जस्टिस काटजू का लेख: भारत जल रहा है! गरीबी, बेरोज़गारी, भूख की आग—कन्नगी की कथा से करारा सवाल!
Justice Markandey Katju warns that India is “burning” with injustice, poverty, hunger and unemployment, invoking the Kannagi story to highlight rising inequality.
Justice Katju का बड़ा बयान! अन्याय की आग… कब बुझेगी?
- कन्नगी की कथा और जस्टिस काटजू का संकेत
- भारत आज किस आग में जल रहा है?
- 78 साल बाद भी गरीबी और भूख से आज़ादी क्यों नहीं?
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की गिरती स्थिति
बेरोज़गारी—12 मिलियन युवा, सिर्फ़ 1.5 मिलियन नौकरियाँ
नई दिल्ली, 21 नवंबर 2025. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू (Former Supreme Court judge Justice Markandey Katju) ने कन्नगी की कथा का संदर्भ देकर कहा कि भारत आज अन्याय, असमानता, गरीबी, भूख, बेरोज़गारी और सामाजिक विफलताओं की आग में जल रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक इन अन्यायों को दूर नहीं किया जाएगा, देश की आग शांत नहीं होगी।
हमारी अंग्रेज़ी वेब साइट हस्तक्षेप न्यूज डॉट कॉम पर अंग्रेज़ी में लिखे एक लेख में जस्टिस काटजू ने लिखा-
"इलांगो की मशहूर तमिल एपिक 'सिलप्पथिहाराम' में, एक औरत कन्नगी ने पूरे मदुरै शहर (तमिलनाडु में) को जला दिया था क्योंकि उसके पति के साथ नाइंसाफ़ी हुई थी (उस पर रानी की मोती की पायल चुराने का झूठा इल्ज़ाम लगाकर उसे मार दिया गया था)।
मैं हाल ही में मदुरै में था, और मैंने मद्रास हाई कोर्ट मदुरै बेंच बार एसोसिएशन के एक फंक्शन में यह घटना बताई, जिसे मैंने एड्रेस किया था।
यह घटना बताते हुए मैंने कहा कि पूरा भारत जल रहा है क्योंकि हमारे देश में माइनॉरिटी, दलित, महिला, आदिवासी और दूसरे लोगों के साथ अन्याय हो रहा है, और यह तब तक जलता रहेगा जब तक इस आग को सभी को न्याय के पानी से नहीं बुझाया जाता।
और यह नागरिक अधिकारों के मामले में अन्याय नहीं है। भारत में सामाजिक-आर्थिक अन्याय भी बहुत ज़्यादा है, जैसे बहुत ज़्यादा गरीबी, बहुत ज़्यादा बेरोज़गारी, खाने-पीने जैसी ज़रूरी चीज़ों की आसमान छूती कीमतें, बच्चों में कुपोषण का बहुत ज़्यादा होना, आम लोगों के लिए सही हेल्थकेयर और अच्छी शिक्षा की लगभग पूरी कमी, वगैरह।"
जस्टिस काटजू ने कहा
"1947 में आज़ादी के 78 साल बाद भी, भारत में बुनियादी समस्याएं बनी हुई हैं। दशकों की तथाकथित तरक्की के बाद भी, भारत अभी भी गरीबी और भूख में क्यों फंसा हुआ है? हम एक आज़ाद देश होने का दावा करते हैं, लेकिन असली आज़ादी तो भारतीय लोगों के लिए गरीबी, बेरोज़गारी, भूख, सही हेल्थकेयर और अच्छी शिक्षा की कमी वगैरह से आज़ादी है, जो हम 1947 से 78 साल बाद भी हासिल नहीं कर पाए हैं।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार, भारत में हर दूसरा बच्चा कुपोषित है, यह दर सोमालिया और इथियोपिया जैसे सब-सहारा देशों से कहीं ज़्यादा है, जहाँ बच्चों के पोषण की दर लगभग 33 फीसदी है, और हाल के सालों में हालत और खराब हो गई है, सर्वे किए गए 125 देशों में भारत 101वें नंबर से फिसलकर 107वें नंबर पर आ गया है।"
देश में व्याप्त भयंकर बेरोज़गारी पर जस्टिस काटजू ने कहा-
"देश में बेरोज़गारी का लेवल भी बहुत ज़्यादा है, हर साल लाखों युवा जॉब मार्केट में आते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही को अच्छी नौकरी मिल पाती है। अनुमान है कि हर साल 12 मिलियन युवा इंडियन जॉब मार्केट में आते हैं, लेकिन पिछले साल हमारी इकॉनमी के ऑर्गनाइज़्ड सेक्टर में सिर्फ़ डेढ़ मिलियन नौकरियाँ ही बनीं। तो बाकी साढ़े ग्यारह मिलियन कहाँ जाते हैं?
वे आखिर में फेरीवाले, स्ट्रीट वेंडर, स्ट्रिंगर, बाउंसर, घरेलू नौकर, क्रिमिनल, भिखारी, प्रॉस्टिट्यूट या सुसाइड करने वाले बन जाते हैं। हर ग्रुप 4 की सरकारी नौकरी के विज्ञापन के लिए, हज़ारों एप्लीकेंट होते हैं, जिनमें से कुछ के पास Ph.D, M.A. M.Sc या इंजीनियरिंग की डिग्री होती है, और सभी चपरासी की नौकरी के लिए भीख मांगते हैं।
महिलाओं में भी पोषण और मेडिकल केयर की कमी है, और 57 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।"
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर जस्टिस काटजू ने कहा
"भारत में आम लोगों के लिए सही हेल्थकेयर लगभग नहीं है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत के बड़े शहरों में कुछ स्टेट ऑफ़ द आर्ट हॉस्पिटल हैं जिनमें अच्छे डॉक्टर और सुविधाएँ हैं, लेकिन ये बहुत महंगे हैं, जो सिर्फ़ अमीर और ताकतवर लोगों के लिए हैं, और गरीब भारतीयों (जो आबादी का लगभग 75% हैं) की पहुँच से बाहर हैं क्योंकि डॉक्टर और दवाएँ उनके लिए बहुत महँगी हैं। इसलिए, उनमें से ज़्यादातर बिना किसी सही मेडिकल क्वालिफिकेशन वाले झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाते हैं। भारत में झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या बहुत ज़्यादा है, और झोलाछाप डॉक्टर क्वालिफाइड डॉक्टरों से कई गुना ज़्यादा हैं।"
सत्ता पक्ष द्वारा जीडीपी बढ़ने के दावे पर भी जस्टिस काटजू ने सख्त टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि
"कहा जाता है कि भारत की GDP बढ़ रही है, लेकिन क्या इस आर्थिक विकास से भारत की आम जनता को फ़ायदा हो रहा है, या सिर्फ़ कुछ बड़े बिज़नेसमैन को ही फायदा हो रहा है जो और अधिक अमीर हो गए हैं, और अमीर और गरीब के बीच का अंतर और बढ़ा रहे हैं?
कुछ लोगों का यह दावा कि भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकॉनमी है, और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बन जाएगी, पूरी तरह बकवास है।
सरकारी डेटा के मुताबिक, 1995 से 2018 के बीच 400,000 किसानों ने खुद की जान ले ली। तब से, हर साल औसतन 5500 किसानों ने अपनी जान ली है (हर दिन 47), जिससे पिछले 30 सालों में किसानों द्वारा खुद की जान लिए जाने से कुल 427,000 से ज़्यादा मौतें हुई हैं, जो एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है।
जब तक ये नाइंसाफ़ी ठीक नहीं होतीं, भारत जलता रहेगा, और कन्नगी का श्राप हमें परेशान करता रहेगा।"
भारत के दर्द को समझना आसान नहीं, लेकिन उससे नज़र चुराना भी अब मुमकिन नहीं। जस्टिस काटजू की ये टिप्पणी सिर्फ़ एक चेतावनी नहीं—यह एक आईना है, जो हमें बताता है कि आग बुझाने की शुरुआत इंसाफ़ से होती है।
अगर आप चाहते हैं कि ये मुद्दे देश की चर्चा में बने रहें, तो वीडियो को लाइक, शेयर और अपने विचार कमेंट में ज़रूर बताएं।


