनके हितों में उनके सबसे बड़े दो चेले महाभारत मचाये हैं इंद्रप्रस्थवा में।
बारीक किस्सा तोता मैना यह के दांव पर है काश्मीर, जहां एक बेटी और बाप के सत्ता लोलुप चेहरे लाइव चमक रहे हैं दमक रहे हैं कि संघ परिवार कश्मीर घाटी पर भारी पड़ने वाला ही ठैरा है।
पलाश विश्वास