सड़क के सारे कुत्ते सलामत हैं इन दिनों, कारों से कुचले नहीं जा रहे, इक वायरस ने दुनिया को उसकी औक़ात बता दी
सड़क के सारे कुत्ते सलामत हैं इन दिनों, कारों से कुचले नहीं जा रहे, इक वायरस ने दुनिया को उसकी औक़ात बता दी

सड़क के सारे कुत्ते सलामत हैं इन दिनों,
कारों-वारों से कुचले नहीं जा रहे...
सड़कें भी आराम फरमा रही हैं चाहे उचली हो या कुचली
अड्डे-गड्ढे सब सुकून की साँस ले रहे हैं
बड़े-बड़े टायरों तले पिसते-पिसते इक उम्र हो गयी
कमबख़्त स्पीड कभी कम नहीं हुयी ...
चाँद को सूरज की तरह जला डाला ...
इन बेचैन लोगों ने रात को भी दिन बना डाला ..
पुराने दौर में बड़े-बड़े परिवार होते थे
मगर फिर भी सुकून भरे इतवार होते थे ..
परदेसी चिट्ठी-पत्री में अपनों की शक्ल खोजते थे ..
बड़े चाव लिये बेवतन घर लौटते थे ..
अब सबके मनोरंजन को नेट है ..
फैमली इंटरटेनमेट आउटडेट है ...
घरों की ईंटें धड़क पर है
लोगों की हर बात सड़क पर है ....
हमारे मुल्क में कुछ नेताओं की राजनीति जब ढल रही थी
तब सड़कें धूं धूं करके जल रही थीं ..
इन सड़कों पर धर्म उफान पर था
कुछ मंदिरों का शोर मस्जिदों के कान पर था ...
इंसानों में से इंसान छाँटे जा रहे थे
इन्हीं सड़कों पर लोग कौमों में बाँटे जा रहे थे ..
सड़कों पर शोर था दूसरे मुल्क के लोग यहाँ बसाये जायेंगे ..
अब हुक्म हुआ है लोग घरों से बाहर नहीं आयेंगे ..
धड़धड़ाहटे चिल्ल पौं शोर के मुँह पर हाथ रक्खो ..
मुँह ढँको वायरस की धाक है
जुलूस-वुलूस लोगों का आपसी खुलूस सब ख़तरनाक है ...
डॉ. कविता अरोरा (Dr. Kavita Arora) कवयित्री हैं, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली समाजसेविका हैं और लोकगायिका हैं। समाजशास्त्र से परास्नातक और पीएचडी डॉ. कविता अरोरा शिक्षा प्राप्ति के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ी रही हैं।क्योंकि दुनिया का तमाम सिस्टम चोक पर है
रेल-वेल उड़ान-वुड़ान सब रोक पर है..
रिक्शा ..पैदल ..फुटपाथिये भिखारी ..
ठेले ..फेहरी..औरतों बच्चों की खचपच ..
हर तरफ़ भीड़ ही भीड़ खचाखच ..
सड़कें हैरान हैं कहाँ है मुल्कों की आबादी ..
टीवी चिल्ला-चिल्ला कर कर रहा है मुनादी ..
हाथ धो लीजिये ...
हाथ धो लीजिये ....
काश यह हाथ कुछ दिनों पहले धो लिये होते ...
जो दंगों में बेवजह मारे गये ज़िंदा होते ...
तरक़्क़ी पैसा पावर हथियारों के जखीरों की जात बता दी ...
इक वायरस ने दुनिया को उसकी औक़ात बता दी।
डॉ. कविता अरोरा


