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विमर्श के लिए ज़रूरी नहीं होते हैं शब्द !
जब सोशल मीडिया नहीं देखती हैं गीतांजलि श्री तो जवाब किसे दे रही हैं? लकान का ‘बिना शब्दों का विमर्श‘ और गीतांजलि श्री का व्यवहार.
क्या मार्क्सवाद जिंदाबाद करने से ही काम चल जाएगा?
वामपंथी दोस्त क्रांति का बिगुल बजा रहे हैं और यह उनका हक है और उनको यह काम करना चाहिए। लेकिन ध्यान रहे देश में लोकतंत्र संकट में है क्रांति नहीं।














