किसान आंदोलन का नौ महीने का शानदार इतिहास
किसान आंदोलन का नौ महीने का शानदार इतिहास
किसान आन्दोलन की ऐतिहासिक जन कार्यवाहियां
किसान आंदोलन के नौ माह पर अशोक ढवले की टिप्पणी
दिल्ली के चारों तरफ सीमाओं पर किसान पिछले नौ महीनों से बैठे है और किसान विरोधी तीन काले कानूनों का विरोध कर रहे है। हाल फ़िलहाल में किसानों द्वार कई बड़ी राष्ट्रव्यापी कार्यवाहियां हुई, जिन में हज़ारों किसानों ने भागेदारी की। किसानों द्वारा इस दौरान गुज़ारे महत्वपूर्ण दिवसों को भी मनाया गया।
26 मई की ऐतिहासिक देशव्यापी कार्रवाई के जरिए लाखों लोगों ने की मोदी निजाम की लानत-मलानत
26 मई, 2021 के दिन को इतिहास में हमेशा एक ऐसे दिन के रूप में याद किया जाएगा, जिस दिन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के झंडे तले दिल्ली के बॉर्डरों पर और पूरे देश में चल रहे किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष के प्रति मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा-आर एस एस सरकार के क्रूर तथा हृदयहीन रवैए की भर्त्सना (Condemnation of the cruel and heartless attitude of the BJP-RSS government led by Modi towards the historic struggle of farmers.) करने के लिए मनाए गए काला झंडा दिवस कार्रवाई में देश भर में लाखों लोगों ने भागीदारी की।
आजादी के बाद की भारत की सर्वाधिक विनाशकारी सरकार साबित हुई मोदी सरकार
26 मई को इस अभूतपूर्व किसान संघर्ष को छः महीने पूरे हुए थे। छः महीने पहले इसी दिन-26 नवंबर को मजदूर वर्ग ने शानदार अखिल भारतीय हड़ताल की थी और इसी दिन मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा-आर एस एस सरकार भी अपने सात वर्ष पूरे कर रही थी, जो आजादी के बाद की भारत की सबसे विनाशकारी सरकार साबित हुयी है।
गत 21 मई को एसकेएम ने प्रधानमंत्री को एक कड़ा पत्र भेजा जिसमें उसने मांग की कि सरकार किसानों के साथ बातचीत फिर से शुरू करे। इस पत्र में एसकेएम ने चेतावनी दी थी कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो संघर्ष को और तेज किया जाएगा।
काला झंडा दिवस मनाने और मोदी सरकार के पुतले जलाने के आह्वान का पालन करते हुए देश भर में दसियों हजार स्थानों पर इन कार्रवाइयों का आयोजन किया गया और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और गुजरात से लेकर गुवाहाटी तक और इससे आगे भी लाखों लाख परिवारों ने काला झंडा दिवस मनाया।
देश के हर राज्य में गांवों और बस्तियों में इन कार्रवाइयों के आयोजन की हजारों-हजार तस्वीरें तथा वीडियो एसकेएम, एआइकेएस सीसी, एआइकेएस तथा अन्य किसान तथा मजदूर संगठनों की सोशल मीडिया साइटों पर सुबह से ही आने लगे थे।
पुतला दहन के वीडियोज में खासतौर से लोगों का रोष सामने आ रहा था। लाखों लाख घरों, दुकानों, वाहनों, ट्रैक्टरों तथा ट्रॉलियों पर विरोधस्वरूप काले झंडे फहराए गए। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर दिन भर इस आंदोलन के समर्थन में अनेकानेक हैशटैग ट्रैंड होते रहे।
कोविड महामारी की दूसरी घातक लहर के बावजूद ऐसी जबर्दस्त देशव्यापी कार्रवाई हुयी, जो अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है। महामारी के मद्देनजर खुद आयोजकों ने बड़ी केंद्रीकृत जनलामबंदियों के खिलाफ आगाही कर दी थी। आयोजकों ने आह्वान किया था कि लोग अपने आपको गांवों तथा बस्तियों तक ही सीमित रखें। लोगों ने भी सब जगह कोविड के तमाम प्रोटोकोलों का पालन करने का पूरा ख्याल रखा।
एसकेएम ने काला झंडा दिवस मनाने का आह्वान किया था, जिसे केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, 12 प्रमुख विपक्षी राजनीतिक पार्टियों और अनेकानेक वर्गीय संगठनों तथा जन संगठनों ने अपना समर्थन दिया था। इनमें अखिल भारतीय किसान सभा (एआइकेएस), सीटू, अखिल भारतीय खेतमजदूर यूनियन (ए आइ ए डब्लू यू), एडवा, डीवाइएफआइ तथा एसएफआइ भी शामिल थे।
किसानों, खेत मजदूरों, मजदूरों, मध्यवर्गीय कर्मचारियों, महिलाओं, छात्रों, युवाओं, व्यापारियों, प्रोफेशनलों, बुद्धिजीवियों, सांस्कृतिककर्मियों तथा पत्रकारों ने भारी उत्साह तथा दृढ़ निश्चय के साथ इन विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया। इन विरोध प्रदर्शनों में मोदी निजाम के खिलाफ जनता का जायज रोष जबर्दस्त ढ़ंग से सामने आ रहा था।
काला झंडा दिवस दिल्ली के बॉर्डरों-सिंधू, टीकरी, गाजीपुर, शाहजहांपुर तथा पलवल-पर टेंटों तथा ट्रॉलियों पर काले झंडे फहराकर मनाया गया। इस मौके पर मोदी सरकार के पुतले जलाए गए। विरोध प्रदर्शन स्थलों पर किसानों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है और हजारों की तादाद में और लोग शामिल हो गए हैं।
दिल्ली के बॉर्डरों पर लाखों किसानों के दृढ़ निश्चय का सार्वभौम रूप में अभिनंदन हुआ। इस सुदीर्घ विशाल संघर्ष ने एक विश्व रिकॉर्ड बनाया है। किसानों ने कड़कड़ाती ठंड, बारिश और चिलचिलाती गर्मी के बावजूद छः माह लंबा संघर्ष चलाया है। यह संघर्ष चलाते हुए उन्होंने भारी दमन सहा है और भाजपा-आर एस एस तथा उनके दलालों के कुत्सा प्रचार को भी झेला है।
इस 26 मई को संयोग से बुद्ध पूर्णिमा भी थी। सच्चाई, शांति तथा अहिंसा इस समय देश में जारी किसान आंदोलन के भी प्रमुख मूल्य और सिद्धांत हैं। पूरे देश के साथ ही साथ दिल्ली बॉर्डरों पर भी समुचित ढंग से बुद्ध पूर्णिमा मनायी गयी।
नयी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय किसान सभा-अखिल भारतीय खेतमजदूर यूनियन तथा एस एफ आइ के केंद्रीय कार्यालयों में भी काले झंडे फहराए गए और मोदी सरकार के पुतले जलाए गए।
26 जून को देशभर ने मनाया ‘खेती बचाओ-लोकतंत्र बचाओ’ दिवस
26 जून को पूरे देश में हजारों स्थानों पर लाखों किसानों तथा मजदूरों ने ‘खेती बचाओ-लोकतंत्र बचाओ’ दिवस मनाया। 26 जून का यह दिन 1975 में तत्कालीन कांग्रेसी निजाम द्वारा थोपी गयी इमरजेंसी की 46वीं बरसी का भी था। इस वर्ष लोगों ने भाजपा निजाम की मौजूदा अघोषित इमरजेंसी की निंदा की। अभूतपूर्व किसान संघर्ष ने भी इस दिन अपने सात माह पूरे कर लिए।
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के 26 जून के आह्वान को केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच और खेतमजदूरों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों, व्यापारियों आदि के अनेक संगठनों ने अपना सक्रिय समर्थन दिया था। इस दिन की लामबंदी एक माह पहले 26 मई की उस लामबंदी को भी पार कर गयी, जब किसान संघर्ष के छ: महीने पूरे होने और मोदी निजाम के विनाशकारी शासन के सात वर्ष पूरे होने पर, देशव्यापी काला झंडा दिवस मनाया गया था। बहरहाल, 26 मई की कार्रवाइयां कोरोना की दूसरी घातक लहर के बावजूद आयोजित की गयी थीं। लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी राहतवाली थी।
26 जून को देश भर में तकरीबन सभी राजभवनों (राज्यपाल आवासों) के बाहर विशाल प्रदर्शनों का आयोजन किया गया और देश के राष्ट्रपति को संबोधित एसकेएम के ज्ञापन की प्रतियां राज्यपालों या उनके प्रतिनिधियों को सौंपी गयी। अनेक भाजपा शासित राज्यों में राज्यपालों द्वारा रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था और मीटिंगों की इजाजत नहीं दी गयी थी।
मोदी निजाम के खिलाफ किसानों का गुस्सा ऐसा था कि जिला कलेक्ट्रेटों और तहसील/ब्लॉक कार्यालयों के समक्ष और यहां तक कि अनगिनत गांवों तक में सैकड़ों रैलियों तथा प्रदर्शनों का आयोजन किया गया था।
ऐसा तकरीबन सभी प्रमुख राज्यों में हुआ-उत्तर भारत में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तरप्रदेश तथा उत्तराखंड में, दक्षिण भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में, मध्य भारत में मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में, पूर्वी-भारत में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, असम, त्रिपुरा तथा मणिपुर में और पश्चिमी भारत में राजस्थान, गुजरात तथा महाराष्ट्र में। इन सभी राज्यों की सैकड़ों तस्वीरें इस संघर्ष की सफलता की गवाह हैं। स्थान के अभाव में इन कार्रवाइयों का राज्यवार ब्यौरा यहां नहीं दिया जा सकता है।
सीटू, अखिल भारतीय खेतमजदूर यूनियन, एडवा, डीवाइएफआइ, एसएफ आइ और जाहिर है कि अखिल भारतीय किसान सभा की इकाइयों ने भी, देशभर में इस संघर्ष को शानदार रूप से सफल बनाने में प्रमुख भूमिका अदा की। अखिल भारतीय केंद्र और अनेक राज्यों में 26 जून की कार्रवाइयों की तैयारियों के सिलसिले में, इन संगठनों के नेताओं की बहुत अच्छी समन्वय बैठकें हुई थीं।
देश भर के मुख्यधारा के प्रिंट तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया को मजबूर होकर इस संघर्ष का उल्लेख करना पड़ा। जाहिर है सोशल मीडिया ने तो इसे व्यापक रूप से प्रचारित किया ही था।
इस दिन चंडीगढ़ में दो सबसे बड़ी कार्रवाइयों का आयोजन किया गया, जब दो विशाल मार्च- जिनमें से हरेक 7-8 किलोमीटर लंबा था-चंडीगढ़ के दो राजभवनों पर आयोजित किए गए। पंजाब के मार्च में करीब 25,000 लोग शामिल थे, तो हरियाणावाले में करीब 15,000 लोग शामिल थे।
अखिल भारतीय किसान सभा (एआइकेएस) ने एसकेएम, एआइकेएससीसी, सीटीयू के सभी घटक संगठनों और देश भर के दूसरे तमाम जनसंगठनों को 26 जून के ‘खेती बचाओ-लोकतंत्र बचाओ’ संघर्ष को जबर्दस्त ढ़ंग से सफल बनाने के लिए दिल से बधाइयां दी हैं।
उसके बयान में कहा गया है कि ‘जब तक इस कार्पोरेटपरस्त, जनविरोधी, तानाशाह, सांप्रदायिक तथा फासीवादी मोदी निजाम पर जीत हासिल नहीं कर ली जाती, तब तक देश भर में और ज्यादा ताकत के साथ संघर्ष जारी रहेगा।’
22 जुलाई से 9 अगस्त तक किसान संसद
राजधानी में संसद के निकट, जंतर-मंतर पर समांतर किसान संसद के सफल आयोजन के साथ, 22 जुलाई से 9 अगस्त तक, संसद के मॉनसून सत्र के सभी कामकाजी दिनों में चलने जा रहा संसद पर किसानों का विरोध भी चला।
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने इस विरोध प्रदर्शन के दौरान हर रोज जंतर-मंतर पर 200 प्रदर्शनकारियों से किसान संसद का आयोजन करने का फैसला लिया है। इससे पहले, एसकेएम की 9 सदस्यीय समन्वय समिति ने दिल्ली के पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक की। बैठक में इस विरोध प्रदर्शन को व्यवस्थित, अनुशासित तथा शांतिपूर्ण ढ़ंग से अंजाम देने के लिए जरूरी कदम तय किए गए।
प्रदर्शनकारी अपने पहचान पत्रों के साथ हर रोज सिंघू बॉर्डर से रवाना हुए। अनुशासन का किसी भी तरह का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि पंजाब तथा हरियाणा के अलावा तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात तथा राजस्थान से किसानों के जत्थे, इस कार्रवाई में शामिल हुए।
इसके अलावा 26


