जस्टिस काटजू का तीखा बयान: उमर खालिद जेल में सड़ रहा है, आरफ़ा ख़ानम राणा अय्यूब बाहर आनंद ले रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने इस पर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा कि “बेचारे उमर खालिद की ज़मानत बार-बार खारिज हो रही है और उसे जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया गया है, जबकि बाकी लोग बाहर आनंद ले रहे हैं।”
जस्टिस काटजू की सोशल मीडिया पोस्ट
- दिल्ली हाईकोर्ट ने उमर खालिद की ज़मानत क्यों खारिज की?
- आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का भावुक बयान
- सोशल मीडिया पर उठा न्यायिक व्यवस्था पर सवाल
- उमर खालिद मामला: न्याय, धर्म और राजनीति के बीच नई बहस
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने इस पर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा कि “बेचारे उमर खालिद की ज़मानत बार-बार खारिज हो रही है और उसे जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया गया है, जबकि बाकी लोग बाहर आनंद ले रहे हैं।”...
नई दिल्ली, 3 सितंबर 2025। सुप्रीम कोर्ट के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर जेएनयू छात्र उमर खालिद की ज़मानत याचिका खारिज होने पर टिप्पणी की है। काटजू ने लिखा –
“बेचारे उमर खालिद की ज़मानत बार-बार खारिज हो रही है और उसे जेल के खाने पर जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया गया है, जबकि आरफ़ा ख़ानम शेरवानी पटना की मेहमाननवाज़ी का लुत्फ़ उठा रही हैं, राणा अय्यूब अपनी छुट्टियों का आनंद ले रही हैं, और स्वरा भास्कर फ़िलिस्तीनियों के लिए कर्तव्यनिष्ठा से आँसू बहा रही हैं।”
उमर खालिद की जमानत फिर खारिज
बता दें कि हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उमर खालिद की ज़मानत याचिका को खारिज कर दिया था। जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद पर दिल्ली दंगों के दौरान भड़काऊ भाषण देने और साज़िश में शामिल होने का आरोप है। वे पिछले पाँच साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं।
जस्टिस काटजू ने एक अन्य पोस्ट में लिखा-
“मैंने चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास 'ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़' में डॉ. मैनेट के बारे में पढ़ा, जो एक मेडिकल डॉक्टर थे और बिना किसी आरोप या मुकदमे के 18 साल तक पेरिस की बैस्टिल जेल में बंद रहे। जब उन्हें रिहा किया गया (जब पेरिसियों ने बैस्टिल पर धावा बोला था), तब तक वे मोची (मोची) बन चुके थे।
मुझे डर है कि जब तक उमर खालिद जेल से रिहा होगा (अगर वह कभी रिहा हुआ भी) तब तक वह मोची बन चुका होगा।”
आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का बयान
पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी ने इस फैसले पर इंस्टाग्राम पर गहरी निराशा व्यक्त की थी। उन्होंने लिखा –
“मेरा दिल हज़ार टुकड़ों में टूट गया। उमर खालिद, शारजील इमाम, गुलफ़िशा फ़ातिमा, खालिद सैफ़ी, मीरान हैदर और दूसरों को ज़मानत नहीं मिली। उनका अकेला ‘जुर्म’ ये था कि वे सब मुसलमान थे। दिल्ली हाईकोर्ट का यह फ़ैसला दंगों के मामले में भारत की इंसाफ़परस्ती पर आख़िरी भरोसे की डोर भी तोड़ देता है।”
विवाद और बहस
जस्टिस काटजू की टिप्पणी ने सोशल मीडिया पर नई बहस छेड़ दी है। एक ओर, वे न्यायपालिका के रवैये और “चयनात्मक न्याय” पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, मुसलमानों के नाम पर राजनीति करने वालों पर सवाल भी उठा रहे हैं। जबकि आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का बयान भारत की न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगाता है।
उमर खालिद की लगातार जमानत याचिका खारिज होना और अन्य सामाजिक-राजनीतिक हस्तियों की स्वतंत्र गतिविधियों की तुलना अब न्याय, धर्म और राजनीति के त्रिकोण को फिर से केंद्र में ले आई है। उमर खालिद की जमानत का मामला सिर्फ एक व्यक्ति की जमानत का मुद्दा नहीं रह गया है। यह भारतीय न्याय व्यवस्था, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक समानता पर गहन विमर्श को जन्म दे रहा है तो सोशल मीडिया पर नई बहस को भी जन्म दे रहा है।


