गृह मंत्रालय ने CAA की अंतिम तिथि बढ़ाई, असम में भड़का विरोध

असम जातीय परिषद (AJP) ने केंद्र सरकार पर लगाया ऐतिहासिक अन्याय का आरोप

लुरिनज्योति गोगोई बोले – अवैध प्रवासियों का बोझ असम पर डालने की साजिश

सीएए पर असम में क्यों बढ़ रहा है असंतोष?

असम जातीय परिषद (AJP) की तीखी प्रतिक्रिया

लुरिनज्योति गोगोई का आरोप: "दिल्ली समर्थित साजिश"

असम में सीएए विरोध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) की अंतिम तिथि 31 दिसंबर 2024 तक बढ़ाई, लेकिन असम जातीय परिषद (AJP) ने इसे असमिया जनता के खिलाफ सबसे बड़ा अपराध बताया। जानें असम में क्यों बढ़ रहा है सीएए विरोध।

असम जातीय परिषद ने सीएए की समय सीमा बढ़ाए जाने का विरोध किया

नई दिल्ली, 4 सितंबर 2025. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत कटऑफ डेट को 31 दिसंबर, 2024 तक बढ़ा दिया है, लेकिन इस फैसले पर असम में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। असम जातीय परिषद (एजेपी) ने सीएए की समय सीमा बढ़ाए जाने को असमिया लोगों के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा अपराध करार दिया और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार पर ऐतिहासिक अन्याय को जारी रखने का आरोप लगाया है।

असम जातीय परिषद (एजेपी) के सदस्यों ने बुधवार (3 सितंबर, 2025) को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के तहत तीन पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की समय सीमा 10 साल बढ़ाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

असम जातीय परिषद (एजेपी) के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने केंद्र पर पूर्वोत्तर पर अवैध प्रवासियों का बोझ डालने की "सुनियोजित साजिश" का आरोप लगाया और स्वदेशी पहचान और राजनीतिक अधिकारों के लिए खतरे की चेतावनी दी।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) की अंतिम तिथि को 31 दिसंबर, 2024 तक बढ़ाए जाने की आलोचना करते हुए, गोगोई ने तर्क दिया कि असम पहले ही 43 वर्षों से इस बोझ को ढो रहा है और इसे 53 वर्षों तक बढ़ाना अस्वीकार्य है।

उन्होंने इस कदम को "दिल्ली समर्थित साजिश" करार दिया जिसका उद्देश्य क्षेत्र को अस्थिर करना है और लोगों से असम की जनसांख्यिकी, संस्कृति और भविष्य को खतरे में डालने वाली नीतियों का विरोध करने का आग्रह किया।

उनकी टिप्पणी असम में सीएए के बढ़ते विरोध को दर्शाती है।

गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना में कहा गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों के लोग, जिन्हें धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2024 को या उससे पहले भारत में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था, उन्हें पासपोर्ट या अन्य यात्रा दस्तावेजों के बिना रहने की अनुमति होगी।