गुरदीप सिंह सप्पल का तीखा प्रहार: “धनखड़ कठपुतली थे, मंच संघ का था”

गुरदीप सिंह सप्पल ने उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने संघ पर निशाना साधते हुए कहा कि धनखड़ कठपुतली बन गए थे और जब ज़मीर जागा तो उन्हें मंच से हटा दिया गया;

By :  Hastakshep
Update: 2025-07-23 05:22 GMT

Gurdeep Singh Sappal's sharp attack: "Dhankar was a puppet, the stage belonged to the RSS"

संवैधानिक परंपरा बनाम संघीय निष्ठा: सप्पल की टिप्पणी का मूल संदेश

  • कठपुतली चाहे जितना अच्छा नाचे, वाहवाही नचाने वाले को मिलती है
  • बीजेपी राज में संवैधानिक मर्यादाओं का ह्रास?
  • सप्पल का आरोप: संघ की सोच संविधान से मेल नहीं खाती
  • धनखड़ से सहानुभूति नहीं, क्योंकि ज़मीर गिरवी रखा था: सप्पल

कांग्रेस के भीतर मतभेद और सप्पल की टिप्पणी की टाइमिंग

कांग्रेस नेता गुरदीप सिंह सप्पल ने उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने संघ पर निशाना साधते हुए कहा कि धनखड़ कठपुतली बन गए थे और जब ज़मीर जागा तो उन्हें मंच से हटा दिया गया। पढ़िए पूरी टिप्पणी और उसका राजनीतिक विश्लेषण...

नई दिल्ली, 23 जुलाई 2025. कांग्रेस अध्यक्ष कार्यालय के समन्वयक, प्रभारी (प्रशासन), पूर्व सीईओ/संपादक, आरएसटीवी; भारत के उपराष्ट्रपति के पूर्व ओएसडी; गुरदीप सिंह सप्पल ने उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के त्यागपत्र पर सोशल मीडिया एक्स पर पर एक गंभीर टिप्पणी लिखी है।

“संघ, संविधान और धनकड़!” शीर्षक से टिप्पणी में गुरदीप सिंह सप्पल लिखते हैं-

“संवैधानिक पदों पर आचरण की कुछ परम्परा (convention) हैं। उन परंपरा के पालन से न सिर्फ़ संवैधानिक दायित्व की रक्षा होती है, बल्कि ख़ुद की और संस्थान की गरिमा की रक्षा भी होती है।

अगर किसी खेल में अंपायर नियमों को नकारने लगे, या फिर उनका मनमाफिक व्याख्या करने लगे तो वो ख़ुद अंपायर नहीं रहता, खेल का हिस्सा हो जाता है। तब उसकी मनमानी का फायदा किसी भी टीम को हो, प्रतिष्ठा तो अंपायर को दोनों तरफ़ से नहीं मिलती है। हाँ, पक्षपात का इनाम ज़रूर मिल जाता है।

और अगर कोई अपना कर्तव्य छोड़ कर कठपुतली बनने को तैयार हो जाता है, तो उसे ये समझना चाहिए कि कठपुतली कितना भी अच्छा नाच ले, वाहवाही सिर्फ़ नचाने वाले को मिलती है, कठपुतली को नहीं।“

वह आगे लिखते हैं

“लेकिन समस्या ये है कि बीजेपी राज में उच्च पदों पर आसीन अधिकांश लोग संवैधानिक परंपरा का पालन नहीं करते हैं। कारण ये है कि संघ की मूल सोच और लक्ष्य भारतीय संविधान की सोच और लोकतांत्रिक मूल्यों से मेल नहीं खाती है। संघ द्वारा आगे बढ़ाये गए व्यक्ति भारतीय संविधान के तहत पद तो ग्रहण करते हैं, लेकिन उनकी मूल निष्ठा संघ के प्रति है। इसीलिए वो अपने पद का निर्वहन करने की जगह उसका संघ के लक्ष्यों के लिए इस्तेमाल करते हैं। संघ उनसे यही उम्मीद भी करता है।“

सप्पल लिखते हैं-

“ऐसे में कुछ लोग जो संघ से मूल रूप से नहीं जुड़े होते हैं और सत्ता समीकरणों के चलते पद हासिल कर लेते हैं, उनकी चुनौती ज़्यादा बड़ी होती है। वो संघ के प्रति वफ़ादारी साबित करने में ज़्यादा ही सक्रिय रहते हैं। कहते हैं न कि नया नया मुल्ला ज़ोर ज़ोर से बाँग देता है। (उपमा मुल्लाओं की है, फिट संघ पर भी होती है :)”

वह कहते हैं-

“लेकिन कठपुतली कितना भी अच्छा नाचे, नचाने वाला तो अपनी ही कला पर नाज़ करता है। बस एक फ़र्क़ है। जो संघ से बाद में जुड़े हैं, वो पूरी तरह कठपुतली नहीं बन पाते हैं। कभी कभी उनमें एहसास जाग जाता है कि वो तो इंसान हैं। कठपुतली का रोल तो उन्होंने केवल अपनी तरक्की, अपनी वाहवाही, अपनी महत्वाकांक्षा के लिए अपनाया था। तब वो कठपुतली के रोल से बाहर आने के लिए छटपटाने लगते हैं। उनका आत्मसम्मान जागने लगता है। वो नचाने वाले के इशारों को मानने में कोताही बरतने लगते हैं।“

धनखड़ से कोई सहानुभूति नहीं

गुरदीप सिंह सप्पल आगे लिखते हैं

“लेकिन मंच तो नचाने वाले का है। अगर उनकी कठपुतली सही से नहीं नाचेगी, तो उसे हटा कर नई कठपुतली ले आते हैं।

राज्यसभा कोई अपवाद तो नहीं है। इसीलिए पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ से अपनी कोई सहानुभूति नहीं है। उन्होंने ख़ुद अपना ज़मीर गिरवी रखा था। और जब वो उस ज़मीर को छुड़वाने की कोशिश करने लगे, तो ये हो न सका। फिल्मी डायलॉग में कहें तो ‘जॉनी, वहाँ लोग आ तो सकते हैं, बाहर जा नहीं सकते हैं!’”

“ज़िम्मेदारी तो दर्शकों की है, जो देश के नागरिक हैं। उन्हें संविधान के मूल्यों में और संघ के रंगमंच में फ़र्क़ करना है। उन्हें तय करना है की संवैधानिक संस्थाओं को संविधान की रक्षा में तैनात होना है या संघ की सेवा में नतमस्तक होना है। क्योंकि उनके अधिकार तभी सुरक्षित रहेंगे जब संविधान जीवित रहेगा, उसका सही से पालन होगा।“

गुरदीप सिंह सप्पल की यह टिप्पणी कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा सीमा से आगे जाकर धनखड़ को शहीद और ईमानदारी का तमगा दिए जान के बाद डैमेज कंट्रोल के रूप में देखी जा रही है।

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