कॉप30 में गूंजती आवाज़: लैंगिक समानता के बिना जलवायु न्याय नहीं
COP30 में वैश्विक वार्ताओं के बीच महिलाओं की आवाज़ तेज़ हुई—संदेश स्पष्ट है कि लैंगिक समानता के बिना जलवायु न्याय संभव नहीं। केंद्र में बेलेम जेंडर एक्शन प्लान;
UN's annual climate conference COP30 in Hindi
बेलेम जेंडर एक्शन प्लान – जलवायु नीति में बराबरी की नई राह
- कचरा बीनने वाली महिलाओं की अग्रिम पंक्ति से उठती मांगें
- न्यायालयों में बढ़ती जलवायु याचिकाएं और युवा नेतृत्व की भूमिका
- स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार और लैंगिक दृष्टिकोण की अनिवार्यता
नई दिल्ली, ब्राज़ील के बेलेम में जारी COP30 के अंतिम चरण (The final phase of COP30 is underway in Belém, Brazil.) में, वैश्विक वार्ताओं के बीच एक सशक्त संदेश बार-बार उभर रहा है—जलवायु न्याय तभी हासिल हो सकता है जब लैंगिक समानता उसकी नींव में शामिल हो। COP30 प्रस्तावित बेलेम जेंडर एक्शन प्लान (Belém Gender Action Plan) महिलाओं पर जलवायु संकट के असमान प्रभावों को स्वीकारते हुए वित्त, नेतृत्व और सुरक्षा से जुड़े ठोस उपायों का खाका प्रस्तुत करता है।
जलवायु परिवर्तन की सबसे पहली और सबसे बड़ी कीमत कौन चुकाता है?
कचरा बीनने वाली महिलाओं के नेतृत्व से लेकर युवा वकीलों द्वारा दायर जलवायु मुक़दमों तक—दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से उठती आवाज़ें यह साबित कर रही हैं कि जलवायु परिवर्तन की सबसे पहली और सबसे बड़ी कीमत महिलाएँ चुकाती हैं।
अनुकूलन और शमन से जुड़ी नीतियों में लैंगिक दृष्टिकोण को अनिवार्य बनाने की मांग तेज़ है, ताकि जलवायु न्याय केवल चर्चा का मुद्दा न रह जाए, बल्कि व्यवहारिक बदलाव का आधार बने। पढ़िए संयुक्त राष्ट्र समाचार की यह ख़बर...
COP30: वार्ताओं में पुकार - लैंगिक समानता के बिना जलवायु न्याय नहीं
21 नवंबर 2025 जलवायु और पर्यावरण
ब्राज़ील के बेलेम शहर में यूएन वार्षिक जलवायु शिखर सम्मेलन - COP30 के निर्धारित अन्तिम दिन शुक्रवार को, दोपहर बाद तक भी, मतभेदों के बीच, तनावपूर्ण बातचीत जारी थी. दुनिया भर के देशों के प्रतिनिधियों के बीच जारी बातचीत के बीच, एक सन्देश बुलन्दी के साथ अपना रास्ता बना रहा है – लैंगिक समानता के बिना कोई जलवायु न्याय नहीं हो सकता.
महिलाओं की आवाज़ें स्पष्ट हैं और तेज़ी से उठ रही हैं, जिससे वार्ताकारों पर दबाव पड़ रहा है कि वे यह सुनिश्चित करें कि यह सम्मेलन, लैंगिक समानता और जलवायु नीतिके बीच सम्बन्ध पर एक गहरी छाप छोड़े.
बातचीत के केंद्र में है - बेलेम लैंगिक कार्रवाई योजना – Belem Gender Action Plan जोकि एक प्रस्तावित ब्लूप्रिंट. यह मानता है कि जलवायु परिवर्तन महिलाओं पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है और वित्त, प्रशिक्षण, व नेतृत्व भूमिकाओं के लिए उपाय निर्धारित करता है.
ब्राज़ील में UN Women की कार्यकारी प्रतिनिधि ऐना कैरोलीना कुएरिनो कहती हैं, "जलवायु न्याय तभी होता है जब लैंगिक समानता भी होती है," यह वही बात है जो पिछले सोमवार, 10 नवम्बर को यह सम्मेलन आरम्भ होने के बाद से, सभागार और अन्य स्थानों पर सुनी जा रही है.
अगर इस ब्लूप्रिंट को अपनाया जाता है, तो यह योजना 2026 से 2034 तक चलेगी, जिसमें लैंगिक समानता से सम्बन्धित मुद्दों को, सही बदलावों, अनुकूलन, और जलवायु के प्रभावों को कम करने की रणनीति व नुक़सान और क्षति के लिए प्रणालियाँ विकसित करने में शामिल किया जाएगा.
कार्बन उत्सर्जन में कमी की मांग के लिए कचरा बीनने वाले सबसे आगे
नैंसी डार्कोलेट, साओ पाउलो की सड़कों पर, 1999 से कचरा बीन रही हैं. आज, वह ‘पिम्प माई कैरोका’ नामक संगठन की अगुवाई करती हैं. यह एक ऐसा संगठन है जो उन कामगारों के अधिकारों के लिए लड़ता है जो, फेंके गए सामान को संसाधन में तब्दील करते हैं – जिससे कचरे को पहाड़ जैसे ढेरों में तब्दील होने या जलाए जाने से बचाया जा सके.
नैंसी कहती हैं कि कचरा बीनने वालों ने, COP30 में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई, यह दिखाकर कि कैसे उनके काम से कार्बन उत्सर्जन कम होता है और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम होता है.
नैंसी बताती हैं, “अब हमारी समझ में आ रहा है कि कचरा बीनने वालों के लिए, जैविक कचरे से खाद बनाने पर भी काम करना कितना ज़रूरी है. इससे नगर पालिकाओं का धन बचेगा, कचरा बीनने वालों की आमदनी होगी, और गैसों की टनों मात्रा हासिल की जाएगी और पर्यावरण से भारी प्रदूषक तत्व हटाकर अनूकूलन में विशाल मदद मिलेगी.”
रीसायकलिंग अभियानों की डोर संभाले महिलाएँ
ब्राज़ील में, अधिकतर कचरा बीनने वालों और अधिकत सहकारी संगठनों की मुखिया महिलाएँ हैं. फिर भी उन्हें सड़कों पर नस्लभेद और लैंगिक पूर्वाग्रहों पर आधारित हिंसा का सामना करना पड़ता है. जबकि वो इस काम के साथ-साथ, अक्सर अपने घरों और परिवारों की देखभाल भी करती हैं.
नैंसी की नज़र में, जलवायु परिवर्तन उनके काम को और मुश्किल बना रहा है. बढ़ती गर्मी और बाढ़, कम आय वाली बस्तियों सबसे अधिक ज़्यादा प्रभावित कर रही हैं, जिससे पहले से ही मुश्किल हालात और भी मुश्किल हो गए हैं.
वह चाहती हैं कि COP30 का अनुकूलन एजेंडा, कचरा बीनने वालों को "रूपान्तर के एजेंट" के तौर पर पहचान दे, जिनके पास बेहतर नगरीय सुविधाएँ, पानी पीने के लिए बेहतर सुविधा केन्द्र और निश्चित रक़म सुनिश्चित करने वाले रोज़गार दस्तावेज़ हों.
जलवायु न्याय के लिए, क़ानूनी याचिका एक कारगर औज़ार
अटलांटिक के उस पार, 24 साल की पुर्तगाली वकील मारियाना गोम्स, क़ानून का इस्तेमाल, जलवायु संकट से लड़ने के लिए "सबसे ज़रूरी उपकरण" के तौर पर कर रही हैं.
उन्होंने अल्टिमो रिकर्सो नामक संगठन की स्थापना की, जिसने पुर्तगाल का पहला जलवायु याचिका मुक़दमा दायर किया था. यह संगठन अब 170 से अधिक मुक़दमे चला रहा है.
मारियाना गोम्स का मानना है कि मुक़दमेबाज़ी वादों को ज़रूरी कार्रवाई में बदल सकती है, ख़ासतौर पर अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की हालिया राय के बाद, जिसमें देशों को, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5° सेल्सियससे नीचे रखने के लिए काम करने की ज़रूरत बताई गई है.
मारियाना बताती हैं, “मेरा मानना है कि भविष्य में हम देशों के ख़िलाफ़ बहुत से मुक़दमे देखेंगे, ख़ासतौर पर उनके ख़िलाफ़ जिन्हें अपनी महत्वाकांक्षा बढ़ानी होगी, जलवायु क़ानून अपनाने होंगे और अपने लक्ष्यों को पेरिस समझौते के साथ जोड़ना होगा. क्योंकि अब हम, अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय का बोझ, पहले से कहीं अधिक, अपनी पीठ पर उठा रहे हैं.”
स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार
मारियाना गोम्स का तर्क है कि नागरिक अपनी सरकारों से साफ़, स्वस्थ पर्यावरण और स्थिर जलवायु के अधिकार की गारंटी की मांग कर सकते हैं.
वरह पुर्तगाल में, स्थानीय अधिकारियों को सूखे, जंगल की आग, बाढ़ और दूसरी आपदाओं का सामना करने के लिए तैयार होने में मदद करने की ख़ातिर, नगरपालिका जलवायु कार्रवाई योजना पर ज़ोर दे रही हैं.
उनकी नज़र में, अनूकूलन (Adaptation) व शमन (Mitigation) को यह मानना होगा कि जलवायु आपदाएँ, महिलाओं को सबसे ज़्यादा प्रभावित करती हैं, जिससे लैंगिक आधार पर हिंसा, विस्थापन और सम्बन्धियों की देखभाल करने के बोझ का ख़तरा बढ़ जाता है.
मारियाना कहती हैं कि याचिका यानि क़ानूनी कार्रवाई, कार्बन उत्सर्जन कम करने या खनन परियोजनाओं को रोकने से कहीं अधिक लाभ पहुँचा सकती है. इससे प्रभावित समुदायों के लिए धन और मुआवज़ा मिल सकता है, और साथ ही महिलाओं के अधिकारों की भी रक्षा हो सकती है.