आदिवासी मोतीलाल बास्के की मौत पर थम नहीं पा रहा जनाक्रोश
आदिवासी मोतीलाल बास्के की मौत पर थम नहीं पा रहा जनाक्रोश
गिरिडीह ढोलकट्टा में पुलिस की गोली का शिकार मोतीलाल बास्के की मौत का लगभग तीन माह गुजर जाने के बाद भी आम जनता का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहाहै। वहीं राज्य के कई राजनीतिक दलों सहित सामाजिक व मजदूर संगठनों द्वारा मोतीलाल बास्के की मौत की न्यायायिक जांच की मांग को लेकर लगातार जनांदोलन चलाया जा रहा है। मामले पर ग्रामीण क्षेत्रों में रोज व रोज बैटकें हो रहीं हैं।
राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन तथा हेमंत सोरेन द्वारा क्षेत्र का दौरा करके उक्त घटना की केवल निंदा ही नहीं की गई बल्कि घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग भी की गई है। कई मानवाधिकार संगठनों की जांच टीम द्वारा भी क्षेत्र का दौरा किया गया और अपनी जांच रिपोर्ट में पुलिस को साफ तौर पर दोषी पाया गया है।
इसी कड़ी में पिछले 13 सितंबर को एक विशाल जनसभा क्षेत्र के पीरटांड़ सिद्धु—कांहु हाई स्कूल के प्रांगण में की गई, जिसमें राज्य के सभी दलों के आला नेताओं ने शिरकत की।
दमन विरोधी मोर्चा द्वारा आयोजित जनसभा में झामुमो के मांडु विधायक जय प्रकाश भाई पटेल, महेशपुर विधायक स्टीफन मरांडी, राजमहल सांसद विजय हांसदा, पूर्व मंत्री मथुरा महतो, जेवीएम के केंद्रीय सचिव सुरेश साव, महासचिव रोमेश राही, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी व उनके भाई नुनुलाल मरांडी, मासस के निरसा विधायक अरूप चटर्जी, आजसू के रविलाल किस्कू, भाकपा माले के पूरन महतो, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के दामोदर तुरी मजदूर संगठन समिति के बच्चा सिंह एवं मरांग बुरू सांवता सुसार बैसी सहित क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोगों ने भाग लिया।
लगभग 10 हजार की भीड़ को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री एवं जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने स्पष्ट कहा कि पुलिस की गोली का शिकार मृतक मातीलाल बास्के के नक्सली होने का काई भी प्रमाण नहीं है जबकि उसका डोली मजदूर होने का पुख्ता प्रमाण है।
उन्होंने कहा कि राज्य में आदिवासी—मूलवासी अब सुरक्षित नहीं हैं। नक्सल के नाम पर उनकी हत्याएं हो रहीं हैं। राज्य में अराजकता का माहौल बना हंआ है। पुलिसिया आतंक से आदिवासी भयभीत हैं। 2003 में भी ढोलकट्टा गांव के छोटैलाल किस्कू को पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा था सौभाग्य से वह बच गया मगर आज भी उसका मुंह टेड़ा है।
जेवीएम सुप्रीमो ने कहा कि अगर निर्धारित समय तक मोतीलाल की हत्या की निष्पक्ष जांच नहीं हुई तो हम जांच की मांग को लेकर राजभवन के सामने अनिश्चितकालीन धरना देने को बाध्य हो जाएंगे। मृतक की पत्नी पार्वती देवी ने भी संताली में बोलते हुए कहा कि हमें न्याय नहीं मिला तो हम बच्चों सहित राज्यपाल के आवास पर धरना देंगे।
सभा को संबोधित करते हुए निरसा विधायक अरूप चटर्जी ने मंच से ही कि मृतक मोतीलाल के परिवार को अपना एक माह का वेतन देने की घोषणा की।
झामुमो सांसद विजय हांसदा ने साफ कहा कि अगर मोतीलाल बास्के नक्सली था ऐसा अगर पुलिस मानती है तो पुलिस यह साफ समझ ले कि हमलोग मोतीलाल के परिवार को न्याय दिलाने को इक्कठा हुए हैं इसका मतलब हमलोग भी नक्सली हैं तो पुलिस हमलोगों पर भी नक्सली होने का एफआईआर दर्ज करे। झामुमो सांसद ने क्षेत्र के लोगां को संबोधित करते हुए कहा कि गांवों में संताल समाज की सामाजिक प्रथा लागू हो और कोई भी मांझी हड़ाम और जोग मांझी के बिना आदेश के गांव प्रवेश करे तो उसे मार भगाओ । उन्होने भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह सरकार आदिवासियों को डराकर उनकी जमीन दखल करके पूंजीपतियों को देना चाहती है।
सभी वक्ताओं ने पुलिस जुल्म के खिलाफ जनता को एकजुट होने का अह्वान किया।
बताते चले कि मोतीलाल बास्के पुलिस गोली से हुई मौत से उपजे जनाक्रोश का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 9 जून को पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मारा गया मोतीलाल बास्के की जब पहचान हुई तो 11 जून को ‘मजदूर संगठन समिति’ और ‘मारांग बुरू सांवता सुसार बैसी’ ने एक बैठक कर मोतीलाल को अपने संगठन का सदस्य बताते हुए विरोध दर्ज किया तथा 14 जून महापंचायत बुलाने की घोषणा की गई। 14 जून के महापंचायत में मजदूर संगठन समिति, मरांग बुरू सांवता सुसार बैसी, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन, पीयूसीएल, भाकपा (माले), झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा एंव क्षेत्र के कई पंचायत प्रतिनिधियों ने भाग लिया। महापंचायत में लगभग पांच हजार की भीड़ उमड़ पड़ी। महापंचायत में ही सभी संगठनों एंव राजनीतिक दलों का एक मोर्चा ‘दमन विरोधी मोर्चा ’बनाया गया। उसी दिन मोतीलाल की पत्नी पार्वती देवी ने पुलिस को अपने पति की मौत का जिम्मेवार मानते हुए पुलिस पर मधुबन थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसे पुलिस ने ठंडे बस्ते में डाल रखा है। महापंचायत के बाद पुलिस के विरोध में एक रैली निकाली गई। विरोध में पुनः 17 जून को मधुबन बंद रहा। 21 जून गिरिडीह डीसी कार्यालय के समक्ष ‘दमन विरोधी मोर्चा’ द्वारा धरना देकर मोतीलाल की मौत के जिम्मेवार पुलिसकर्मियों पर कानूनी कार्यवाई की मांग की गई।
एक जुलाई को मानवाधिकार संगठन से संबंधित सी.डी.आर.ओ (काओर्डिनेशन आफ डेमोक्रेटिक राईट आर्गनाइजेशन) की जांच टीम ढोलकट्टा गांव गयी। चार-पांच घंटे की जांच के बाद सी.डी.आर.ओ. की टीम यह निष्कर्ष पर पहुंची कि मोतीलाल बास्के की मौत पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में हुई है। पुलिस अपनी गलती छुपाने के लिए मजदूर मोतीलाल को नक्सली बता रही थी।
टीम के साथ क्षेत्र के पंचायत प्रतिनिधि भी थे।
इसके पूर्व 15 जून को मोतीलाल की पत्नी पूर्व मुख्यमंत्री एंव प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सारेन से भेंट की।
हेमंत सोरेन ने मामले की उच्चस्तरीय जांच, मृतक की पत्नी को नौकरी व मुआवजा की मांग सरकार से की। उसके बाद ढोलकट्टा गांव जाकर पूर्व मुख्यमंत्री तथा झामुमो सुप्रीमों शिबू सोरेन 21 जून को मृतक की पत्नी से भेंट की तथा मामले को संसद के सदन में उठाने का आश्वासन दिया। पूर्व मुख्यमंत्री झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने न्यायायिक जांच की मांग की। वहीं सरकार का सहयोगी दल आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो ने भी मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की। 2 जुलाई को गिरिडीह जिले में मशाल जुलूस निकाला गया तथा 3 जुलाई को पूरा गिरिडीह बंद रहा।
मामले पर मसंस के महासचिव बच्चा सिंह ने बताया कि ‘दविमो द्वारा 5 जुलाई को एक बैठक करके यह फैसला लिया गया कि 10 जुलाई को विधानसभा मार्च किया गया और लगातार जनआंदोलन जारी है। उल्लेखनीय है कि इन सारे घटनाक्रमों के लगातार हलचल के बावजूद पुलिस प्रशासन कुंभकर्णी नींद सोया है। उनके द्वारा न तो मोतीलाल की मौत के कारणों को लेकर कोई जांच की जा रही है और न ही जनता द्वारा किये जा रहे सवालों पर कोई प्रतिवाद हो रहा है। जो पुलिस पर हो रहे संदेह को मजबूत आधार देने को काफी है कि मोतीलाल की हत्या जान बुझ कर की गई है। जिसका कारण मात्र यह है कि पारसनाथ की तलहटी में बसे आदिवासी लोग प्रशसन व शासन तंत्र की किसी जनविरोधी कार्यवार्ही का विरोध न कर सके।
घटना में शासनतंत्र व प्रशासनिक संतिप्तता इस बात से भी मजबूत होती दिखती दिखती है कि पारसनाथ गिरिडीह संसदीय क्षेत्र तथा विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है और दोनों ही जनप्रतिनिधि रवीन्द्र कुमार पाण्डेय व निर्भय शाहाबादी भाजपा के सांसद व विधायक है, दोनों ही जनप्रतिनिधि ढोलकट्टा की घटना के एक माह बीत जाने और इतने जन प्रतिरोध के बाद भी न तो घटनास्थल का दौरा किया, न ही मृतक मोतीलाल के परिवार से मिला, न ही उक्त घटना पर कोई बयान ही जारी किया है। दूसरी तरफ पुलिस मुख्यालय झारखण्ड द्वारा 16 जून को ही सीआईडी जांच का आदेश दे दिया गया है, बावजूद आजतक ऐसा कोई भी दल न तो गांव गया है और न ही पीड़ित या गांव के लोगों से मिला है। पिछले तीन महिने से लगातार जनआदोलन जारी है।


