कट्टरपंथी हिंदू, चाहे उनका उद्देश्य कुछ भी हो, भारतीय राज्य के टुकड़े कर देंगे – डॉ. राम मनोहर लोहिया
कट्टरपंथी हिंदू, चाहे उनका उद्देश्य कुछ भी हो, भारतीय राज्य के टुकड़े कर देंगे – डॉ. राम मनोहर लोहिया
भारत के शासक वर्ग ने कट्टरता को मारने के बजाय भारत के लोगों और गांधी को मारने का काम चुना
कोई राष्ट्र भौगोलिक रूप से एक रहते हुए भी अंदरखाने टूटा हुआ हो सकता है। आज का भारत उसकी एक ज्वलंत मिसाल है। जाति और लिंग जैसे परंपरागत कटघरों एवं गरीब और अमीर भारत के विभाजन के अलावा उसमें और भी कई टूटें सिर उठाए देखी जा सकती हैं। इन टूटों को अक्सर पुरातनता और गरीबी के मत्थे मढ़ दिया जाता है। लेकिन आधुनिकता और अमीरी का अमृत छकने वाले मध्यवर्ग में भी राष्ट्रीय एकता के प्रति सरोकार दिखावे भर का है। वह खुद निम्न, मध्य और उच्च के सोपानों में विभाजित प्रतिस्पर्धी गुटों का अखाड़ा बना हुआ है। कट्टरता की ऐसी करामात है कि भारत में बुद्धिजीवी और कलाकार तक गिरोहबंदी चलाते हैं। कहने का आशय यह है कि भारतीय राष्ट्र को विखंडित करने वाली कट्टरता का फैलाव केवल संघ संप्रदाय तक सीमित नहीं है।
1950 में लोहिया लिखते हैं,
‘‘आज हिंदू धर्म में उदारता और कट्टरता की लड़ाई ने हिंदू-मुस्लिम झगड़े का ऊपरी रूप ले लिया है लेकिन हर ऐसा हिंदू जो अपने धर्म और देश के इतिहास से परिचित है, उन झगड़ों की ओर भी उतना ही ध्यान देगा जो पांच हजार साल से भी अधिक समय से चल रहे हैं और अभी तक हल नहीं हुए हैं। कोई हिंदू मुसलमान के प्रति सहिष्णु नहीं हो सकता जब तक कि वह उसके साथ ही वर्ण और संपत्ति के विरुद्ध और स्त्रियों के हक में काम न करे। उदार और कट्टर हिंदू धर्म की लड़ाई अपनी सबसे उलझी हुई स्थिति में पहुंच गई है और संभव है कि उसका अंत भी नजदीक ही हो। कट्टरपंथी हिंदू अगर सफल हुए तो चाहे उनका उद्देश्य कुछ भी हो भारतीय राज्य के टुकड़े कर देंगे, न सिर्फ हिंदू-मुस्लिम दृष्टि से बल्कि वर्णों और प्रांतों की दृष्टि से भी। केवल उदार हिंदू ही राज्य को कायम कर सकते हैं।’’
वे आगाह करते हैं,
‘‘अतः पांच हजार वर्षों से अधिक की लड़ाई अब इस स्थिति में आ गई है कि एक राजनीतिक समुदाय और राज्य के रूप में हिंदुस्तान के लोगों की हस्ती इस बात पर निर्भर है कि हिंदू धर्म में उदारता की कट्टरता पर जीत हो।’’
लोहिया ने इस निबंध में एक जगह यह भी कहा है कि देश में एकता लाने की भारत के लोगों और महात्मा गांधी की आखिरी कोशिश की आंशिक सफलता को पांच हजार सालों की कट्टरपंथी धाराएं मिल कर असफल बनाने का जोर लगा रही हैं। उनके विचार में ‘‘अगर इस बार कट्टरता की हार हुई, तो वह फिर नहीं उठेगी।’’ लेकिन भारत के शासक वर्ग ने कट्टरता को मारने के बजाय भारत के लोगों और गांधी को मारने का काम चुना जो आज भी जारी है। उसने ऊपर से जो भी फू-फां की हो, जैसे कि समाजवाद या रोशनी बुझ गई आदि, वह कट्टरता के साथ जुट कर खड़ा हुआ। शासक वर्ग का पिछलग्गू, जो अब उसका हिस्सा ही है, आधुनिक बुद्धिजीवी - वह पूंजीवादी हो या साम्यवादी या तटस्थ? - सादगी और शांति के विचार की भ्रूण-हत्या करने के लिए आमादा रहता है। उसी तरह जिस तरह भारत का पढ़ा-लिखा खाता-पीता मध्यवर्ग बालिकाओं की भ्रूण-हत्या करता है। गांधी को मारने की इस परिघटना की विस्तृत पड़ताल हमने अपनी आने वाली पुस्तक ‘हम गांधी को क्यों मारते हैं?’ में करने की कोशिश की हैं।


