उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून 2021 के नए संशोधन: संवैधानिकता पर सवाल और पीयूसीएल की प्रतिक्रिया
उत्तर प्रदेश का विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन (प्रतिषेध) अधिनियम 2021, जिसमें हाल ही में संशोधन किए गए हैं, पर पीयूसीएल की आपत्ति। 2024 के संशोधन विधेयक की संवैधानिकता पर सवाल, नागरिक अधिकारों पर प्रभाव और इसके खिलाफ पीयूसीएल की तात्कालिक कार्रवाई की मांग के बारे में जानें

उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून 2021 में नए संशोधन उसे और भी अधिक असंवैधानिक बनाते हैं
संशोधन विधेयक 2024 के साथ यह कानून रद्द करना किया जाना चाहिए - पीयूसीएल उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश का विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन (प्रतिषेध) अधिनियम 2021, जिसमें हाल ही में संशोधन किए गए हैं, पर पीयूसीएल की आपत्ति। 2024 के संशोधन विधेयक की संवैधानिकता पर सवाल, नागरिक अधिकारों पर प्रभाव और इसके खिलाफ पीयूसीएल की तात्कालिक कार्रवाई की मांग के बारे में जानें…
लखनऊ, 03 अगस्त 2024. उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन (प्रतिषेध) अधिनियम 2021, जिसके आने पर ही प्रदेश ही नहीं देश भर के मानवाधिकार संगठनों, महिला संगठनों और संविधान के जानकार वकीलों ने इसका विरोध किया था, 29 जुलाई को इसमें कुछ नए संशोधन कर इसे और भी अधिक असंवैधानिक बना दिया गया है। इन संशोधनों के बाद यह नागरिक अधिकारों का दमन करने वाला और भी अराजक और क्रूर कानून बन जायेगा। उत्तर प्रदेश पीयूसीएल ने इस संशोधन बिल को वापस लेने साथ ही इस कानून को वापस लेने की फिर से मांग की है।
पीयूसीएल उत्तर प्रदेश की ओर से अध्यक्ष सीमा आज़ाद और महासचिव कमल सिंह द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन (प्रतिषेध) अधिनियम 2021 और अन्य प्रदेशों में लाए गए ऐसे ही कानूनों को असंवैधानिक घोषित कर 8 राज्यों के महिला संगठनों और विभिन्न जन संगठनों ने इसे अदालत में चुनौती दी है, जिस पर अभी सुनवाई होनी है। इसका विरोध इसलिए किया गया था, क्योंकि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 में वर्णित समानता के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, और जीवन की स्वतंत्रता की अवहेलना करती है। यह कानून अल्पसंख्यक समूहों और वयस्कों, हमारे पितृसत्तात्मक समाज में खासतौर पर वयस्क महिला के जीवन चुनने के अधिकार को समाप्त करने वाला है। इस कानून के लागू होने के समय यह आशंका व्यक्त की गई थी कि इसके माध्यम से अल्पसंख्यक समूहों का राजकीय उत्पीड़न बढ़ जाएगा, और इसके लागू होने के बाद यह बात सही भी साबित हुई। यह उत्पीड़न तब बड़े पैमाने पर हो रहा था, जबकि इस कानून की धारा 4 में यह प्रावधान रखा गया था कि इस मामले की एफआईआर करने वाला व्यक्ति संबंधित व्यक्तियों का रक्त संबधी या उसका नजदीकी व्यक्ति हो सकता है। अब 29 जुलाई 2024 में प्रस्तावित संशोधनों में धारा 4 में संशोधन कर यह प्रावधान कर दिया गया है कि संबंधित मामले की एफआईआर "कोई भी" व्यक्ति दर्ज करा सकता है। यह संशोधित प्रावधान सालों चले आंदोलनों के बाद मिले व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है, यह न्यायशास्त्र के खिलाफ है, यह व्यक्तिगत जीवन में राज्य की जबरन घुसपैठ और दखलंदाजी है, यह समाज को अराजकता की ओर धकेलने का कदम है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि यहां इस ओर ध्यान दिलाना भी जरूरी है कि हाल में हुए इस संशोधन के पहले ही, गैरकानूनी तरीके से इस कानून की धारा 4 का उल्लंघन करते हुए पुलिस तीसरे व्यक्ति, यानि "किसी भी व्यक्ति" की ओर से एफआईआर दर्ज कर रही थी, जो कि कोर्ट में जाकर धराशाई हो जा रही थी, लेकिन संबंधित व्यक्ति को इस बीच जेल और मुकदमे का तनाव झेलना पड़ रहा था। 2021 में इस कानून के आने के बाद ऐसे कई मामलों की रिपोर्ट मीडिया में आई हैं, जहां एफआईआर कराने वाली पार्टी विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और आरएसएस रहा है। जिसका संबंधित लोगों के जीवन से कोई लेना देना नहीं था। इस तरह की एफआईआर के खिलाफ शिकायतें की जा रही थीं, लेकिन शिकायतों पर कार्यवाही की बजाय, उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने धारा 4 में संशोधन कर किसी के व्यक्तिगत जीवन में गैर कानूनी हस्तक्षेप को कानूनी मान्यता दे दी। इतना ही नहीं नए आए कानून बीएनएस के तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस थाने में ऐसी रिपोर्ट दर्ज करा सकता है। यानि अब ऐसे मामले और बढ़ेंगे, जिससे मुस्लिम, ईसाई अल्पसंख्यकों के दमन में इजाफा होगा। सरकार की मंशा भी यही लगती है।
पीयूसीएल ने कहा है कि संशोधन विधेयक में शादी का वादा कर महिलाओं, नाबालिग, विकलांग और अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों के धर्मांतरण को गंभीर अपराधों की श्रेणी में रख कर इसकी सजा को बढ़ा कर 20 साल से आजीवन कारावास तक कर दी है। इसके अलावा आरोपी के जमानत मिलने को भी मुश्किल बना दिया गया है। संशोधन विधेयक 2024 ने 2021 के कानून की धारा 4, 5 और 7 में संशोधन किया और धारा 7 में दो उप-खंड जोड़े हैं, जिसमें अनिवार्य किया गया कि सरकारी वकील को जमानत याचिका का विरोध करने का अवसर दिए बगैर आरोपी की जमानत पर विचार नहीं किया जाएगा। इस कानून के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती हैं और सेशन कोर्ट से नीचे के किसी भी अदालत द्वारा उनकी सुनवाई नहीं की जाएगी।
पीयूसीएल ने कहा है, “इसके अलावा संशोधनों के द्वारा सरकार ने इस कानून के तहत सभी प्रकार के अपराधों के लिए जेल की अवधि और जुर्माने में वृद्धि कर दी है।
प्रस्तावित संशोधन के पहले अगर कोई व्यक्ति अवैध धर्मांतरण का दोषी पाया जाता था, तो उसे कम से कम एक साल और अधिकतम पांच साल की जेल की सज़ा दी जाती थी। साथ ही, उसे 15,000 रुपये का जुर्माना भी भरना पड़ता था। संशोधित विधेयक में सामान्य अपराधों के लिए न्यूनतम सजा बढ़ाकर पांच वर्ष और अधिकतम सजा बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी गई है। साथ ही जुर्माने की राशि भी बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दी गई है। नाबालिगों, महिलाओं या दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध करने पर जेल की अवधि को भी अधिकतम 10 साल (न्यूनतम दो साल की जेल) से बढ़ाकर 14 साल कर दिया गया है। नई न्यूनतम जेल अवधि पांच साल है। जुर्माना भी 25,000 रुपये से बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया गया है।
संशोधित विधेयक 2024 में "सामूहिक धर्मांतरण" से संबंधित धारा को और भी सख्त बनाया गया है। पहले सामूहिक धर्मांतरण के दोषी व्यक्ति को न्यूनतम तीन साल और अधिकतम 10 साल की सजा होती थी। अब सजा बढ़ाकर सात साल (न्यूनतम) और 14 साल (अधिकतम) कर दी गई है और जुर्माना दोगुना करके एक लाख रुपये कर दिया गया है।
कानून की धारा 5 में एक नई जोड़ी गई उपधारा के अनुसार, वह व्यक्ति जो “विदेशी” धन या “अवैध धर्मांतरण के उद्देश्य से अवैध संस्थानों से धन जुटाता है, के लिए न्यूनतम सात साल की जेल की सजा से 14 साल कर दिया गया है। साथ ही 10 लाख रुपये का जुर्माना भरना होगा। इसके अलावा, जो व्यक्ति धर्मांतरण के इरादे से किसी पर हमला करता है, उसके खिलाफ बल प्रयोग करता है या उसे जान-माल का खतरा पैदा करता है या उसे शादी या शादी का वादा करके बहलाता है या इसके लिए साजिश रचता है, या किसी नाबालिग, महिला या किसी अन्य व्यक्ति को लालच देकर या उकसाकर तस्करी करता है या बेचता है, इस संबंध में साजिश रचता है या प्रयास करता है, उसे कम से कम 20 साल की जेल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी। संशोधित विधेयक में यह भी कहा गया है कि अदालतें आरोपी व्यक्ति द्वारा "पीड़ित" को उचित मुआवजा प्रदान करें। यह अधिकतम 5 लाख रुपये तक हो सकता है और जुर्माने से अलग होगा।
कानून में ऐसे संशोधन को जोड़ने के लिए लाए गए विधेयक की मंशा साफ उजागर होती है। यह कानून और उसके मौजूदा संशोधन अल्पसंख्यक धर्मों के खिलाफ और अधिक दुर्भावना को परिलक्षित करते हैं। यह कानून उन्हीं को निशाना बनाने के लिए लाया गया है। पहले से ही वे इस सरकार के निशाने पर हैं।
एक धार्मिक प्रदेश ही धर्म परिवर्तन को इतना बड़ा अपराध मान सकता है, कि उसके लिए हत्या जैसी सजा निर्धारित करे। यह अपने आप में लोकतंत्र के लिए बुरा संकेत है।
2021 में कानून के लागू होने के बाद यह भी देखा गया है कि इस कानून के माध्यम से ऐसे अंतरधार्मिक शादी करने वाले जोड़ों को परेशान किया गया, जिसमें लड़का अल्पसंख्यक समुदाय से था, उसे ही नहीं कानून के अनुसार उसके पूरे परिवार को जेल भेजे जाने की कई घटनाएं सामने आई हैं। इस तरह से यह कानून वयस्कों के शादी या साथ रहने के चयन के अधिकार के खिलाफ है, यह महिलाओं के साथी चुनने के अधिकार के खिलाफ है, और अब इस संशोधन द्वारा ऐसे जोड़ों की पूरी ज़िंदगी बर्बाद करने की खुली घोषणा कर दी गई है। कोई भी व्यक्ति ऐसी शादी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकेगा कि यह दबाव या प्रलोभन में धर्म परिवर्तन और 'जनसांख्यिकी में परिवर्तन' ( संशोधन विधेयक के शब्द) के इरादे से की गई शादी है। इसके बाद लड़का जेल चला जायेगा और लड़की को उसके पसंद किए गए जीवन और जीवन साथी से दूर कर दिया जायेगा।
जबकि हादिया बनाम अशोकन के चर्चित मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था "वयस्कों को अपनी पसंद से शादी करने और दूसरे धर्म में परिवर्तित होने का अधिकार है। किसी व्यक्ति के विवाह और धर्म परिवर्तन करने की आज़ादी में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।" लेकिन यह कानून और खास तौर पर इसके प्रस्तावित संशोधन सुप्रीम कोर्ट की इस रूलिंग की अवहेलना है।
आदित्यनाथ ने संशोधन विधेयक के मसौदे पर बात रखते हुए कहा कि गैरकानूनी धर्मांतरण के कारण जनसांख्यिकीय परिवर्तन में “विदेशी और राष्ट्र-विरोधी तत्वों और संगठनों” की कथित “संगठित और सुनियोजित” संलिप्तता को देखते हुए संशोधन लाना आवश्यक था।
उनके बयान से संशोधन विधेयक को लाने की मंशा साफ होती है। इस कानून और कानून में संशोधन के विधेयक को लाए जाने के पीछे धर्म परिवर्तन को रोकना नहीं, बल्कि राज्य में बहुसंख्यक धार्मिक अराजकता को और अधिक बढ़ावा देना है, राज्य को और अधिक धार्मिक बनाना है, अल्पसंख्यकों पर दमन को और अधिक व्यापक और "कानूनी" बनाना है।
सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिकता को तब तक ही वैध माना है, जब तक वे किसी व्यक्ति की धार्मिक आजादी के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करतीं।
जबकि ये संशोधन विधेयक इस राजकीय हस्तक्षेप को अत्यधिक बढ़ाने वाले हैं।
पीयूसीएल उत्तर प्रदेश इस संशोधन विधेयक का इस मूल कानून से भी अधिक विरोध करता है और इसे तत्काल वापस लिए जाने की मांग करता है।“
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