मोदी सरकार की हैट्रिक का मतलब मजदूरों की तबाही
1991 से शुरू की गई नई आर्थिक औद्योगिक नीतियों ने कॉर्पोरेट को मालामाल किया है और सार्वजनिक क्षेत्र को बर्बाद किया है। जिससे मजदूरों के हालात बद से बद्तर होते गए और देश में असमानता बड़े पैमाने पर बढी है।

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●सरकार पर हो गया है पूंजीपतियों का नियंत्रण
●लेबर कोड मजदूरों के शोषण का दस्तावेज, रद्द किए जाएं
●ठेका मजदूर यूनियन सम्मेलन पिपरी सबआर्डिनेन्स क्लब में हुआ
●कृपाशंकर अध्यक्ष व तेजधारी मंत्री चुने गए
●एजेण्डा यू. पी. अभियान में शामिल होंगे मजदूर
पिपरी-सोनभद्र (यूपी), 18 फरवरी 2024: कॉरपोरेट की एजेंट बनी मोदी सरकार ने लंबे संघर्षों से हासिल श्रम कानूनों की जगह लेबर कोड संसद से पारित कराए हैं, जिसका मकसद मजदूरों का बर्बर शोषण करना है। इन लेबर कोड में 12 घंटे काम के प्रावधान, मजदूरों का नियमितीकरण व समान काम का समान वेतन के प्रावधान को खत्म किया गया है और न्यूनतम मजदूरी भुगतान, बोनस, ईपीएफ, ईएसआई जैसे विधिक अधिकारों को सुनिश्चित करने में प्रधान नियोक्ता की भूमिका को खत्म कर दिया गया है। न्यूनतम मजदूरी की जगह दरों को कम कर फ्लोर रेट मजदूरी प्रावधान किया गया है, फिक्स टर्म इम्पलाइमेंट के जरिए मजदूरों की जिंदगी को पूरी तरह से असुरक्षित बना दिया गया है। श्रम विभाग को भूमिका एनफोर्समेंट की जगह फैसिलिटेटर की कर दी गई है। निर्माण से लेकर असंगठित मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए बने बोर्डों को भंग करने का प्रावधान है।
उक्त बातें आज पिपरी स्थित सब ऑर्डिनेट क्लब में ठेका मजदूर यूनियन के 21 वें सम्मेलन में मुख्य वक्ता यू. पी. वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व श्रम बंधु दिनकर कपूर ने कही।
श्री दिनकर ने कहा कि मजदूरों की एकजुटता और देशव्यापी आंदोलन के दबाव में फिलहाल अभी मोदी सरकार इन लेबर कोड को लागू नहीं कर पायी है। लेकिन अगर आम चुनाव में मोदी सरकार की हैट्रिक होती है तो वह इन्हें लागू करने की पुरजोर कोशिश करेगी, जिससे मजदूरों की और भी ज्यादा तबाही होगी। ऐसे में भाजपा को हराना और मजदूरों को अपनी स्वतंत्र राजनीतिक ताकत बनाना आज मजदूर आंदोलन के सामने प्रमुख कार्यभार है।
उन्होंने कहा 1991 से शुरू की गई नई आर्थिक औद्योगिक नीतियों ने कॉर्पोरेट को मालामाल किया है और सार्वजनिक क्षेत्र को बर्बाद किया है। जिससे मजदूरों के हालात बद से बद्तर होते गए और देश में असमानता बड़े पैमाने पर बढी है। आज सरकार पर ही पूंजीपतियों का नियंत्रण हो गया है। इन नीतियों के पक्ष में पूंजीवादी सभी राजनीतिक दल है और उनकी सरकारों में भी मजदूर अधिकारों में लगातार कटौती की गई है। इसलिए मजदूरों के हितों को पूरा करने वाली जन राजनीति के साथ मजदूरों को जुड़ना चाहिए।
युवा मंच के प्रदेश संयोजक राजेश सचान ने 19 फरवरी को आयोजित ग्राऊण्ड ब्रेकिंग सेरेमनी (जीबीसी) को महज चुनावीं प्रोपेगैंडा बताते हुए कहा कि पूर्व में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का हश्र देखा जा चुका है। प्रदेश व देश में बेकारी बेइंतहा बढ़ी है, जिससे मजदूर अमानवीय परिस्थितियों में काम करने को विवश हैं। उन्होंने हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी, देश में रिक्त पड़े एक करोड़ रिक्त पदों को तत्काल भरने और आउटसोर्सिंग/संविदा व्यवस्था का उन्मूलन जैसे सवालों को उठाया।
ठेका मजदूर यूनियन पदाधिकारियों व मजदूर नेताओं ने कह


