कामरेड मुकुल सिन्हा युद्ध का एक मुकाम पूरा कर विदा ले गए- जन संस्कृति मंच

कामरेड मुकुल सिन्हा ने गुजरात जनसंहार, फर्जी मुठभेड़ों और सत्ता संरक्षित अपराधों के खिलाफ वैज्ञानिक दृष्टिकोण और कानूनी संघर्ष से न्याय की लड़ाई को नई दिशा दी। उनकी विरासत लोकतंत्र और सच्चाई के पक्ष में खड़े होने वालों को आज भी प्रेरणा देती है...;

By :  Hastakshep
Update: 2019-03-22 13:00 GMT

Comrade Mukul Sinha

कामरेड मुकुल सिन्हा: न्याय, वैज्ञानिक विवेक और फासीवाद विरोधी संघर्ष की मिसाल

कामरेड मुकुल सिन्हा ने गुजरात जनसंहार, फर्जी मुठभेड़ों और सत्ता संरक्षित अपराधों के खिलाफ वैज्ञानिक दृष्टिकोण और कानूनी संघर्ष से न्याय की लड़ाई को नई दिशा दी। उनकी विरासत लोकतंत्र और सच्चाई के पक्ष में खड़े होने वालों को आज भी प्रेरणा देती है...

कामरेड मुकुल सिन्हा युद्ध का एक मुकाम पूरा कर विदा ले गए।

अपनी बहुमुखी विद्वत्ता , अथक मेहनत और धारदार प्रतिबद्धता के बल पर उन्होंने सुनिश्चित कर दिया है कि गोधरा और गुजरात के असली अपराधी भारतीय राज्यसत्ता पर काबिज होने के बाद भी क़ानून और न्याय की पकड़ से छूट नहीं सकते।

वे मुकल सिन्हा ही थे, जिन्होंने साबरमती एक्सप्रेस की एक जली हुई बोगी का वैज्ञानिक ढंग से परीक्षण करते हुए स्थापित किया था कि बोगी में बाहर से आग लगने की बात झूठी थी। चूंकि इस स्थापना का खंडन नहीं किया जा सका, इसलिए गोधरा के पीछे पाकिस्तान -प्रेरित आतंकवादी समूहों और उनके कथित स्थानीय साथियों के होने की गुजरात सरकार की कहानी आज तक संदिग्ध बनी हुई है। इस संशय का निराकरण करना आज तक नहीं हुआ।

वे मुकुल सिन्हा ही थे जिन्होंने फोन रिकार्डों का बारीकी विश्लेष्ण करते हुए दो हज़ार दो के गुजरात जनसंहार में मोदी के मंत्रियों की संलिप्तता उजागर की। माया कोडनानी और जयदीप पटेल जैसे सत्ता-समर्थित जन जनसंहारियों को क़ानून के शिकंजे में लाने जैसी अभूतपूर्व न्यायिक उपलब्धि का श्रेय मुकुल के काम को ही है।

उनके काम से ही जनसंहार में अमित शाह, डीपी वंजारा और राजकुमार पांडियान की भूमिका होने की ठोस सम्भावना की ओर लोगों का ध्यान गया।

नानावती कमीशन में मुकुल सिन्हा ने ठोस प्रमाणों और अकाट्य तर्कों के साथ जिरह की और लीपापोती की हर कोशिश को नाकाम किया।

इशरत जहां, सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति के फर्जी मुठभेड़ों का पर्दाफ़ाश करने से लेकर मोदी सरकार के द्वारा प्रताड़ित किये जा रहे ईमानदार अधिकारियों के मुकदमे लड़ने तक मुकुल सिन्हा ने हर मोर्चे पर मोदी सरकार की फासीवादी योजनाओं का मुकाबला किया और शिकस्त दी। यह सब उन्होंने गुजरात में रहते किया।

यह मुकुल सिन्हा की नैतिक जीत का सब से बड़ा सबूत यह है कि आज जब एक तरफ मोदी के कथित राज्यारोहण की तैयारियां चल रही हैं, हम गुजरात समेत दुनिया भर में न्याय और लोकतंत्र के पक्ष में खड़ी जनता को बढ़-चढ़ कर अपने प्यारे साथी की अंतिम विदाई में शामिल होते देख रहे हैं।

मीडिया में मोदी की जयजयकार है, लेकिन मजलूमों की गलियों में कामरेड मुकुल सिन्हा लाल सलाम के नारे गूँज रहे हैं।

12/ 05/2014 को कैंसर से लड़ते हुए दुनिया से विदा लेने वाले मुकुल सिन्हा एक ऐसे कार्यकर्ता थे, जिन्होंने अपनी जीवन कर्म में वैज्ञानिक पद्धति और मानवीय अंतर्दृष्टि का सटीक समन्वय किया था।

आईआईटी कानपुर के सुयोग्य प्लाज्मा विज्ञानी मुकुल ने 1973 में कार्मिकों के हक के लिए संघर्ष करने की कारण 133 लोगों की सामूहिक छंटनी का सामना किया और बाकायदा क़ानून का अध्ययन कर न्याय के लिए लम्बी और कठिन अदालती लड़ाई लड़ी। यह अध्ययन दो हज़ार दो के बाद जनसंहार को न्याय के संहार में तब्दील होने से बचाने के काम आया।

मुकुल सिन्हा हमारे दौर के फासिज्म की कानूनी और नैतिक हार सुनिश्चित कर गयी हैं , लेकिन मुकम्मल राजनैतिक शिकस्त देने का संघर्ष हमारे हवाले कर गए हैं।

हम, यानी वे करोड़ों लोग जो फासीवाद के निशाने पर हैं, लेकिन मुकुल सिन्हा जैसे साथियों की बदौलत जानते हैं कि वे क्यों और कैसे और किसके निशाने पर हैं।

हम जरूर आपके काम को उसकी तर्कसंगत मंजिल तक ले जायेंगे, कामरेड।।

जन संस्कृति मंच की ओर से

आशुतोष कुमार द्वारा जारी

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