भारतीय मीडिया पर जस्टिस काटजू की कटु टिप्पणी — दिल्ली धमाकों की त्वरित रिपोर्टिंग पर उठाए गंभीर सवाल
जस्टिस काटजू ने दिल्ली बम धमाकों की रिपोर्टिंग पर इस संक्षिप्ट टिप्पणी में गंभीर सवाल उठाए हैं — बिना जांच के आरोप लगाने, मीडिया-टीआरपी और समुदाय-विरोधी पूर्वाग्रह पर सवाल....;
Press Media
बिना जांच के आरोप—मीडिया की जल्दबाज़ी और इसकी कीमत
- टीआरपी, राजनैतिक स्वार्थ और सांप्रदायिक दांव-पेंच
- पुलिस की जवाबदेही: दोषियों का पता लगाने बनाम तेज़ नतीजे दिखाने का दबाव
- समाज पर असर: समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह और जनविश्वास की हानि
- क्या समाधान है? — जिम्मेदार पत्रकारिता और निष्पक्ष जांच की आवश्यकता
जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने दिल्ली बम धमाकों की रिपोर्टिंग पर इस संक्षिप्ट टिप्पणी में गंभीर सवाल उठाए हैं — बिना जांच के आरोप लगाने, मीडिया-टीआरपी और समुदाय-विरोधी पूर्वाग्रह पर सवाल....
भारतीय मीडिया जिंदाबाद!
जस्टिस मार्कंडेय काटजू
बिना जांच पड़ताल किये हुए भारतीय मीडिया समाचार चैनलों ने दिल्ली बम धमाकों के मुजरिमों का नाम घोषित कर दिया है। और ये सब मुसलमान होना लाज़मी था, क्योंकि दुनिया के सारे मुसलमान दशहतगर्द होते हैं, जिनके पास बम फोड़ने के अलावा और कोई काम नहीं है।
ये रिवायत बन गई है। अधिकाँश भारतीय मीडिया की टीआरपी या राजनेताओं की राजनीति मुसलमान, मुर्गा, मछली, मंदिर, मस्जिद, पाकिस्तान, तालिबान आदि के बिना नहीं चल सकती।
हमारी निकम्मी पुलिस हाल ही में हुए दिल्ली बम धमाकों के असली दोषियों का पता कभी नहीं लगा पाएगी, जिनमें कई लोग मारे गए। लेकिन किसी न किसी को तो फँसाना ही होगा, भले ही कोई सबूत न हो, क्योंकि अगर किसी को फँसाया नहीं गया तो पुलिसवालों को उनकी अक्षमता के लिए निलंबित कर दिया जाएगा। इसलिए अपनी जान बचाने के लिए पुलिसवाले कुछ मुसलमानों को फँसाएँगे, गिरफ्तार करेंगे और चार्जशीट दाखिल करेंगे। आखिर, क्या सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं?
(जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के सेवानिवृत्त न्यायाधीश है। यह उनके निजी विचार हैं।)