लालन कालेज और लाल क़िले का फ़र्क़!
मोदी सरकार के शुरुआती तीस दिन और नक़वी की तल्ख़ टिप्पणी: ‘लालन कॉलेज बनाम लाल क़िला’ की बहस;
opinion, विचार
मोदी सरकार के शुरुआती तीस दिन और नक़वी की तल्ख़ टिप्पणी: ‘लालन कॉलेज बनाम लाल क़िला’ की बहस
लेकिन मोदी जी को अब दुःख हो रहा है! न, न, दुःख लालन कालेज वाली घटना पर नहीं! दुःख इस बात पर कि वह पहली-पहली बार प्रधानमंत्री बने! गद्दी सम्भाले सौ घंटे भी नहीं हुए कि लोगों ने सरकार की आलोचना शुरू कर दी! च्च च्च! इतनी नाइनसाफ़ी! सरकार के तीस दिन हो गये! मोदी जी ने ब्लाग लिखा। उसमें उपलब्धियों का तो पता नहीं, लेकिन उनकी पीड़ा ज़रूर सामने आयी! किसी भी नयी सरकार के लिए तो सौ दिन और कभी-कभी तो उससे भी ज़्यादा दिन ‘हनीमून’ चलता है, लोग नयी सरकार को समय देते हैं काम करने का, फिर मोदी जी तो दिल्ली के लिए बिलकुल ही नये थे और लोग सोच रहे थे कि साल-दो साल तो उन्हें अपना काम समझने में ही लग जायेंगे, लेकिन उन्होंने तो फटाफट सब समझ लिया और सरकार का काम एकदम चोखा चल रहा है, फिर भी लोगों ने तो उन्हें ‘हनीमून’ के लिए सौ घंटे भी नहीं दिये! और सरकार बनते ही लोग आलोचना ले कर पिल पड़े!
सारी समस्या तो इसी बदलाव की है! मोदी जी, पता नहीं आपने ऐसे सपने दिखाये थे या जनता ने ख़ुद अपने आप ही अपने सपने गढ़ लिये थे कि मोदी जी आयेंगे, चुटकी बजायेंगे और देश सोने की चिड़िया बन जायेगा! लोग तो मान बैठे थे कि जादू की छड़़ी चलेगी और रातोंरात सब बदल जायेगा! वैसे लोग कुछ भी समझें, आप भी जानते हैं, हम भी जानते हैं और दुनिया के बड़े से बड़े जादूगर भी कि असल में न तो कोई जादू होता है और न ही कोई जादू की छड़ी! जिसे लोग जादू का करिश्मा समझते हैं, वह होता है महज़ छलावा, हाथों की सफ़ाई, आँखों का भरम, सिर्फ़ एक ‘ट्रिक’ या फिर चुनावी भाषण!
इसलिए जादू होता नहीं और बदलाव रातोंरात आता नहीं! वह इतने धीरे-धीरे आता है कि अकसर पता ही नहीं चलता! और बदलाव का हमेशा ही विरोध भी होता है, ‘अन्दर’ से भी, ‘बाहर’ से भी। और बदलाव लाना इतना कठिन होता है कि लोग अकसर बातें तो करते हैं, लेकिन बदलाव लाते नहीं हैं! अब राज्यपालों वाला मामला ही ले लीजिए। जब यूपीए ने 2004 में सरकार बनते ही बहुत-से राज्यपाल हटा दिये थे, तो बीजेपी ने इसकी बड़ी आलोचना की थी! अब आपकी सरकार वही कर रही है! यह ‘सकारात्मक बदलाव’ है या बदला?
अब मोदी जी कह रहे हैं कि देशहित में अगले एक-दो साल कड़े फ़ैसले लेने पड़ेंगे! यही बात तो बार-बार पिछली सरकार भी कहती थी और आपकी गालियाँ सुनती थी। अब आप भी वही भाषा बोल रहे हैं तो लोगों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा है!
लेकिन मोदी जी तो तीस दिन में ही तप गये कि आलोचना हो रही है! और आलोचना भी कैसी? जो कुछ आलोचना हुई, वह जनता ने की क्योंकि जनता को लगा कि यही सब तो पिछली सरकार भी करती थी तो फिर बदला क्या? वरना मोदी जी जैसी क़िस्मत लोग कहाँ पाते हैं? विपक्ष के नाम पर पूरा शून्य बटा सन्नाटा है! काँग्रेस तो हार के बाद ऐसी घिघियाई पड़ी है कि पता नहीं उसमें आगे जीने की कोई इच्छा बची भी है या नहीं, या फिर वह ऐसे ही दिन काट रही है? नेतृत्व कहाँ है, रणनीति क्या है, लड़ना कैसे है, किसी को कुछ पता नहीं। सब चादर ताने पड़े हैं! जैसे डाक्टर कभी-कभी मरीज़ को जवाब दे देता है कि अब जो करेगा, भगवान ही करेगा, काँग्रेस भी अब शायद भगवान के आसरे ही बैठ गयी है! बाक़ी जो विपक्ष है, वह टुकड़ों-टुकड़ों में अपनी-अपनी रोटियों के जुगाड़ में है। ममता बनर्जी ने एडीएमके और बीजेडी को लेकर फ़ेडरल फ़्रंट बनाने की जुगत की थी, लेकिन न अम्मा ने घास डाली, न नवीन पटनायक ने भाव दिया। मोदी को राज्यसभा में इनके समर्थन की ज़रूरत है तो इन्हें अपने-अपने राज्यों के लिए लालीपाप के लिए मोदी की। तो ताली तो मिल कर ही बजेगी! इसके बाद विपक्ष है कहाँ, जो बोले! और बोले भी तो कर क्या लेगा?
और पार्टी के अन्दर? अब और क्या चाहिए? सब जगह मोदी की तूती बोल रही है! अध्यक्ष भी अपने मन का बन्दा होने वाला है। सो पार्टी भी बस अब जेब में आ गयी समझो। सरकार तो ‘मोदी सरकार’ है ही! मंत्री कोई नीतिगत फ़ैसला ले नहीं सकते, मंत्रियों के सेक्रेटरी जब चाहे तब पीएम से सीधे ‘कनेक्ट’ हो सकते हैं। तो सारे फ़ैसले प्रधानमंत्री के, उनकी मरज़ी और मंज़ूरी के बिना पत्ता भी नहीं खड़क सकता! अब इसके बाद और क्या चाहिए?
इसलिए तीस दिन में मोदी जी ‘अन्दर’ और ‘बाहर’ वालों से परेशान हो गये तो ज़रा हैरानी होती है! ज़रा उन बेचारों की भी सोचिए जिन्होंने पिछले बरसों में मोदी के अग्निबाण झेले हैं! लोगों ने वोट बदलाव के लिए दिया है। और वह इस बदलाव के ‘रोडमैप’ को देखना चाहेंगे इस जुलाई के बजट में भी और प्रधानमंत्री के पन्द्रह अगस्त के भाषण में भी! लालन कालेज और लाल क़िले में यही फ़र्क़ है! और मोदी जी, लोग आपको बिलकुल भी दुःखी नहीं देखना चाहते क्योंकि ऐसा उनका सपना नहीं था!
(लोकमत समाचार, 28 जून २०१४ से साभार)
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