ओम थानवी के साथ मारपीट की अफवाह उड़ा कर चटखारे लेने वाले कौन लोग हैं?
जब संपादक और पत्रकार रेंग रहे थे या फिर मजबूरियों में सिर्फ नौकरी बजा रहे थे, ओम थानवी एक 'सत्साहस' पर कायम थे। उनका यह महत्व जिन्हें अब समझ में नहीं आया, उन्हें आने वाले दिनों में भी समझ में नहीं आएगा।;
Om Thanvi
जब संपादक और पत्रकार रेंग रहे थे या फिर मजबूरियों में सिर्फ नौकरी बजा रहे थे, ओम थानवी एक 'सत्साहस' पर कायम थे। उनका यह महत्व जिन्हें अब समझ में नहीं आया, उन्हें आने वाले दिनों में भी समझ में नहीं आएगा।
लाल्टू जी के कविता पाठ के बारे में दोस्तों को जानकारी देते हुए पता चला कि बहुत सारे दोस्तों का लाल्टू से परिचय जनसत्ता में छपते रहे उनके लेखों की वजहों से भी है। सम-सामयिक विषयों पर उनके ये लेख जिस जगह से लिखे गए, उन्हें पॉपुलर मीडिया में ठीक इसी तरह जगह मिल पाना मुश्किल था।
ओम थानवी बतौर जनसत्ता संपादक बुक फेयर में नामवर सिंह के साथ तरुण विजय की किताब का विमोचन भी कर आए थे। तरुण विजय का स्तंभ भी उनके अखबार में छपता ही था। बतौर संपादक उनकी बहुत सारी सीमाएं और उनकी आजादियां रही होंगी। बतौर व्यक्ति उनकी अहंकारी और सामंती प्रवृत्ति भी सामने आती रही। एफबी पर खुद फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना और किसी विषय पर असहमति जताने पर ब्लॉक कर देने की उनकी करतूत भी काफी चर्चित रही। मेरा उनसे परिचय नहीं था, न है। उनकी फ्रेंड रिक्वेस्ट आई, हम एफबी फ्रेंड बने और फिर असहमतियों के चलते उन्होंने मुझे ब्लॉक कर दिया।
एफबी पर झिकझिक हो जाने और कई वजहों से बेहद नापसंद होते हुए भी कई बार उन्हें (ओम थानवी को) फोन कर बधाई देने का मन भी हुआ। बधाई, लगातार उनके उस स्टेंड के बारे में जो अखबार में दिखाई देता रहा और टीवी की बहसों में भी। कोई दूसरा जमाना होता तो यह सामान्य बात थी पर जब संपादक और पत्रकार रेंग रहे थे या फिर मजबूरियों में सिर्फ नौकरी बजा रहे थे, ओम थानवी एक 'सत्साहस' पर कायम थे। उनका यह महत्व जिन्हें अब समझ में नहीं आया, उन्हें आने वाले दिनों में भी समझ में नहीं आएगा।
ओम थानवी के साथ मारपीट की अफवाह उड़ा कर चटखारे लेने वाले कौन लोग हैं? उन्हें समझ नहीं आ रहा कि हम किस दौर का सामना कर रहे हैं और कौन दुश्मन सब कुछ निगले जा रहा है? उनकी हरकतें ठीक उस दुश्मन की हरकतों जैसी ही हैं।
एक सामान्य सी बात यह कि किसी को गाली देकर तमाशा खड़ा करना या किसी के साथ मारपीट कर लेना कभी भी बहादुरी नहीं होता है। ताकतवर शोहदे गली-मोहल्लों तक में ऐसा करते ही रहते हैं।
धीरेश सैनी
धीरेश सैनी, स्वतंत्र टिप्पणीकार व पत्रकार हैं।