कांग्रेस 70 साल में न कर पाई मोदीजी ने 5 साल में कर दिया, पर क्या ? अर्थव्यवस्था का सत्यानाश
कांग्रेस 70 साल में न कर पाई मोदीजी ने 5 साल में कर दिया, पर क्या ? अर्थव्यवस्था का सत्यानाश
नोटबंदी के मूर्खतापूर्ण फैसले का बुरा परिणाम अब सामने आ रहा है… अर्थव्यवस्था सब से खराब दौर में 20 साल लगेंगे संभलने में
नोट बंदी के मूर्खतापूर्ण फैसले के बाद जीएसटी को जिस अनाड़ीपन के साथ लागू किया गया था उसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का जो हाल होना ही था, वह आज हमारे सामने है। याद होगा कि पूर्व प्रधान मंत्री और दुनिया के कुछ जाने माने अर्थशास्त्रियों में से एक डॉ मनमोहन सिंह ने सरकार के इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए इसे पहाड़ जैसी गलती क़ानूनी लूट की संज्ञा देते हुए कहा था कि इससे हमारी जीडीपी में 2 % सालाना की गिरावट आएगी और इससे अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा उसका प्रभाव बीस वर्षों तक महसूस किया जाएगा।
मोदी सरकार के उस समय के मंत्रीगण बीजेपी के बड़बोले प्रवक्ता और गोदी मीडिया चाहे जितने दावे करती रहे, झूठ और प्रपंच का चाहे जैसा जाल बुने, लेकिन अर्थव्यवस्था की सच्चाई सामने आ चुकी है। हमारी जीडीपी 5 % की न्यूनतम स्तर पर पहुँच गयी। यह दर तो जीडीपी की गणना की नयी व्यवस्था के हिसाब से है, जो मोदी सरकार बनने के बाद लागू की गयी थी, पुरानी गणना के हिसाब तो यह दर 3 % के आस पास ही है।
बेरोज़गारी पचास वर्षों में सब से अधिक स्तर पर है, सारे कारोबार चौपट पड़े हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, अर्थव्यवस्था के जितने भी आंकड़े और जितने भी पॉइंट्स हो सकते हैं ,उन्हें देखने से एक भयावह स्थिति दिखाई दे रही है और नीरो चैन की बाँसुरी बजा रहा है।
ऑटो, टेक्सटाइल, निर्माण, मैन्युफैक्चरिंग आदि सभी सेक्टर मंदी की ज़बरदस्त मार झेल रहे हैं। इन सेक्टरों में काम करने वाले लाखों लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है। विगत दिनों झारखंड में बीजेपी के एक नेता के नवजवान लड़के ने छंटनी के डर से आत्म हत्या कर ली थी। रेलवे भर्ती का इम्तिहान देने जा रहे चार लड़कों ने यह सोच के ट्रेन से कट कर जान दे दी थी कि नौकरी मिलना ही नहीं तो इम्तिहान क्यों देंI
भारतीय रुपये के अवमूलयन का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि अब बंगला देशी टका भी भारतीय रुपया से मंहगा हो गया है।
अर्थव्यवस्था की तबाही का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार ने रिज़र्व बैंक के रिज़र्व फण्ड से एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपया उसकी गर्दन दबा के ले लिया है। ध्यान रहे कि रिज़र्व बैंक के सभी पूर्व गवर्नरों ने रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता पर हमले के खिलाफ आगाही दे रखी थी। रघुराम राजन ने टर्म समाप्त होते ही किनारा कर लिया था। उर्जित पटेल, जिनको मोदी जी का ख़ास आदमी समझा जाता था, उन्होंने पैसा देने से इंकार करते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। बैंक के डिप्टी गवर्नर ने भी इस्तीफ़ा दे दिया तो मोदी जी ने अर्थशास्त्र के ककहरा से भी ना वाक़िफ़ शक्ति कांतिदास को बैंक का गवर्नर बना दिया। श्री दास इतिहास के छात्र रहे हैं अर्थशास्त्र से उनका कोई विशेष संबंध कभी नहीं रहा।
कहने को तो इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क पर बिमल जालान समिति की सिफारिश (Recommendation of Bimal Jalan Committee on Economic Capital Framework) पर सरकार ने रिज़र्व बैंक से उक्त रक़म ली है लेकिन दुनिया के जितने अर्थशास्त्री हैं, उन सबका एक मत है कि सरकार को केंद्रीय बैंकों के काम काज में दखल नहीं देना चाहिए और उसकी स्वायत्तता हर हाल में बनाये रखी जानी चाहिये।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के डायरेक्टर गेरी राइस ने कहा है कि सभी देशों की सरकारें केंद्रीय बैंकों के काम काज में दखल न दें। यही आदर्श स्थिति होनी चाहिए। सरकारें अपने लोकलुभावनी कामों के लिए रिज़र्व बैंक से मनमानी काम कराएं तो इसका बहुत बुरा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।
सत्तर के दशक में यूगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने देश के केंद्रीय बैंक पर दबाव डाला कि वह और नोट छापे लेकिन बैंक के गवर्नर जोसफ मबोरो ने उन से कहा कि नोट छापने से आर्थिक हालात और खराब होंगे, इस लिए सरकार केंद्रीय बैंक के काम काज में दखल न दे। तानाशाह को यह इंकार कहाँ पसंद आता और उस ने जोसफ मबोरो की ह्त्या करवा दी नए। गवर्नर ने तानाशाह के आदेशानुसार नए नोट खूब छापे, लेकिन इन नोटों की डॉलर और अन्य करंसी नोटों के मुक़ाबले कोई हैसियत नहीं बची। परिणामस्वरूप यूगांडा की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी। अगर उस समय उसे सऊदी अरब और अन्य अरब देशों से सहायता ना मिलती तो युगांडा भुखमरी का शिकार हो जाता, लेकिन दान के सहारे देश कब तक चलता। ईदी अमीन ने एशिया के लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। नतीजतन पीढ़ियों से वहाँ रह रहे भारतीयों और अन्य देशों के लोगों को देश छोड़ना पड़ा था।
इसी प्रकार अर्जेंटाइना की सरकार ने वहां के केंद्रीय बैंक पर दबाव डाला कि वह 6. 6 बिलियन डॉलर उसे दे। बैंक के गवर्नर ने इंकार करते हुए इस्तीफ़ा दे दिया। बाद में सरकार ने यह रक़म हासिल कर ली, लेकिन कुछ महीनों बाद इसके उलटे प्रभाव सामने आने लगे और अर्जेंटाइना में आर्थिक एमरजेंसी लगानी पड़ी थी।
दरअसल किसी केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता की स्थिति और उसकी बैलेंस शीट देख कर ही विदेशी निवेशक और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं उस देश में निवेश करने और क़र्ज़ देने का फैसला करती हैं। रिज़र्व बैंक से इतनी बड़ी रक़म निकाल लेने के बाद उसकी बैलेंस शीट की क्या हालत होगी यह समझा जा सकता है ।
भारत ने पिछले साल देश का लगभग तीन क्विंटल सोना गिरवी रख दिया था। सोना गिरवी और रिज़र्व बैंक की यह बैलेंस शीट विदेशी निवेशक क्या देख कर निवेश करेंगे और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं क्या देख कर क़र्ज़ देंगी यह सोचने का विषय है। लेकिन सरकार अपने में ही मस्त हैं उसके लिए पाकिस्तान, कश्मीर, मुसलमान, श्मशान, क़ब्रिस्तान आदि-आदि वोट दिलाने की मशीने हैं ही। अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी, चौपट कारोबार, आत्महत्या करते किसान जाएँ चूल्हे भाड़ में, अडानी-अम्बानी खुश रहें यही बहुत है।
उबैद उल्लाह नासिर


