नारी-समाज की उन्नति के सोपान : शिक्षा एवं आर्थिक आत्मनिर्भरता

महिला दिवस पर चर्चा नारी शिक्षा और आत्मनिर्भरता के महत्व पर। भारत में आज भी 24 करोड़ 50 लाख महिलाएँ निरक्षर हैं। शिक्षा ही महिला सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता और समाज के विकास की कुंजी है। ग्रामीण और पिछड़े वर्ग की महिलाओं को शिक्षा से जोड़ना समय की मांग है।;

By :  Hastakshep
Update: 2011-09-01 13:00 GMT

प्रत्येक वर्ष 8 मार्च के दिन महिला-दिवस राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। हर जगह महिला-सम्मेलन, समाज-सुधारकों द्वारा विविध कार्यक्रम एवं महिला गोष्ठियाँ की जाती है जिसमें अधिकतर आज की उन्नत व पढ़ी-लिखी नारी के सशक्त व्यक्तित्व पर ही चर्चा की जाती है कि आज नारी राजनीति, प्रशासनिक, संगीत, ज्ञान-विज्ञान आदि प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। आज हर पदवी पर उसका अधिकार है। परन्तु हम भारत देश के उन अशिक्षित एवं ग्रामीण क्षेत्रों के पिछड़े हुए नारी-वर्गों की स्थिति पर अधिक ध्यान नहीं देते जो सही अर्थों में शिक्षा से वंचित होकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है जिससे उसके साथ होने वाले अत्याचार दिन भर दिन बढ़ते जाते हैं। और नारी-वर्ग की स्थिति शोषित तथा दयनीय हो जाती है।

वैसे तो शिक्षा का अधिकार प्रत्येक नागरिक का मानवीय अधिकार माना जाता है। नारी भी तो ‘मानवी’ है फिर नारी को ही इस शिक्षा के अधिकार से वंचित कर उसके साथ भेदभाव क्यों किया जाता है। पुरुष-प्रधान समाज में नारी को शिक्षा से वंचित करने के कई कारण हो सकते हैं जैसे-बेटे व बेटी में अन्तर करके बेटी को विद्यालय न भेजना, बेटी की पराया धन के रूप में मान्यता, बेटियों को विद्यालय न भेजने की जगह उससे घरेलू कामकाज करवाना आदि। जब नारी शिक्षा के अधिकार की बात की जाती है तो नारी अपनी इस दयनीय अवस्था का जिम्मेदार पुरुष को मानकर उसका विद्रोह करते हुए उसे अपना प्रतिद्वन्द्वीं समझ लेती है। परन्तु वास्तविकता यह है कि इस स्थिति का जिम्मेदार पुरुष नहीं बल्कि पुरुष प्रधान समाज द्वारा बनाए गए रीति-रिवाज, मान्यताएँ, परम्पराएँ व रूढि़याँ हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि इन प्राचीन काल से चली आ रही मान्यताओं को तोड़कर नारी को शिक्षा के अधिकार से वंचित न किया जाए। नारी-शिक्षा से अभिप्राय केवल अक्षर ज्ञान नहीं अपितु नारी का शिक्षित होकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर अपने आत्मसम्मान को जागृत करना भी है।

भारतीय महिलाओं की एक बड़ी आबादी अशिक्षा, निर्धनता असमानता के कारण अनेक प्रयासों के बावजूद आज भी उपेक्षित है। सामाजिक दृष्टि से देखें तो विदेशों में अधिकांश नारियाँ शिक्षित होकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है। जैसे-यूगोस्लाविया की महिलाएँ उस देश की कृषि-व्यवस्था संभालती हैं। रूस, चीन आदि देशों में महिलाएँ राष्ट्रीय-सम्पदा बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। रूस में शिक्षा-व्यवस्था अधिकांशतः महिलाओं द्वारा ही संचालित की जाती हैं। जापान की महिलाएँ घरेलू उद्योग-धन्धें का विकास करने में पुरुषों से एक कदम भी पीछे नहीं हैं। जर्मनी में भी कल-करखानों को संभालने के लिए महिलाएँ-पुरुष, इंजीनियरों, व्यवस्थापकों और कारीगरों के समान ही योग्य सिद्ध हो रही हैं। ऐसे ही कनाड़ा, अमरीका, ब्रिटेन आदि देशों में भी दुकानें चलाने और उत्पादन की विक्रय-व्यवस्था के लिए महिलाएँ-पुरुषों से कम योग्य सिद्ध नहीं हुई हैं।

24 crore 50 lakh women in India are still illiterate

आज पूरे विश्व में महिला-साक्षरता-दर में वृद्धि तो हुई है परन्तु भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहाँ आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में नारी निरक्षर है और आत्मनिर्भर नहीं है। आंकड़ों के अनुसार भारत देश में 24 करोड़ 50 लाख महिलाएँ आज भी निरक्षर हैं।

किसी भी समाज या देश के पास चाहे कितने भी प्राकृतिक साधन हों, पुरुष वर्ग चाहे कितना भी शिक्षित व सभ्य हो लेकिन वहाँ का नारी-वर्ग यदि अशिक्षित व असंस्कृत ही बना रहे, तो उस समाज को सभ्य, शिक्षित और समुन्नत किसी भी दृष्टि से नहीं कहा जा सकता। उन्नत और विकसित समाज या राष्ट्र कहलाने का गौरव तभी प्राप्त होगा, जब स्त्री भी पुरुष के समान ही शिक्षित होकर आत्मनिर्भर बनेगी। चेतना, आत्मविश्वास एवं अपने अधिकारों के प्रति जागृत होने के लिए स्त्री-शिक्षा के महत्त्व को ‘महात्मा गाँधी’ ने भी स्वीकारा है।

The basis of women's self-reliance is to become educated and financially self-reliant - Mridula Garg

आधुनिक हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध लेखिका ‘मृदुला गर्ग’ का भी यही मानना है कि नारी-स्वावलम्बन का आधार उसका शिक्षित होकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है। लेखिका का मानना है बजाए इसके कि नारी शोषित बनी रहकर पुरुष को ही धिक्कारती रहे और अपने अध्किारों की मात्रा दुहाई देकर अन्दर ही अन्दर सुलगती रहें, बल्कि वह शिक्षा जैसे मानवीय अध्किार को प्राप्त करने के लिए अपनी सोच में परिवर्तन लाए। मृदुला गर्ग के शब्दों में, ‘‘पितृसत्तात्मक समाज के मूल्यों को बदलने की बात करना ठीक है। उसके लिए संघर्ष करने का सबसे कारगर तरीका शिक्षा का विस्तार और आर्थिक आत्मनिर्भरता को सब तक पहुँचाना है। दुःख तब होता है, जब समर्थ वर्ग की स्त्रियाँ, अपने लिए स्वयं संघर्ष न करके, दलितों की कतार में खड़े किए जाने की माँग करती हैं, और आरक्षण व सुविधाएँ माँगती हैं। मुझे लगता है कि समय आ गया है कि भारतीय स्त्री शोषित की मनः स्थिति से उबरे और अपने लिए खुद सोचना शुरू करें।’’

यहाँ लेखिका के कहने का तात्पर्य यह है कि स्त्री मात्र स्त्री होने के प्रश्नों से उलझकर न रह जाए बल्कि एक मनुष्य के रूप में अपने जीवन के विकास के लिए स्वयं प्रयत्नशील बनें। तभी वह स्वयं निर्णय लेकर अपना मार्ग निर्धारित कर सकेगी।

शिक्षा प्राप्त करके आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने का अर्थ यह नहीं है कि नारी शिक्षित होकर पुरुष को अपना प्रतिद्वन्द्वी मानते हुए उसके सामने ही मोर्चा लेकर खड़ी हो जाए। बल्कि वह आर्थिक क्षेत्र में भी पुरुष के बराबर समानता का अधिकार प्राप्त करके उसके साथ मैत्राीपूर्ण सम्बन्ध बनाए। जिस प्रकार शरीर को भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मानसिक विकास के लिए शिक्षा आवश्यक है। अगर नारी ही शिक्षित नहीं होगी तो वह न तो सफल गृहिणी बन सकेगी और न कुशल माता। समाज में बाल-अपराध बढ़ने का कारण बालक का मानसिक रूप से विकसित न होना है। अगर एक माँ ही अशिक्षित होगी तो वह अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन करके उनका मानसिक विकास कैसे कर पाएगी और एक स्वस्थ समाज का निर्माण एवं विकास सम्भव नहीं हो सकेगा।

अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षित नारी ही भविष्य में निराशा एवं शोषण के अन्धकार से निकलकर परिवार, समाज व राष्ट्र के विकास एवं उत्थान में अपना दायित्व सही अर्थों में स्थापित कर पाएगी।

प्रीत अरोड़ा

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