इरफान इंजीनियर
हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों का उन समुदायों-जिन्हें वे ‘विदेशी’ बताते हैं-को कलंकित करने का तरीका बहुत दिलचस्प है। व्ही.डी. सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दुत्व’ में लिखा है ‘‘लोगों को एक राष्ट्र के रूप में एकजुट करने और राष्ट्रों को राज्य का स्वरूप देने में कोई भी चीज इतनी कारगर नहीं है जितनी कि सबका शत्रु एक ही होना। घृणा बांटती भी है और एक भी करती है।’’ सावरकर ने मुसलमानों और ईसाईयों के रूप में उस शत्रु को ढूंढ निकाला। ये वे समुदाय थे, जिनके पवित्रतम तीर्थस्थल सिंधुस्तान अर्थात सिंधु नदी से अरब सागर तक में फैले भूभाग, से बाहर थे। हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों ने इस शत्रु का निर्माण करने में बहुत मेहनत की है। यह अलग बात है कि यह शत्रु काल्पनिक अधिक है वास्तविक कम, पौराणिक अधिक है ऐतिहासिक कम। पहले उनके निशाने पर केवल मुसलमान थे परंतु सन् 1998 में एनडीए के सत्ता में आने के बाद से, उन्होंने ईसाईयों को भी हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन करवाने के नाम पर कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया।

हिन्दू संगठन बड़े सुनियोजित ढंग से उन मुद्दों को चुनते और प्रचारित करते हैं, जिनका इस्तेमाल ‘विदेशी समुदायों’ पर कीचड़ उछालने के लिए किया जा सकता है। पहले उनके शीर्ष स्तर के नेता, चुनिंदा लोगों को प्रशिक्षित करते हैं। फिर ये प्रशिक्षित प्रचारक, उन मुद्दों को स्थानीय स्तर पर ले जाते हैं। वे मुद्दों को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करते हैं और कभी-कभी नये मुद्दों का आविष्कार भी कर लेते हैं। इन मुद्दों पर वे तब तक लगातार बोलते रहते हैं जब तक कि कम से कम कुछ लोग, खतरे को वास्तविक और गंभीर न मानने लगें और संबंधित समुदाय के प्रति नकारात्मक रवैया न अपना लें। जब ऐसे लोगों की संख्या पर्याप्त हो जाती है तब उन्हें काल्पनिक ‘शत्रु’ पर हमला करने के लिए उकसाया जाता है।

सबसे पहले कुछ ‘कट्टरपंथी तत्व’ किसी ऐसे मुद्दे को उठाते हैं, जिसके जरिये ‘शत्रु’ समुदाय को बदनाम किया जा सके। अगर उस मुद्दे पर विपरीत प्रतिक्रिया होती है और मीडिया में उसकी निंदा की जाती है तो उसे वहीं छोड़ दिया जाता है। इसका उदाहरण है पब जाने वाली महिलाओं पर हमले या वैलेन्टाइन डे मनाने का विरोध। परंतु यदि किसी मुद्दे या हिंसक हमले पर जनविरोध नहीं होता, उसकी निंदा नहीं की जाती, तब कोई स्थापित हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन उस मुद्दे को उठाना शुरू कर देता है। उससे संबंधित नया साहित्य तैयार किया जाता है और काल्पनिक तथ्यों के सहारे उसे अधिक मसालेदार बनाया जाता है। फिर उस मुद्दे पर व्यापक अभियान छेड़ दिया जाता है ताकि ‘शत्रु समुदाय’ के प्रति अविश्वास, घृणा और गुस्से का वातावरण निर्मित किया जा सके। अंत में, उस मुद्दे को भाजपा, राज्य व शासन के स्तर पर उठाती है। हिंदू राष्ट्रवादी संगठन, दरअसल, किसी बास्केटबाल या फुटबाल टीम की तरह काम करते हैं। खिलाड़ी (संगठन), बॉल (मुद्दे) को ड्रिबिल करते हुए फारवर्ड खिलाड़ी तक ले जाते हैं ताकि वह गोल कर सके। बाबरी मस्जिद का मुद्दा भी इन विभिन्न चरणों से गुजरा। सन् 1949 में वहां राम की मूर्तियां स्थापित की गईं और मस्जिद के दरवाजे, मुसलमानों के लिए बंद कर दिए गए। केवल एक पुजारी को अंदर जाकर स्थापित की गई मूर्तियों की पूजा करने की इजाजत दी गई। फिर, विहिप ने ‘रामजन्मभूमि मंदिर’ को आम लोगों के लिए खोले जाने की मांग को लेकर सन् 1986 में अभियान शुरू किया। यह अभियान इतना सफल हुआ कि आज बड़ी संख्या में लोग यह जानते हैं कि भगवान राम का जन्म ठीक-ठीक किस स्थान पर हुआ था भले ही उन्हें यह नहीं मालूम कि राम कब-यहां तक कि किस सदी में-जन्मे थे। मंदिर मुद्दे के आंदोलन ने इस ‘तथ्य’ को स्थापित किया कि मुसलमान बादशाहों ने मस्जिदों का निर्माण करने के लिए मंदिरों को ढहाया। ऐसा दावा किया गया कि देश में कम से कम ऐसी 3000 मस्जिदें हैं जिन्हें मंदिरों के मलबे पर खड़ा किया गया है। इन मस्जिदों की सूची कभी सामने नहीं आई। इसका कारण स्पष्ट था। सूची न होने के कारण कभी भी किसी भी मस्जिद को मंदिर की जगह बनाया गया होना बताना आसान था।

उसी तरह, गुजरात के सन् 2002 के मुस्लिम-विरोधी दंगे भी अचानक नहीं हुए थे। यह कहना कि ये दंगे ट्रेन आगजनी की क्रिया की प्रतिक्रिया थे, असलियत पर पर्दा डालना है। दरअसल, मुसलमानों और ईसाईयों को अलग-अलग बहानों से, हिन्दुओं का शत्रु बताने का क्रम तब से जारी था जब से भाजपा वहां पहले चिमनभाई पटेल के गुजरात जनता दल के साथ मिलकर और बाद में अपने बलबूते पर सरकार चला रही थी।

हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों का ‘गौहत्या विरोधी अभियान’ भी इसी तर्ज पर चलता है। किसी भी ऐसे वाहन को जिसमें मवेशी ले जाए जा रहे हों और जिसका मालिक या ड्रायवर मुसलमान हो, को रोक लिया जाता है। वाहन के मुसलमान ड्रायवर या मालिक की पिटाई की जाती है और मीडिया में यह प्रचार किया जाता है कि मुसलमान, गैरकानूनी ढंग से, गायों को काटने के लिए ले जा रहे थे। यह तब भी होता है जब मवेशी गायें हों ही ना या जब गायों को किसी ऐसे व्यक्ति के पास ले जाया जा रहा हो, जिसने उन्हें वैध तरीके से पालने के लिए खरीदा हो। यह सब ऐसे स्थानों पर किया जाता है जहां हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों को राजनैतिक संरक्षण उपलब्ध हो या कम से कम जहां के पुलिस अधिकारी और मीडिया उनके साथ सहानुभूति रखते हों। इस कड़े परिश्रम के बदले, हिंदू राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं को ‘जब्त’ किए गए मवेशी इनाम के रूप में मिल जाते हैं।

इसी तरह के अभियानों के जरिये यह धारणा लोगों के मन में बैठा दी गई है कि मुसलमानों की कई बीवियां होती हैं, वे ढेर सारे बच्चे पैदा करते हैं और जल्दी ही उनकी आबादी, हिन्दुओं से ज्यादा हो जायेगी। यह भी कहा जाता है कि वे देश के प्रति वफादार नहीं हैं और उनकी वफादारी केवल उनके धार्मिक नेताओं और पाकिस्तान के प्रति है। यह भी आरोप लगाया जाता है कि वे आक्रामक और हिंसक समाजविरोधी तत्व हैं जो अपनी ही महिलाओं का शोषण करते हैं और जिनके नैतिक और सामाजिक मानदंड एकदम अलग हैं।

ईसाईयों को इस आधार पर बदनाम किया जाता है कि उनका पवित्रतम तीर्थस्थल भारत के बाहर, जेरूसलेम में है और वे हिंदुओं को तेजी से ईसाई बना रहे हैं। किसी व्यक्ति के अपनी इच्छा से ईसाई बनने को भी मुद्दा बना लिया जाता है। इस मसले को लेकर हिंसा और अतिश्योक्तिपूर्ण दावों के आधार पर कई जिलों में अभियान चलाए गए। जब भाजपा ने राज्यों में और एनडीए ने केन्द्र में सत्ता संभाली, तब ईसाईयों के खिलाफ हिंसा और तेज कर दी गई। गुजरात के डांग और मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में ईसाईयों पर हमले की घटनाओं में नाटकीय वृद्धि हुई। और फिर, प्रधानमंत्री ने धर्मपरिवर्तन पर राष्ट्रीय बहस का आव्हान किया।

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Antisocial elements, "Hate Jihad" By Hindutva organizations

Irfan Engineer, writer is Director, Centre for Study of Society and Secularism.