सुबह के इस मौन इश्क़ को पढ़ा है तुमने ?
सुबह के इस मौन इश्क़ को पढ़ा है तुमने ?

शबनमीं क़तरों से सजी अल सुबह
रात की चादर उतार कर ,
जब क्षितिज पर
अलसायें क़दमों से बढ़ती हैं ,
उन्हीं रास्तों पर पड़े इक तारे पर
पाँव रख चाँद
डॉ. कविता अरोरा (Dr. Kavita Arora) कवयित्री हैं, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली समाजसेविका हैं और लोकगायिका हैं। समाजशास्त्र से परास्नातक और पीएचडी डॉ. कविता अरोरा शिक्षा प्राप्ति के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ी रही हैं।फ़लक से उतर कर
सुबह को चूम लेता है,
नूर से दमकती शफ़क़ तब
बोलती कुछ नहीं ,
चिड़ियों की चहचहाटों में
सिंदूर की डिबिया वाले हाथ को
चुप से पसार देती है ,
और फिर भर - भर कर चुटकियों में
सजाये जाते हैं यह रूप के लम्हे ,
सुबह के इस मौन इश्क़ को पढ़ा है तुमने ?
डॉ. कविता अरोरा
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