ख़ामोशी ग़द्दारी का दूसरा नाम — ग़ज़ा की त्रासदी पर इतिहास का कड़ा सवाल
ग़ज़ा की त्रासदी पर एक दर्दनाक सवाल — जब बच्चे प्यास से मर रहे थे, अस्पताल अंधेरे में डूबे थे और इंसानियत चीख रही थी, तब मुस्लिम दुनिया क्यों चुप रही? ख़ामोशी को ग़द्दारी बताने वाला आदियोग का यह संक्षिप्त लेख इतिहास और ज़मीर दोनों को झकझोर देता है...

Silence is another name for betrayal - History's tough question on Gaza tragedy
ख़ामोशी ग़द्दारी का दूसरा नाम है
- ग़ज़ा की प्यास और नील नदी की ख़ामोशी
- तेल के समंदर, लेकिन अस्पताल अंधेरे में
ग़ज़ा की त्रासदी पर एक दर्दनाक सवाल — जब बच्चे प्यास से मर रहे थे, अस्पताल अंधेरे में डूबे थे और इंसानियत चीख रही थी, तब मुस्लिम दुनिया क्यों चुप रही? ख़ामोशी को ग़द्दारी बताने वाला आदियोग का यह संक्षिप्त लेख इतिहास और ज़मीर दोनों को झकझोर देता है...
जी हां, इतिहास गवाह बनेगा…
इतिहास गवाही देगा कि मिस्र के पास जीवनदायिनी नील नदी थी, लेकिन ग़ज़ा के बच्चे प्यासे दम तोड़ते रहे।
इतिहास लिखेगा कि अरब के पास तेल के समंदर थे, लेकिन ग़ज़ा के अस्पताल बूंद-बूंद ईंधन को तरसते रहे, अंधेरे में डूबे रहे।
इतिहास चिल्ला-चिल्लाकर बताएगा कि मुसलमानों की फ़ौजें करोड़ों में थीं — पर ग़ज़ा की पुकार पर एक भी क़दम आगे नहीं बढ़ीं।
इतिहास यह भी दर्ज़ करेगा कि अरबों की दौलत नाच-गानों, शानो-शौकत और खेलों पर बहती रही, जबकि ग़ज़ा में एक टुकड़ा रोटी और घूंट भर पानी तक नहीं पहुंचाया जा सका।
इतिहास बताएगा कि तुर्की ने इस्लाम की बातें ख़ूब कीं, पर ग़ज़ा की चीखों पर चुप्पी ओढ़ ली।
इतिहास यह भी कहेगा कि उम्मत ने सिर्फ हुक्मरानों को कोसा, लेकिन दुश्मन की बनी चीज़ें खरीदना बंद नहीं किया— न पेप्सी छोड़ी, न कोका कोला।
इतिहास अफ़सोस करेगा कि जब ग़ज़ा जल रहा था, तब पश्चिमी लोग सड़कों पर उतरे, और मुस्लिम दुनिया के आलिम घरों में बैठकर एक बिल्ली की कहानी पर बहस कर रहे थे— लेकिन हज़ारों मासूम इंसानों की हत्या पर ख़ामोश रहे।
इतिहास खून के आंसू रोएगा — न सिर्फ हुक्मरानों पर, बल्कि हम सभी पर — जो ग़ज़ा के लहूलुहान चेहरे को देखकर भी सोते रहे।
और फिर…
क़ियामत के दिन, हर ज़िंदा दिल को बुलाया जाएगा।
हर चुप्पी का हिसाब किया जाएगा।
तबाहियों से मुंह मोड़ने वाले हरेक चेहरे से सवाल किया जाएगा: जब इंसानियत चीख रही थी, तुम कहां थे?
ख़ामोशी ग़द्दारी का दूसरा नाम है। जब सच की आवाज़ बुलंद होती है, दुनिया जागती है।
आदियोग
लेखक वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी हैं


