70 साल का लोकतंत्र दलितों-मुसलमानों के जनसंहारों का इतिहास- शाहनवाज आलम
नांदेड 22 अगस्त 2016। दलितों और मुसलमानों पर हो रही हिंसा के खिलाफ रिहाई मंच द्वारा आयोजित इस रैली में आया भारी जनसमुदाय यह साबित करता है कि देश सचमुच बदल रहा है। सड़क से उठी यह ऐसी बदलाव की आंधी साबित होने जा रही है, जिसमें सत्ता और संसद में बैठे लोग, जो बिकाऊ मीडिया के जरिए देश के बदलने की अफवाह उड़ा रहे हैं, वे सभी उड़ने जा रहे हैं। देश में बदलाव के दो मॉडल चल रहे हैं। संसद के संरक्षण में देश के दलितों और मुसलमानों पर हो रहे हमले को बदलाव बताया जा रहा है। जो बदलाव का सरकारी माडॅल है। तो वहीं सड़कों पर दलितों और मुस्लिम समाज के बीज ऐतिहासिक एकता भी बनती जा रही है। सड़क से उठने वाला बदलाव का यह मॉडल संसद के बदलाव के मॉडल पर भारी पड़ रहा है। इसीलिए सरकारें और उसके जबी संगठनों ने इस रैली को विफल करने की कोशिशें अंतिम समय तक कीं। लेकिन ऐसे षडयंत्र जनता की एकता के सामने नहीं टिकते।
ये बातें रिहाई मंच के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने पीर बुरहान मैदान में आयोजित रैली में कहीं।
शाहनवाज आलम ने कहा कि दलितों और मुसलमानों पर हमले सिर्फ मोदी सरकार में ही नहीं हो रहे हैं। देश की तमाम सरकारों ने आजादी मिलने के साथ ही इन दोनों समुदायों के खिलाफ हिंसा को संस्थागत रूप दे दिया।
उन्होंने कहा कि 70 साल का लोकतांत्रिक भारत का इतिहास दरअसल दलितों और मुसलमानों के जनसंहारों और उनके अपमान का इतिहास है। जिसमें इस देश की सरकारों के साथ ही न्यायपालिका और मीडिया भी शामिल रही है। इसीलिए न तो कभी 1948 में हैदराबाद के 2 लाख मुसलमानों के सरकारी जनसंहार जिसे नेहरू सरकार ने ऑपरेशन पोलो का नाम दिया था, के दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई और ना ही तमिलनाडू के थंजउर जिले में 1968 में हुई 44 दलितों की हत्या के आरोपियों को सजा नहीं हुई, क्योंकि अदालत ने यह मानने से ही इंकार कर दिया कि उच्च जातियों के जो लोग दलितों के मुहल्लों में जाते ही नहीं हैं, उन्होंने वहां जाकर ये हत्याऐं की होंगी।
उन्होंने कहा कि देश की हर संस्था जिसकी जिम्मेदारी नागरिकों को न्याय मुहैया करानी रही है उसने साम्प्रदायिक और ब्राह्मणवादी तत्वों को बचाने का काम किया है। इसीलिए हम देखते हैं कि जब बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की जांच की मांग की जाती है तो न्यायपालिका मांग मानने से इंकार करते हुए साफ शब्दों में कह देती है कि ऐसा नहीं किया जाएगा क्योंकि इससे पुलिस का मनोबल गिर जाएगा। 70 साल का हमारा लोकतंत्र दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों और तमाम कमजोर तबकों के मनोबल को गिराने और सवर्ण, सामंती और वर्दी पहने हत्यारों के मनोबल को बढ़ाने पर टिका है।

दलित-मुस्लिम एकता स्वतंत्र भारत के निर्माण का संकेत
शाहनवाज आलम ने कहा कि आज जब हम रामदास आठवले, रामविलास पासवान और मायावती को मनुवादीयों की सेवा में लगे देखते हैं तो बाबा साहब डाॅ अम्बेडकर की बात सच साबित होती लगती है जो उन्होंने 18 मार्च 1956 में आगरा में कही थी कि उनके मिशन को सबसे ज्यादा खतरा अवसरवादी और सत्तालोलुप दलित नेताओं से ही है।
उन्होंने कहा कि रिहाई मंच महाराष्ट्र में दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को नया राजनीतिक विकल्प देने जा रहा है। ऐसा विकल्प जो वास्तव में बाबा साहब अम्बेडकर, रोहित वेमुला और शाहिद आजमी के सपनों का भारत बनाएगा।

भोजन बनाम गोमूत्र के संघर्ष में गोमूत्र पिलाने वालों की हार निश्चित- शरद जायसवाल
रैली को सम्बोधित करते हुए रिहाई मंच के वरिष्ठ नेता शरद जायसवाल ने कहा कि संघ परिवार देश को अतार्किक और हत्यारी भीड़ में तब्दील कर देना चाहता है। जबकि अम्बेडकर के विचारों को मानने वाला दलित और मुस्लिम समाज देश को एक समतामूलक परिवार बनाना चाहता है।
उन्होंने कहा संघ भारत को मनुवादी युग में ले जाना चाहता है, जहां दलितों की हत्या कोई अपराध नहीं होगी, जबकि डॉ. अम्बेडकर भारत को आधुनिक युग में ले जाने की बात करते हैं, जहां मानव की गरिमा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
श्री जायसवाल ने कहा कि संघ भारत के लोगों को गौमूत्र पिलाना चाहता है अम्बेडकर हर भारतीय को भोजन मुहैया कराने की बात करते हैं। इसलिए इस देश की जनता को तय करना होगा कि उसे गौमूत्र चाहिए या भोजन। वह इतिहास में पीछे लौटना चाहती है या बेहतर भविष्य की ओर बढ़ना चाहती है।
उन्होंने कहा कि पूरे देश में दलितों और पिछड़ों में संघ और मोदी सरकार के खिलाफ भड़का आक्रोश साबित कर रहा है कि इस संघर्ष में गोमूत्र पिलाने वालों की हार निश्चित है। रिहाई मंच बदलाव की इस राजनीति में जनता की आंकाक्षाओं को नेतृत्व देने के लिए अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी लेकर आपके बीच आया है।

इस दौरान दैनिक सोशल डायरी के विशेष अंक का विमोचन भी किया गया।
रैली के संयोजक और सोशल डायरी के सम्पादक अहमद कुरैशी ने कहा कि बदलाव की इस राजनीति के लिए रिहाई मंच का महाराष्ट्र में दस्तक देना यहां की जनता के लिए बेशकीमती तोहफा है। जिसके समता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय के संघर्ष और समतामूलक समाज के एजेंडे को आगे बढ़ाना रोहित वेमुला और शाहिद आजमी के सपनों के नए भारत का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए पूरे महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में जिला और तालुका यूनिट का गठन किया जाएगा।
मौलाना मोबीन खान इनामदार ने कहा कि महाराष्ट्र को एक निःस्वार्थ संगठन की तलाश लम्बे समय से थी, वह रिहाई मंच के आने से पूरी हो गई है। सामाजिक कार्य करने वाले संगठन तो कई हैं लेकिन निःस्वार्थ रूप से अपनी समाजी और सियासी जिम्मेदारी निभाने वाले संगठन तो उंगलियों पर गिनने जितने ही पाए जाते हैं। हमें ऐसे ही निःस्वार्थ संगठन की जरूरत थी जिसके लिए मैं रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब, महासचिव राजीव यादव, शरद जायसवाल और शाहनवाज आलम के साथ ही अहमद कुरैशी का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने उभरते हुए नए सितारों को रिहाई मंच जैसा प्लेटफॉर्म दिया।

रैली का संचालन लातूर से आए मोहसिन खान ने किया।
इनके अलावा मुम्बई से आए नासिर खान, नासिक से शेख लतीफ, परभनी से एडवोकेट मिर्जा अफजल बेग और एडवोकेट एजाज, किनपट से शेख फैयाज, अजहर खान, कमर चाउस अलजाबरी भी मौजूद थे।
इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अब्दुल रउफ, शेख इमरान, शेख जावेद इब्राहिम, मोहम्मद जिलानी, आनंदा गालफड़े, एजाज कुरैशी, शेख अफसर, अहमद बागवाले आदि ने प्रयास किया।

70 years of democracy History Of Dalit-Muslim massacres- Shahnawaz Alam
Save

Save