इक चाय वाले के हाथ सत्ता लग गयी..उसने कौमों से क़ौम सुलगाई है..मत भूले देस... आज़ादी की रंगत तो अश्फ़ाक के लहू से आई है
इक चाय वाले के हाथ सत्ता लग गयी..उसने कौमों से क़ौम सुलगाई है..मत भूले देस... आज़ादी की रंगत तो अश्फ़ाक के लहू से आई है

इक चाय वाले के हाथ सत्ता लग गयी..
चटपटी पाकिस्तानी चटनी पकौड़ियों के साथ हट्टी सज गयी…
उसने हिंदू-हिंदू फूँक कर अंगार जलाया,
इक काग़ज़ के टुकड़े से असम मेघालय सुलगाया..
अब धीमी-धीमी आँच पर सुलग रहीं है देस की भट्टी..
हौले हौले से चायवाले की चल निकली है हट्टी ..
उसकी इस हट्टी पर देस की जलती भट्टी पर..
साध्वियों की भीड़ बड़ी..
दल-बदलुओं की तो निकल पड़ी....
मीडिया की हाइप से..
फ़र्ज़ी सर्जिकल स्ट्राइक से..
मंदिर का मसला तो कभी क़ौम ..
तरक़्क़ी के तमाम मुद्दे सब स्वाहा ऊँ...
नफ़रतों का कंडा बल रहा है ..
अर्थ व्यवस्था का धुआँ निकल रहा है..
गुलाबी नोट खप गया..
अब तो रेप भी दब गया..
बेचारी जनता कंकड़ों से आँकड़े चबा रही है..
किरक रहे हैं दाँत फिर भी मुस्करा रही है..
वो कुछ इस तरह से अपनी तमाम नाकामियो को ठेल रहे हैं..
और सूतिया लोग हिन्दू मुस्लिम खेल रहे हैं....
षड़यंत्र है यह सत्ता लोलुपता का ...
उसने कौमों से क़ौम सुलगाई है..
मत भूले देस...
आज़ादी की रंगत तो अश्फ़ाक के लहू से आई है....
डॉ. कविता अरोरा


