बिहार की वोटर अधिकार यात्रा में युवाओं की भूमिका और बिहार के गरीब और मुसहर समुदाय की समस्याएँ

यह लेख बिहार में इंडिया गठबंधन की 13 दिन की 'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान लेखक के व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित है।;

By :  Hastakshep
Update: 2025-09-07 16:18 GMT

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बिहार की 'वोटर अधिकार यात्रा' में युवाओं और गरीबों का संघर्ष: एक व्यक्तिगत अनुभव

  • बिहार की वोटर अधिकार यात्रा : युवाओं की भागीदारी और चुनौतियाँ
  • यात्रा के अनुभव: आदर्शवाद से यथार्थ तक
  • बिहार के युवा राजनीति को कैसे देखते हैं
  • छात्र नेतृत्व और राजनीतिक दलों की उदासीनता
  • मुसहर समुदाय की असली समस्या: भूमिहीनता

गरीबों और हाशिए पर खड़े समुदायों की अनदेखी

यह लेख बिहार में इंडिया गठबंधन की 13 दिन की 'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान लेखक के व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित है। इसमें लेखक अखिलेश यादव बताते हैं कि युवाओं में कितनी राजनीतिक समझ है और मुसहर जैसे गरीब समुदायों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने इस यात्रा को एक यात्री और एक शोधकर्ता की तरह देखा। उनका मकसद यह दिखाना था कि वर्तमान सरकार के वादे और ज़मीनी हकीकत में कितना बड़ा अंतर है। लेखक ने यह भी देखा कि राजनीति में युवा नेताओं की भूमिका सीमित क्यों है, गरीबों को सिर्फ वोट के लिए कैसे मोदी-नीतीश की जोड़ी ने इस्तेमाल किया है, और भूमिहीनता जैसी उनकी असली समस्याओं को क्यों नज़रअंदाज़ किया जाता है। अंत में, उन्होंने कुछ सुझाव दिए हैं कि कैसे युवाओं को मौका दिया जा सकता है और गरीब समुदायों की मदद की जा सकती है..

परिचय: आदर्शवाद से यथार्थ तक

भारत की राजनीति में बड़ी-बड़ी यात्राओं का पुराना इतिहास है। इन यात्राओं में नेता जनता से मिलते हैं और उनकी बातें सुनते हैं। मैंने भी, गांधी जी की पुरानी यात्राओं के बारे में सोचकर, 'वोटर अधिकार यात्रा' में हिस्सा लेने का फैसला किया। मैं सिर्फ एक नागरिक के तौर पर नहीं, बल्कि एक शोधकर्ता के तौर पर और एनएसयूआई के छात्र नेता के तौर पर भी इस यात्रा में शामिल हुआ। मेरा लक्ष्य था कि मैं खुद अपनी आँखों से देखूँ कि आज की राजनीति में युवा और गरीब लोग कहाँ खड़े हैं।

आज जब हम इस वोटर अधिकार यात्रा को प्रत्येक जिलों में घूम कर वहां के लोगों से मिलकर वहां के स्थानीय लोगों के मसलों पर चर्चा कर खत्म करते हुए वापस जेएनयू दिल्ली आ चुके हैं तो पुनः जो आदर्शवाद लेकर आज से 20 दिनों पहले हम बिहार गए थे उस आदर्शवाद को हमने धरातल पर किस प्रकार से एकदम भिन्न देखा, वहां का बिलकुल ही अलग संघर्ष देखा, वहां के लोगों की समस्याएं देखी तो लिखने से खुद को रोक नहीं पाए। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जब संविधान लिख रहे थे तब भी उन्होंने युवाओं की भूमिका पर काफी जोर दिया था, गांधी और नेहरू ने स्वतंत्रता संघर्ष में देश के छात्रों नौजवानों से शामिल होने के लिए आग्रह किया था, बाद में जेपी के आवाहन पर आजादी के बाद पुनः छात्र सड़कों पर उतरे।

यह लेख मेरी 13 दिन की यात्रा के अनुभव पर आधारित है, जो सासाराम से शुरू होकर भोजपुर तक चली। मैंने इसमें एक खास तरीका अपनाया है जिसे एथनोग्राफी कहते हैं। इस तरीके में, शोधकर्ता खुद लोगों के बीच जाकर उनके जीवन को करीब से देखता है। इसलिए, मैंने इस लेख को 'मैं' के अंदाज़ में लिखा है। यह तरीका मेरे निजी अनुभवों और यात्रा के दौरान मिले लोगों से हुई बातचीत को सीधे तौर पर दिखाने के लिए सबसे सही समझ में आया।

इस लेख में, मैं तीन मुख्य सवालों के जवाब देने की कोशिश करूँगा :

  1. आज के बिहार के युवा राजनीति को कैसे देखते हैं?
  2. बड़ी राजनीतिक पार्टियों युवा नेताओं को कितना मौका देती हैं?
  3. राजनीतिक यात्राओं के दौरान मुसहर जैसे गरीब समुदायों की असली समस्याओं को कितना महत्व दिया जाता है?

भारत में युवा और छात्र आंदोलन : एक ऐतिहासिक रूपरेखा

भारत के इतिहास में छात्र और युवाओं ने हमेशा बड़ी भूमिका निभाई है। आज़ादी की लड़ाई में छात्रों ने देश के लिए संघर्ष किया। गांधी जी के आंदोलनों में भी उनकी अहम भूमिका थी। 1942 का 'भारत छोड़ो आंदोलन' तो पूरी तरह से छात्रों का आंदोलन माना जाता है। आज़ादी के बाद भी जयप्रकाश नारायण के बुलाने पर छात्र सड़कों पर आए। लेकिन आज की स्थिति वैसी नहीं है।

आंकड़ों के अनुसार, बिहार में युवा मतदाताओं की संख्या बहुत ज़्यादा है। 2020 के चुनाव में, बिहार की 58% आबादी युवा थी, और 18 से 40 साल के करीब ढाई करोड़ वोटर थे। यही वजह है कि भाजपा जैसे राजनीतिक दल युवाओं को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे करते हैं, जैसे 2 करोड़ रोजगार और 19 लाख नौकरियों का वादा।

लेकिन एक बड़ी दिक्कत है। जहाँ एक तरफ राहुल गांधी जैसे बड़े नेता युवाओं को राजनीति में आगे आने को कहते हैं, वहीं दूसरी तरफ, लगातार छात्र संघों को बंद कर नए नेतृत्व को ही सरकार ऊपर आने नहीं दे रही हैं। यह कोई व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि एक व्यवस्था की कमी है।

मेरी यात्रा : मैंने क्या देखा और क्या समझा

मेरी यात्रा ने मुझे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखने का मौका दिया जो घटनाओं का हिस्सा भी था। यहाँ मैं अपने अनुभवों को विश्लेषण के साथ बता रहा हूँ। यात्रा सासाराम से शुरू हुई, और मैं महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण के आदर्शों को याद कर रहा था। मैंने इस दौरान कई युवा छात्रों के साथ पैदल चला, बस में यात्रा की और साथ में ही सोया और खाना खाया। इन युवाओं में गजब का जोश था। उनसे बात करके उनकी राजनीतिक समझ का पता चला। उन्होंने सिर्फ 'वोट चोरी' के बारे में ही बात नहीं की, बल्कि यह भी कहा कि "वोट चोरी से बनी सरकार सत्ता में आने पर पेपर लीक करती है और हमारी नौकरियों को बेच देती है"। यह दिखाता है कि वे कितने जागरूक हैं और सरकार पर भरोसा क्यों नहीं करते।

यात्रा के दौरान मैंने देखा कि कई युवा छात्र नेताओं में बहुत ऊर्जा और क्षमता थी। उन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद पूरी मेहनत और लगन से काम किया। इस पूरी यात्रा के दौरान कई बार तो यह छात्र युवा साथी बिना खाए तो कम भोजन में भी अपनी यात्रा को जारी रखें, विश्वास यह था कि बिहार बदलेगा और समाज बदलेगा और एक नए बिहार में इन युवाओं छात्रों के लिए तमाम अवसर सुनिश्चित होंगे, इस यात्रा के दौरान बीच में कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने भी इन छात्रों युवाओं के साथ बैठक की तो यात्रा के शुरू में और अंत में एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी भी मिले और इनका हौसला अफजाई किया और दोनों ने उनके द्वारा विकट परिस्थितियों में भी इस यात्रा में दिए गए उनके योगदान को सराहा।

'दो भारत' और मुसहर समुदाय की सच्चाई

गोपालगंज की मुसहर बस्ती में जाकर मैंने उन लोगों से मुलाकात की, जिन्होंने मुझे अपनी दर्दनाक कहानी सुनाई। उन्होंने मुझे बताया कि 5 किलो राशन भी उन्हें दो महीने से नहीं मिला और उनके बच्चों के लिए आसपास कोई विद्यालय नहीं है।

यह कहानी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। मैंने महसूस किया कि 'एक भारत जो हम दक्षिण दिल्ली में देखते हैं' और 'एक भारत जो हमने गोपालगंज की मुसहर टोली में देखा' दोनों में बहुत बड़ा अंतर है।

यह अनुभव एक गहरी सामाजिक और आर्थिक असमानता को दिखाता है।

यात्रा के दौरान मुसहर समुदाय से मिलना एक बहुत बड़ा अनुभव था। इसने मुझे दिखाया कि राजनीति की बातें और ज़मीनी हकीकत कितनी अलग हैं।

कौन हैं मुसहर

मुसहर एक महादलित समुदाय है जो बिहार में बहुत ज़्यादा गरीबी और भेदभाव का सामना करता है। उनकी शिक्षा की स्थिति, खासकर महिलाओं की, बहुत खराब है। यह समुदाय हमेशा से भूमिहीन रहा है और मज़दूरी करके अपना जीवन चलाता है।

मुसहर समुदाय की समस्या सिर्फ गरीबी नहीं है, बल्कि उनके पास ज़मीन का अधिकार न होना है। वे भूमिहीन मज़दूर हैं और बिना घर के पट्टे के रहते हैं, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिलता। इसलिए, जब राजनीतिक पार्टियां उनके लिए 'राशन' और 'योजनाओं' की बात करती हैं, तो वे उनकी मूल समस्या, 'भूमिहीनता' को अनदेखा कर देती हैं, जिससे नेताओं के वादों और ज़मीनी हकीकत के बीच की खाई और भी गहरी हो जाती है।

राजनीतिक चर्चाओं में अक्सर बाहर होने वाले पलायन की बात होती है, लेकिन मुसहरों की समस्या उससे अलग है।

मैंने गोपालगंज में देखा कि वे बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए मजबूर हैं। यह विस्थापन सिर्फ बाढ़ की वजह से नहीं है, बल्कि उनके पास ज़मीन और घर न होने की वजह से भी है।

बिहार में चल रहे भूमि सर्वेक्षण और आवासीय पट्टे न मिलने के कारण ये परिवार बिना घर के खानाबदोशों की तरह रहते हैं। यह एक ऐसी समस्या है जिस पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता। इसलिए, नेताओं के वादे, जो 'राशन' और 'योजनाओं' पर केंद्रित होते हैं, उनकी असली समस्या 'भूमिहीनता' को हल नहीं कर पाते।

निष्कर्ष

'वोटर अधिकार यात्रा' पर आधारित मेरे अनुभवों ने मुझे बिहार के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की एक बहुआयामी तस्वीर दिखाई। मेरा आदर्शवाद, जो ऐतिहासिक आंदोलनों से प्रेरित था, यात्रा के दौरान बिहार की कठोर जमीनी हकीकत से टकराया। युवाओं की राजनीतिक चेतना और उनके समर्पण ने उनकी असाधारण क्षमता को दर्शाया, लेकिन यह भी उजागर हुआ कि उनके योगदान को प्रतीकात्मक कार्यों तक सीमित रखा जा रहा है।

अंत में, यह यात्रा मेरे लिए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न छोड़ जाती है: क्या राजनीतिक दल और नेता इन युवा छात्रों को राष्ट्र निर्माण के वास्तविक भागीदार बनने के लिए सशक्त करेंगे? क्या सरकारें मुसहर टोली जैसे हाशिए के समुदायों की दुर्दशा को दूर करने और दो भारत के बीच की खाई को पाटने के लिए प्रभावी कदम उठाएँगी? क्या छात्र संघ चुनावों जैसे जमीनी नेतृत्व के मंचों को पुनर्जीवित किया जाएगा?

मेरा अंतिम सवाल पूरे समाज से है कि इन छात्र और युवा नेताओं को कब वास्तविक नेतृत्व सौंपा जाएगा।

मेरे विचार से, इन सवालों का जवाब ही बिहार और देश के भविष्य की दिशा तय करेगा।

अखिलेश यादव

लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष हैं और जेएनयू से सेंटर फॉर हिस्टॉरिकल स्टडीज के रिसर्च स्कॉलर है।

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