जो किया है, ठीक किया है वरवर राव ने
जो किया है, ठीक किया है वरवर राव ने
अभिषेक श्रीवास्तव
'हंस' के सालाना जलसे में सभागार में राजेंद्र यादव बोले कि वरवर राव को किसी ने समझा दिया है कि कहाँ बैठना है और कहाँ नहीं। पीछे फेसबुक पर तमाम लोगों ने लिखा कि वरवर राव को दिल्ली में उतरने पर ब्रीफ किया गया है। एक ने तो अद्भुत बात लिखी, कि वरवर राव को बताया गया है कि प्रेमचंद के वाहक फलाने हैं और ढिकाने नहीं। फिर जनसत्ता का संपादकीय उचक कर बोला कि वरवर राव का इस्तेमाल कोई अपनी राजनीति के लिये कर रहा है।
भाई, आप लोग वरवर राव को जापान से पहली बार दिल्ली आया हुआ भोला टूरिस्ट समझते हैं क्या? एलियन की तरह क्यों ट्रीट किया जा रहा है उनको? अच्छा ये बताइये, आप में से कितने लोगों ने उनकी कविता पढ़ी हैं? बस मंडोलावासियों की तरह माओ- माओ चिल्लाना जानते हैं? वरवर राव हिंदी जगत में परिचित अहिंदी नाम हैं तब तो ये हाल है। घेर कर सामूहिक आखेट हो रहा है और उन्हें आखेटकों का नाम तक नहीं पता। सोचिए, हिंदी की इस गुरु-चेला फौज के लिये पूर्वोत्तर के सात राज्यों और कश्मीर के लाखों बेनाम लोग क्या वाकई कोई मायने रखते होंगे?
गुजरात दंगे का विरोध कर देना अगर वाकई अशोक वाजपेयी के लिये गंगा नहा लेने जैसा है। तो जवानी में ही धवलकेशी हो चुके उनके एक शिष्य बिनायक सेन को छुड़वाने वाली कमेटी में रहकर सीधे ह्वांग हो में ही डुबकी लगा चुके हैं। ऐसे तो आप एक पुण्य गिनाइये और डेढ़ सौ पाप करते रहिये? कोई दूसरा, जो लगातार पुण्य ही कर रहा हो उसके आने पर माओ- माओ चिल्लाने लगिये? हैं जी? क्रांति की भी कोई लिमिट होती है कि नहीं?
संपादकजी की ताज़ा पोस्ट पर एक भक्त हितेंद्र अनंत ने कहा कि वरवर राव को सैयद अली शाह गिलानी के साथ तो मंच साझा करने में दिक्कत नहीं होती। दूसरे भक्त नरेंद्र ने मूड़ी हिलाई। एक तीसरा भक्त विजय इतना अनंत हो गया कि उसने वरवर राव को ही फासीवादी कह दिया। इसके बाद माओ- माओ का अनंत हल्ला उठा और चुपके से संपादक जी की दीवार पर कुछ बजरंगी केसरिया पीक मार आये। एक तरफ लाल का डर दिखाकर दूसरी तरफ भगवा भभूत पोत लिया गया। जो प्रतिवाद वैचारिक था, उसे नफ़रत में तब्दील कर दिया गया और इस तरह भारत से तेलंगाना, कश्मीर, पूर्वोत्तर सब अलग हो गया।
फिर क्यों न बैठें वरवर राव गिलानी के साथ? क्यों बैठें वे आपके साथ? और 'बाइ द वे', आप हैं कौन? वही डरे हुये लोग, मिडिल क्लास गुजराती हिंदू टाइप, जिन्हें घेर कर मारने में मज़ा आता है लेकिन अकेले में कोई राव-राय भेंटा जाये तो लग्घी से कॉनियक नहीं, पानी पीते हैं और दुनिया भर में दो महीना गाते हैं। याद है पुष्प कमल दहाल प्रचंड से मुलाकात, कि भूल गये? बड़ा रंभा रहे थे उस दिन!
वरवर राव ने जो किया है, ठीक किया है।
अभिषेक श्रीवास्तव की फेसबुक वॉल से


