ह्ल्ला बोल, बिस्तर गोल- कोलकाता फिर हुआ महाजुलूस का महानगर
ह्ल्ला बोल, बिस्तर गोल- कोलकाता फिर हुआ महाजुलूस का महानगर
सत्तर दशक खत्म हुआ नहीं अभी।
बहरहाल धर्मोन्मादी अश्वमेधी घोड़ों की टापें स्तंभित हैं। धर्मयुद्ध के रथ बेलगाम है। अबाध पूंजी प्रवाह। और पीपी माडल मुक्तबाजारी सत्ता के खिलाफ चूंकि हमारे बच्चे बारिश में भीग रहे हैं।
पलाश विश्वास
ह्ल्ला बोल,बिस्तर गोल कि जागने लगी युवाशक्ति और कोलकाता फिर हुआ महाजुलूस का महानगर कि सत्तर दशक खत्म हुआ नहीं अभी।
हमारा जीना जैसे सार्थक हुआ आज कोलकाता में महाजुलूस की वापसी देखकर।
हमारी आंखें जो तड़प रही थी बीते हुए सत्तर दशक की वर्गहीन उद्दाम छात्रशक्ति की प्रतीक्षा, उन्हें चैन मिला आज।
मुक्त बाजारी तानाशाह कारपोरेट वर्चस्ववादी आदमखोर बलात्कारी सत्ता के खिलाफ कोलकाता में भारी वृष्टिपात के मध्य नंदन अकादमी से शुरु राजभवन तक जारी युवाओं के जनविद्रोह के तमतमाया चेहरे पचास हजार हैं कि एक लाख, या लाखों, अंदाजा लगाना मुश्किल है, महाजुलूस जो शुरू होकर समुंदर में तब्दील है, उसमें धाराएं धाराप्रवाह है।
जेल की दीवारें कम पड़ेंगी इन्हें कैद करने के लिए। चांदमारी के लिए गोलियां भी कम पड़ेंगी क्योंकि प्रकाश्य राजपथ पर सलवा जुडु़म असंभव है।
तो हो सकता है कोलकाता में भी कल परसों पूर्वोत्तर, कश्मीर की तरह लागू हो जाये सशस्त्र सैन्यबल विशेषाधिकार कानून।
हर बच्ची का तब नाम बदलकर नाम हो सकता है इरोम शर्मिला। जैसे सत्तर के धशक में इसी कोलकाता के राजपथ पर नारे बुलंद हुए अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ “वियतनाम आमापर नाम वियतनाम तोमार नाम”। जो नारा बदलकर नारा बना “तोमार नाम आमार नाम नंदीग्राम” तो अब देश भर का नारा है “तोमार नाम आमार नाम यादवपुर”। उसी अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ, जिसके एजेंट सब एजेंट हमारे शासक हैं।
पारदर्शी कपड़ों में सजा नवधनाढ्य शासक वर्ग ने उसी अमेरिकी साम्राज्यवाद के हवाले कर दिये सबकुछ।सारे संसाधन नीलामी पर। नीलामी पर लोकतंत्र। नीलामी पर संप्रभुता। नीलामी पर देश।
नालेज इकोनामी के जरिये जो गुलामी का परिवेश है, वह किरचों में बिखर भी सकता है, देखो कि मुक्तिकामी छात्र युवाशक्ति फिर सड़कों पर है और हमारे बच्चे परबल वृष्टिपात में भीग रहे हैं।
बहरहाल धर्मोन्मादी अश्वमेधी घोड़ों की टापें स्तंभित हैं।
धर्मयुद्ध के रथ बेलगाम है। अबाध पूंजी प्रवाह।
और पीपी माडल मुक्तबाजारी सत्ता के खिलाफ चूंकि हमारे बच्चे बारिश में भीग रहे हैं।
मेयो रोड पर पुलिस ने बहुआयामी बेरीकैड लगाकर युद्धक तरीके से छात्रों को राजभवन के सिंह द्वार पहुंचने से फिलहाल रोक लिया है।
और मेयो रोड की गांधी प्रतिमा के चारों तरफ जनसमुद्र है कोलकाता की गली गली में, बंगाल के कोने कोने में गूंज रहा है एक ही नारा हल्ला बोल, हल्ला बोल।
दिक्दिगंत गूंज रहा है लेकिन टीवी जिंगल वृंदगान के मध्य हल्ला बोल, हल्ला बोल।
छात्र आंदोलन का अराजनीतिक चेहरा फिर वापस लौटा है।
बदलाव के ख्वाब फिर वापस हैं।
फिर नींद हराम हो रही है सत्ता की और फिर जुलूसों के खिलाफ साजिशों की महफिलें शबाब पर है और सत्ता गलियारे में शारदा की कृपा है, शराब की नदियां हैं।
इसी जुलूस में सत्तर के दशक के लाखों लाख मृत चेहरों का पुनरूत्थान से साक्षात्कार हो गया आज।
मृत नवारुण दा जैसे अपनी पूरी फैताड़ु फौज के साथ सत्ता केंद्र पर हल्ला बोल रहे हों। जैसे वैश्विक बंदोबस्त की चूलें हिलाने के लिए वर्गीय ध्रुवीकरण की फ्रासीसी क्रांति में राजपथ, जनपथ, पगडंडियां और मेढ़े एकाकार हों।
यह सिलसिला जारी रहा तो फिर जागेंगे खेत और खलिहान। सारे कब्रिस्तान और श्मशानों से गूंजेगी प्रतिरोध की आवाजें।
हम उन्हीं के लिए जी रहे थे, जो आज राजपथ पर हैं।
हमारे जो बच्चे राजपथ पर जलमग्न कलकाता में भारी बरसात में मुट्ठियां ताने मानव बंधन बनाये भीग रहे हैं, हम दरअसल उन्हीं के लिए तो जीते हैं और मरते भी हैं उन्हीं के लिए।
जो मासूम सुंदर कोमल निष्पाप फूल जैसे हमारे बच्चे भीग रहे हैं आज वे ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़े पुर जोर चीख रहे हैं इस अन्याय और असम व्यवस्था, राज्यतंत्र के खिलाफ। हम उन्हीं के लिए जी रहे थे, जो आज राजपथ पर हैं।
वे दरअसल हमारे लिए भीग रहे हैं।
वे अब लाठियों से डर नहीं रहे हैं।
हमारी फूल जैसी बच्चियां अब छुट्टे सांढ़ों से डर नहीं रही हैं वे उनकी सींगें उखड़ने को मोर्चाबंद हैं।
वे लाठी गोली खा सकते हैं लेकिन अब वे चुप नहीं बैंठेंगे।
हमारी नामर्द चुप्पी टूटने का इंतजार नहीं करेंगे बारिश में भीगते वे बच्चे हमारे ही।
वे हमारे अतीत हैं और भविष्य भी जो वर्तमान में हमारे नेतृत्व के लिए आगे बढ़ रहे हैं हाथों में हाथ।
अस्मिताओं को तार तार करके, जाति नस्लभेद की धज्जियां उड़ाकर, तमाम झंडे और रंग छोड़कर न्याय के लिए, लोकतंत्र के लिए, मानवाधिकार और स्वतंत्रता के लिए।
भारी वृष्टिपात में हमारे बच्चे भीग रहे हैं। पानी से लथपथ पुलिसिया बंदर घुड़कियों के जवाब में पालथी मारकर बैठे हैं हमारे बागी बच्चे।
जो टैब और इंटरनेट में निष्णात होकर नष्ट हो जायें, ई अभिमन्यु बनकर समाज वास्तव से कटकर ऊंची पगार के दल्ला बन जायें या उपभोक्ता बनकर भोग कार्निवाल में नाचेंगे, अंधेरे बाक्स में गुम हो जाये,ऐसी नालेज इकानामी का चकाचौंधी तिलिस्म गढ़कर शासक जनसंहार के खेल में निरंकुश है।
बच्चों ने सेबगाड़ी उनकी पलट दी, उलट दिये राजनीतिक वोटबैंक समीकरण और हाथों में हाथ रखकर गिटार, ड्रम, नगाड़े और तमाम जाने अनजाने वाद्ययंत्र के सहारे जो जादवपुर में गीत गाते हुए पुलिस की लाठियां झेलते हुए गीत गा रहे थे, उन गीतों की गूंज अब पूरे कोलकाता में है, देश भर में है। हल्ला बोल हल्ला बोल।
बत्ती गुल करके जिन बेटियों की लज्जा पर हमला हुआ, उनकी आवाज बनकर राजपथ पर जलमग्न कोलकाता में तलवार की तरह चमक रही हैं हमारी सारी बेटियां। वे बिजली बनकर गिरेंगी तो बदल देंगी सब कुछ। वे हमारी बेटियां। हल्ला बल हल्ला बोल।
कल आधी रात के करीब कैंपस से बेटे एक्सकैलिबर ने इस ज्वालामुखी के महाने से हो रही हलचल की खबर दी थी। खबर दी थी लाठीचार्ज में विकल हो रहे बच्चों के हालात के बारे में। वीडियो फुटेज और मेडिकल रपटों के बारे में बताया था।
आज जुलूस में यादवपुर, खड़गपुर, आईआईटी, जेएनयू, प्रेसीडेंसी, कोलकाता वर्दवान, विश्वभारती जैसे तमाम विश्वाद्यालयों, तकनीकी शिक्षा प्रतिष्ठानों, शिक्षा निकेतन जैसे पारंपारिक शिक्षा संस्थानों से, सेंट जेवियर्स से, देशभर से राज्यभर से आये छात्र नारे लगाते हुए गीत गाते हुए सत्ता प्रतिष्ठान पर हल्ला बोल दिया है, उसे चाक्षुस देखने पर भी भरोसा नहीं हो रहा है कि कैसे वर्गीय ध्रवीकरण और सामाजिक उत्पादक शक्तियों की गोलबंदी से किरचों में बिखर सकता है मुक्तबाजारी तिलिस्म का तामझाम, तंत्र मंत्र यंत्र।
हमारे बच्चे बारिश में भीग रहे हैं क्योंकि हमारी बेटियां, हमारी माताएं और हमारी बहनें सांड़ संस्कृति में कहीं भी सुरक्षित नहीं है।
पुरुषतांत्रिक सत्ता के खिलाफ प्रतिरोध बनकर हमारे बच्चे बारिश में भीग रहे हैं।
देशवासियों, कुछ तो शर्म करो कि बच्चे समता और न्याय के लिए हजारों लाखों की तादाद में बारी बरसात के जलमग्न कोलकाता के राजपथ पद्मप्रलय मध्ये अग्निपुष्प बनकर खिल रहे हैं और हम उनके समर्थन में एक लफ्ज तक खर्च करने को तैयार नहीं है।
एफडीआई खाये राष्ट्रीय अंग्रेजी मीडिया भाषाई मीडिया पर हो सके तो थूको जो कोलकाता के राजपथ पर उमड़ रहे जनसैलाब के बजाय मिथ्या युद्धोन्माद का रसायन बना रहे हैं या देश भर में चुनावी समीकरण बना बिगाड़ रहे हैं या बाजार का माल बेच रहे हैं या सिर्फ देह व्यवसाय टीआरपी में निष्णात हैं।
हमारे भीगते बच्चों तके तमतमाये चेहरे उन्हें दीख नहीं रहे हैं।
उन्हें नजर नहीं आता मोर्चाबंद वरनमवन के बढ़ते कदम के पीछे-पीछे बह निकल रहा है लावा, जो सभ्यता का इतिहास भूगोल बदल देगा यकीनन।
यादवपुर विश्वविद्यालय में जो नंदीग्राम और रवींद्र सरोवार दोहराकर दीदी ने छोटी सी घटना बताकर समूची छात्र युवा शक्ति को हवा में उड़ाना चाहा, वही नंदीग्राम वरनम बन बनकर मोर्चाबंद है एकाधिकारवादी बाजारु सत्ता के खिलाफ।
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