एडिटर पॉइंट के संपादक फूल खान (Editor Point Editor Phool Khan) को हस्तक्षेप की एसोसिएट एडिटर डॉ. कविता अरोरा की श्रद्धांजलि

तुम कह रहे थे करिश्मे होते हैं,

मैं जानती थी नहीं होते,

अब खुदा बड़ा नहीं रहा,

बीमारियाँ बड़ी हैं खुदा से,

चिल्ले-विल्ले, अगरबत्तियाँ,

मज़ारों पर सजदे

दुआओं का पढ़-पढ़ कर फूंकना,

आयतों से दम किया हुआ पानी,

सब तसल्लियों ने गढ़ी हैं

झूठी कहानी।

इल्म ईजाद ने हजारों डॉक्टर जने,

मगर हर शख़्स परेशां

इलाज हैं किसके कने ?

हर शहर के नुक्कड़ों पर बचा लेने के दावे तो बड़े हैं

चमकदार रौशनियों वाले ऊँचे मंहगे अस्पताल भी खड़े हैं

मगर उस स्याह मुँह वाली पर किसी का रौब कहाँ हैं।

इन मशीनों पाइपों, सिरिंजों का उसे ख़ौफ़ कहाँ हैं।

वो तो इन सब पर चढ़ कर रहती हैं।

कमबख़्त हैं बहुत

कौन,

कितना ज़रूरी है,

कब सोचती है,

आ जाये जिस पर

तो बस

गरदन दबोचती है।

और फिर इलाज का फ़रेब

तोलता हैं सभी को जेब से,

नोटों की करारी खेप से

हौले-हौले

नसों में इक व्यापार इंजेक्ट किया जाता है,

कसमसाहटें सौ-सौ लिये

ता उम्र

इक परिवार छटपटाता है।

(ओ बेहतरीन क़लमकार, सच में दिल तोड़ गये ....आप)