लखनऊ, 28 फ़रवरी 2024: ‘गाज़ा के साथ हम’ - ‘प्रत्यूष’ की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में गाज़ा में इज़रायल के बर्बर हमले की शिकार हो रही फ़िलिस्तीनी जनता और उसके मुक्ति संघर्ष के साथ एकजुटता ज़ाहिर की गयी और गाज़ा में जारी जनसंहार पर फ़ौरन रोक लगाने की आवाज़ उठायी गयी।

अनुराग लायब्रेरी में हुए कार्यक्रम में फ़िलिस्तीनी कवियों की कविताओं पर बनाये गये 10 कविता पोस्टरों की श्रृंखला का लोकार्पण किया गया और फ़िलिस्तीनी तथा फ़िलिस्तीन पर लिखी कविताओं, कहानियों तथा पत्रों का पाठ किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत में सत्यम ने कहा कि गाज़ा के लोगों के समर्थन में और इज़रायल के बर्बर जनसंहारी हमले के विरोध में सारे यूरोप, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में रोज़ लाखों लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। तमाम पश्चिमी देशों की सरकारें बेशर्मी से इज़रायल का साथ दे रही हैं जो हर अन्तरराष्ट्रीय क़ानून और सन्धि की धज्जियाँ उड़ा रहा है लेकिन इन देशों के आम लोग गाज़ा के लोगों के साथ हैं और अपने हुक्मरानों पर दबाव बनाये हुए हैं। दूसरी ओर, हिन्दुस्तान में इस मसले पर सन्नाटा छाया हुआ है जबकि भारत शुरू से फ़िलिस्तीन की आज़ादी का समर्थन करता आया है। इसकी एक वजह यहाँ की मोदी सरकार है जो भारत के आधिकारि स्टैंड से परे जाकर नेतन्याहू सरकार के साथ करीबी बढ़ा रही है। दूसरी बड़ी वजह यह है कि मीडिया में जारी ब्लैकआउट के कारण आम आबादी को पता ही नहीं है कि गाज़ा में इज़रायल किस क़दर जनसंहार और तबाही मचा रहा है। बहुतेरे लोगों को, ख़ासकर युवा पीढ़ी को फ़िलिस्तीन और इज़रायल के इतिहास की भी कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में लोगों को सच्चाई से वाकिफ़ कराना एक ज़रूरी काम है।

जारी किये गये कविता पोस्टर महमूद दरवेश, ग़सन कानाफ़ानी, फ़दवा तुकन, इब्राहीम तुकन, ख़ालिद जुमा, समीह अल क़ासिम, मोईन बेसिस्सो, तौफ़ीक ज़ायद और माइकल रोज़ेन की कविताओं पर बने हैं। लेखक शकील सिद्दीक़ी, कवियत्री कात्यायनी, चित्रकार रामबाबू और सत्यम ने कविता पोस्टरों का लोकार्पण किया।

इसके बाद कात्यायनी ने अपनी लम्बी कविता ‘फ़िलिस्तीन 2015’ पढ़ी। शिप्रा ने इब्राहीम तमीमी की कविता ‘गाज़ा की माँओं के नाम’, लालचन्द्र ने समीह अल-क़ासिम की कविता ‘संयुक्त राष्ट्र के गणमान्य लोगों के नाम’, संजय ने ख़ालिद जुमा की कविता ‘ओ गाज़ा के शरारती बच्चो’, राजू ने फ़ौजी अल असमार की कविता ‘एक यहूदी दोस्त से’ तथा सत्यम ने विजया सिंह की कविता ‘हीबा-हबीबा’ और कविता कृष्णपल्लवी की कविता ‘गाज़ा के एक बच्चे की कविता’ का पाठ किया। असग़र मेहदी ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म ‘फ़िलिस्तीनी बच्चे के लिए लोरी’ पढ़ी। डॉ. सबीहा फ़ातिमा ने फ़िलिस्तीन पर अपनी दो मार्मिक कविताएँ सुनायीं और नितिन सिंह ने अपनी एक मौजूँ कविता का पाठ किया।

शकील सिद्दीक़ी ने तीन फ़िलिस्तीनी कहानियों का पाठ किया जिनका उन्होंने अनुवाद किया है। ये कहानियाँ हैं अकरम हानिया की ‘अबू क़ासिम की हड़ताल’, महमूद शक़ीर की ‘परचम’ और ज़ैनुल आबदीन हुसैनी की ‘शिकस्तज़दा’।

सत्यम ने दुनिया के 24 जाने-माने डॉक्टरों की ओर से लिखे गये ‘गाज़ा के लोगों के नाम खुला पत्र’ के बेहद असरदार अंश पढ़कर सुनाये जो प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल ‘लांसेट’ में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने गाज़ा के कुछ पत्रकारों और नागरिकों के पत्रों के अंश भी पढ़े।

कार्यक्रम के दौरान और उसके बाद अनौपचारिक सत्र में बहुत अच्छी बातचीत भी हुई जिसकी ब्यौरेवार रिपोर्ट हम जल्द ही अलग से साझा करेंगे। इस कार्यक्रम में अर्गवान रब्बी, विनीत सिंह, संजय कुमार, गणेश कुमार, अंकित, चन्दन साहित्यानुरागी, डॉ. सुव्रत, दानिश, अदनान हामिद, यशू, अचिन्त्य, बालेन्दुशेखर, प्रिया यादव, अब्दुल्ला साक़िब, कुमार वीरेन्द्र, सोमनाथ, सचिन, पुनीत, विकास, राजू आदि ने भी भागीदारी की।

इस मौक़े पर ‘जनचेतना’ की ओर से फ़िलिस्तीन पर केन्द्रित कुछ किताबों, पोस्टरों और कैलेण्डर की प्रदर्शनी भी लगायी गयी थी।

Poetry recitation in solidarity with the Palestinian people