विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता : इन शहरों की पीठ पर लगी हैं, कईं जंगलों की आहें
शब्द | हस्तक्षेप | साहित्यिक कलरव विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता
ग्रीन बैल्ट वाले दरख़्तों ने
देखे है क़त्ल के मंज़र,
लाशों से पटी थी सड़क,
आम के बाग़ों पर चले थे..
बुलडोज़र।

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विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता
ग्रीन बैल्ट वाले दरख़्तों ने
देखे है क़त्ल के मंज़र,
लाशों से पटी थी सड़क,
आम के बाग़ों पर चले थे..
बुलडोज़र।
वो, नम्बर डाल कर
काट रहे थे गरदनें
फोरलेन के वास्ते।
बस तभी से
खुद को सिकोड़े पड़े हैं।
फैलती ही नहीं सड़क तक
हदों में जड़े हैं
ना बाँह खोली कभी
ना आवाज़, ना कमर सीधी
सहमे से चुप खड़े हैं
कहें किस से आपबीती?
काग़ज़ों पे तय दायरे
फ़रमानों पे ज़िंदगी
लिए हैं बदन पर बदनुमा
पीकों की गंदगी
पहियों से उड़ी गर्द से अटे
एक दूजे से कटे-कटे दरख़्त
देखते हैं
नशे में चूर तरक़्क़ी की अदायें
इन शहरों की पीठ पर लगी हैं
कईं जंगलों की आहें...
डॉ कविता अरोरा
Poem on world environment day in Hindi


