भोपाल के कथित एनकाउंटर की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में न्यायिक जांच की मांग
भोपाल के कथित एनकाउंटर की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में न्यायिक जांच की मांग
भोपाल के कथित एनकाउंटर की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में न्यायिक जांच की मांग
भोपाल के कथित एनकाउंटर की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में न्यायिक जांच की मांग को लेकर आम सभा व कैंडल मार्च
भोपाल 15 नवंबर। भोपाल के अति-सुरक्षित माने जाने वाले सेंट्रल जेल से आठ विचाराधीन कैदियों की तथाकथित फरारी, कथित ‘एनकाउंटर’ व इसी घटनाक्रम में एक जेल प्रहरी की हत्या और उसके बाद प्रदेश सरकार और पुलिस के रवैये से प्रदेश में नागरिकों की सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों की गंभीर स्थिति और कथित एनकाउंटर की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में न्यायिक जांच कराने की मांग उठाने के लिए अनेक राजनीतिक दलों, जन संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों ने 15 नवंबर 2016 (मंगलवार) को भोपाल में आम-सभा और कैंडल मार्च का आयोजन किया।
सभा के दौरान यह कहा गया कि मामले में सरकार और पुलिस के बयानों में ढेरों अंतरविरोध और गड़बड़ियां हैं।
इससे यह शक होता है कि सरकार मामले की पूरी सच्चाई को लोगों के सामने नहीं ला रही है। यही नहीं इस मामले में मीडिया में जो रपटें आयी हैं उससे इस कथित ‘एनकांउटर’ की वास्तविकता संदेह के घेरे में आती है। इस कथित एनकाउंटर के कई वीडियो सामने आये हैं जिनमें से एक में दिख रहा है कि पुलिस एक जमीन पर पड़े एक निहत्थे आदमी को गोली मार रही है। इससे लगता है कि पुलिस यह मन बना चुकी थी कि किसी आरोपी को जीवित नहीं पकड़ना है।
यह सब न्यायिक जांच का मुद्दा है। लेकिन सरकार न सिर्फ मामले पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है, बल्कि मुख्यमंत्री समेत सत्ताधारी पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन इस मुद्दे पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और उन्माद भड़काकर राजनीतिक हित साधने की कोशिश कर रहे हैं।
इस मामले का एक और चिंताजनक पहलू है विचाराधीन कैदियों को सरकार और मीडिया के बड़े हिस्से द्वारा ‘आतंकवादी’ कहा जाना। यह सीधे-सीधे कानून-संविधान और न्यायालयों का मजाक उड़ाने जैसा है।
मुख्यमंत्री द्वारा ऐसे भड़काऊ शब्दों का इस्तेमाल यह दिखाता है कि सरकार देश के संविधान और नागरिक अधिकारों की कितनी इज्जत करती है। इससे यह सवाल भी उठता है कि अगर अपराध का फ़ैसला मुख्यमंत्री या पुलिस करेंगे तो फिर कानून और कोर्ट क्या सिर्फ दिखावा है?
गौरतलब है कि कई पूर्व के कई मामलों में पुलिस द्वारा ‘आतंक’ के आरोप में गिरफ़्तार किए गए लोगों को कोर्ट ने बाइज्जत बरी किया है और पुलिस की ज्यादतियों की आलोचना भी की है।
अक्षरधाम बम कांड के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ आरोपियों को बरी किया था बल्कि गुजरात पुलिस और सरकार को गैरजिम्मेदाराना रवैये के लिए लताड़ा भी था।
गौरतलब है कि मणिपुर में फर्जी एनकाउंटरों को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में यह स्पष्ट कहा कि पुलिस या सुरक्षा एजेंसियां ‘आतंकवाद’ का बहाना बना कर न्याय व कानून को नहीं तोड़ सकती।
इससे पहले 2013 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित संतोष हेगड़े कमीशन ने मणिपुर में ऐसे ही कुछ एनकाउंटर मामलों की जांच में पाया था कि वे सभी फर्जी थे। ऐसे में इस मामले के आरोपियों को ‘आतंकवादी’ कहकर उनकी हत्या को न्यायोचित ठहराना सरकार की संविधान-विरोधी, कानून-विरोधी और द्वेषपूर्ण मानसिकता को ही उजागर करता है।
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार श्री एल. एस. हरदेनिया, शिक्षाविद् डॉ. अनिल सदगोपाल, साहित्यकार राजेश जोशी, सीपीएम राज्य सचिव बादल सरोज, सीपीआइ नेता शैलेन्द्र शैली, भाकपा-माले के विजय कुमार, प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य अध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल जब्बार, डॉ. सुनीलम, आशा मिश्रा, माधुरी समेत अनेक नागरिक, विद्यार्थी आदि शामिल हुए। सभी ने इस मुद्दे पर प्रतिरोध को राज्य स्तर पर आगे बढ़ाने का भी संकल्प लिया।


