Nepal Gen Z Protest Live Updates: भट्टराई जेन जी से बोले - श्राद्ध करना आसान है, लेकिन ब्राह्मण को दान देना मुश्किल

श्राद्ध करना आसान है, लेकिन ब्राह्मण को दान देना मुश्किल- बाबुराम भट्टराई

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री (2011-2013)। नेपाल सोशलिस्ट पार्टी (नया शक्ति) के अध्यक्ष; बाबुराम भट्टराई ने जेन जी, युवाओं को शुभकामनाएं देते हुए चेताया है कि देश एक भयानक अंधेरी सुरंग (ब्लैक होल) में फंस सकता है!

बाबुराम भट्टराई ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा-

"जेन जी, युवाओं का आंदोलन शांतिपूर्ण समाधान की ओर बढ़ रहा है, यह खुशी की बात है! हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

लेकिन, हमारी कहावत है कि 'श्राद्ध करना आसान है, लेकिन ब्राह्मण को दान देना मुश्किल'। इसी तरह, चुनौतियाँ अभी भी बाकी हैं या कहें कि वे अभी शुरू हुई हैं। इसलिए, समझदारी और धैर्य से आगे बढ़ना ज़रूरी है।

१. कुछ स्वघोषित बुद्धिजीवी, दुर्भावना वाले तत्व या कम समझ वाले लोग यह कह रहे हैं कि देश संविधानहीन, राज्यहीन 'शून्य' स्थिति में पहुँच गया है, लेकिन ऐसा नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। सरकार ने इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन लोकतंत्र के बुनियादी अंग - संविधान, संसद, राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति/उपराष्ट्रपति), राज्य के स्थायी अंग यथावत हैं। नए नेपाल के नेता जेन जी को इन्हीं के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए। नहीं तो, नीचे का उठाने की कोशिश में ऊपर का भी हाथ से निकल सकता है।

पुराने की रक्षा करते हुए नया बनाना ही इतिहास का नियम है। हमें इस समय देश की स्वतंत्रता/संप्रभुता/भू-क्षेत्रीय अखंडता और जनता में निहित संप्रभुता और राजकीय सत्ता की रक्षा करनी है। जिसे ऐतिहासिक आंदोलनों के बल पर निर्वाचित संविधान सभा द्वारा बनाए गए संविधान के अनुच्छेद २७४ (१) ने असंशोधनीय घोषित किया है। (यहाँ संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेद देखें)

२. अभी सबसे ज़रूरी मुद्दा आंदोलन में उठाई गई मांगों को पूरा करना और जल्द से जल्द नए आम चुनाव के लिए आंदोलनकारियों की सिफारिश और भागीदारी से अंतरिम सरकार बनाना है। यह मौजूदा संविधान के आधार पर ही करना चाहिए। अन्यथा बड़ी मुसीबत हो सकती है। इसके लिए सबसे पहले, आंदोलनकारियों के आधिकारिक प्रतिनिधियों और वर्तमान में देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि/संरक्षक राष्ट्रपति के बीच सार्थक संवाद/वार्ता करके राजनीतिक सहमति बनानी चाहिए। अन्य संस्था/व्यक्ति इसमें मदद कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान विशेष परिस्थिति में यह काम राष्ट्रपति स्तर पर ही होना चाहिए।

दूसरी बात, उपरोक्त सहमति के बाद, खासकर आम चुनाव कराने और संसद के बाहर के व्यक्ति के नेतृत्व में सरकार बनाने का प्रावधान वर्तमान संविधान में नहीं है, तो क्या करें? इसके लिए, चूंकि संसद अभी भी है, इसलिए एक दिन के लिए संसद बुलाकर आवश्यक संवैधानिक व्यवस्था की जा सकती है और करनी भी चाहिए। इसलिए, नई उभरती पार्टियाँ अभी आवेग में आकर संसद से इस्तीफा न दें, बल्कि वहीं रहकर अपनी भूमिका निभाएं और संसद में मौजूद सभी पार्टियाँ इस संकट की घड़ी में ज़िम्मेदार सहयोगी बनें।

इस पर सभी पक्षों का ध्यान गंभीरता से होना चाहिए। नहीं तो देश एक भयानक अंधेरी सुरंग (ब्लैक होल) में फंस सकता है!"

Update: 2025-09-11 05:11 GMT

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