सिन्हा, शौरी, भूषण ने राफेल पर सर्वोच्च फैसले को बताया हैरत भरा, कहा मगर ये 'क्लीनचिट' नहीं
सिन्हा, शौरी, भूषण ने राफेल पर सर्वोच्च फैसले को बताया हैरत भरा, कहा मगर ये 'क्लीनचिट' नहीं
सिन्हा, शौरी, भूषण ने राफेल पर सर्वोच्च फैसले को बताया हैरत भरा, कहा मगर ये 'क्लीनचिट' नहीं
नई दिल्ली, 14 दिसंबर। राफेल सौदे में विवादास्पद ढंग से 36 विमानों की खरीद के संबंध में अदालत की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग कर रहे याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को अत्यंत दुखद और हैरत भरा बताया, मगर कहा कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय ने राफेल सौदे में सरकार को 'क्लीनचिट' दे दी है।
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर आश्चर्यजनक ढंग से अपनी ही न्यायिक समीक्षा के दायरे को छोटा कर लिया। मोदी सरकार इस सौदे में भ्रष्टाचार के जिन आरोपों के संतोषजनक जवाब भी नहीं दे पा रही थी, उनकी अगर स्वतंत्र जांच भी न हो तो देशवासियों के कई संदेहों पर से पर्दा नहीं हटेगा।
सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को झूठी जानकारी देकर गुमराह किया
Government misled by giving false information to Supreme Court
ऐसे में सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को झूठी जानकारी देकर जिस तरह गुमराह किया वो देश के साथ धोखा है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का एक आधार यह बताया गया कि केंद्र सरकार ने सीएजी से लड़ाकू विमान की कीमतें साझा की, जिसके बाद सीएजी ने पीएसी (लोकलेखा समिति) को रिपोर्ट दे दी और फिर पीएसी ने संसद के समक्ष राफेल सौदे की जानकारी दे दी है, जो अब सार्वजनिक है।
उन्होंने कहा,
"हमें यह नहीं पता कि सीएजी को कीमत का ब्यौरा मिला है या नहीं, लेकिन बाकि सारी बातें झूठ हैं। न ही सीएजी की तरफ से पीएसी को कोई रिपोर्ट दी गई है, न ही पीएसी ने ऐसे किसी दस्तावेज का हिस्सा संसद के समक्ष प्रस्तुत किया और न ही राफेल सौदे के संबंध में ऐसी कोई सूचना या रिपोर्ट सार्वजनिक है। लेकिन सबसे हैरत की बात है कि इन झूठे आधार पर देश की शीर्ष अदालत ने राफेल पर फैसला सुना दिया!"
सिन्हा, शौरी और भूषण ने कहा कि ऑफसेट पर उठ रहे सवालों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यह निर्णय फ्रांस के दसॉ एविएशन का था जो वर्ष 2012 से ही रिलायंस से चर्चा में था, जबकि सच्चाई यह है कि जिस रिलायंस पर आज सवाल उठ रहे हैं वो अनिल अंबानी की है और 2012 से जिनसे दस्सो की चर्चा रही थी वो मुकेश अंबानी की। ये दोनों दो अलग अलग कंपनियां हैं और अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस तो 2015 में प्रधानमंत्री द्वारा फ्रांस में राफेल सौदे की घोषणा के कुछ ही दिनों पहले गठित की गई थी। यानी अनिल अंबानी की रिलायंस को ऑफसेट का फायदा पहुंचाने के मामले में भी अदालत को गुमराह किया गया।
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत अपनी न्यायिक समीक्षा के दायरे को आधार बनाकर याचिका खारिज की है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय ने राफेल सौदे में सरकार को 'क्लीनचिट' दे दी है।
सिन्हा, शौरी और भूषण ने कहा कि यह फैसला भी सहारा, बिड़ला मामलों जैसे पिछले फैसलों की तरह ही है, जिनमें पारदर्शी ढंग से जांच करवाने की बजाय मामले को रफा दफा कर दिया गया। राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के संगीन आरोप देशवासियों को तब तक आंदोलित करते रहेंगे, जब तक कि मामले में निष्पक्ष जांच करके दूध का दूध और पानी का पानी न हो जाए। देश की खातिर इस मामले की निष्पक्ष जांच बेहद जरूरी है।
Watch: I explain the facts and implications of the disappointing and shocking judgement of the Supreme Court today on the Rafale deal which contains many factual errors and does not address issues raised by us.https://t.co/u0VJQTfa6M
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) December 14, 2018


